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२०. १. २०१४

इस सप्ताह-

1
अनुभूति में-
रविशंकर मिश्र रवि, सुशील गौतम, संदीप रावल, रजनी भार्गव, सादिक आरिफ और शैलजा चंद्रा की रचनाएँ।

कलम गही नहिं हाथ-

मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ। गुड़ और तिल का यह पर्व हर किसी के जीवन में मिठास और स्वास्थ्य का वरदान लेकर आए। संक्रान्ति का सीधा...आगे पढ़ें

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- मकर संक्रांति की तैयारी में लड्डुओं की विशेष शृंखला के अंतर्गत- नारियल के लड्डू

आज के दिन (२० जनवरी) को १९२६ में उर्दू लेखिका कुर्रतुल ऐन हैदर, १९४० में तेलुगु फिल्म अभिनेता कृष्णम राजू, और १९६४ में ...

हास परिहास के अंतर्गत- कुछ नये और कुछ पुराने चुटकुलों की मजेदार जुगलबंदी का आनंद...

नवगीत की पाठशाला में- भारतीय विवाह के उत्सवी आयोजनों पर आधारित नयी कार्यशाला- ३२  'शादी उत्सव गाजा बाजा' के विषय में जानें विस्तार से...

लोकप्रिय उपन्यास (धारावाहिक)- के अंतर्गत प्रस्तुत है २००३ में प्रकाशित रवीन्द्र कालिया के उपन्यास— 'एबीसीडी' का तीसरा भाग

वर्ग पहेली-१६९
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि-आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

वरिष्ठ कथाकारों की प्रसिद्ध कहानियों के स्तंभ गौरवगाथा में कामतानाथ की कहानी- मेहमान

शीतला प्रसाद का हाथ हवा में ही रुक गया। संध्या-स्नान-ध्यान के बाद चौके में पीढ़े पर बैठे बेसन की रोटी और सरसों के साग का पहला निवाला मुँह में डालने ही जा रहे थे कि किसी ने दरवाजे की कुंडी खटखटायी। कुंडी दोबारा खटकी तो उन्होंने निवाला वापस थाली में रख दिया और अपनी पत्नी की ओर देखा जो चूल्हे पर रोटियाँ सेंक रही थी। कुंडी की आवाज सुनकर उनका हाथ भी ढीला पड़ गया था। 'राम औतार न हो कहीं?' आँचल से माथे का पसीना पोंछते हुए उन्होंने कहा। राम औतार को शीतला प्रसाद की भांजी ब्याही थी। इस रिश्ते से वह उनके दामाद लगते थे। हसनगंज तहसील में कानूनगो थे। कभी किसी काम से शहर आते थे तो उनके यहाँ जरूर आते थे, खास तौर से जब रात में रुकना होता था। दिन भर शहर में काम निपटाकर बिना पहले से कोई सूचना दिये शाम तक उनके यहाँ पहुँच जाते। महीने के अंतिम दिन चल रहे थे। रुपये-पैसे तो खतम थे ही, राशन भी सामाप्तप्राय था।  शक्कर का एक दाना नहीं था घर में। आगे-
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विनोद विप्लव का व्यंग्य
अथ श्री मीडिया मंडी कथा
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प्राण चड्ढा से प्रकृति में
आकाश नीम और कृष्णा हल्दी
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प्रौद्योगिकी में जानकारी
वर्धा हिंदी विश्वविद्यालय में विकसित हिंदी साफ्टवेयर
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पुनर्पाठ में- डॉ. गुरुदयाल प्रदीप से जाने
मानव क्लोनिंग ने मचाई हलचल
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पिछले सप्ताह-


सरस्वती माथुर की लघुकथा
बदलाव और प्रेम की सुहानी हवा
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यशवंत कोठारी का आलेख-
पतंग उत्सव की परंपरा
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राजेश जोशी की कलम से
कुमाऊँ की मकर संक्रांति- घुघुतिया त्यार
*

पुनर्पाठ में- रमेशचंद्र द्विज से जाने
पोंगल- संक्रांति का महा उत्सव
*

समकालीन कहानियों के अंतर्गत भारत से विनय विरवानी की कहानी मकर संक्रांति

"दो आदमी एक जगह नहीं खड़े रह सकते हैं।"
रमेश भाई का सारा शरीर हँसी से हिलने लगा, अपने बचपन के दोस्त प्रीतम बक्शी का यह कथन सुनकर। साथ साथ उनकी कुर्सी भी हिलने लगी। काउन्टर पर धड़ से हथेली मारी, चाय का छलकना रोकने के लिये, लेकिन न तो चाय का छलकना रुका और न उनकी हँसी कम न हुई।
"मेरे दोस्त, तुम्हारे इस दर्शन-शास्त्र को सुनने के लिए ही तो मन तुम्हारा दर्शन करने के लिये इतना बेचैन हो उठता है।" और फिर वे हँस पड़े। उगता हुआ सूरज मथुरा-आगरा राजपथ के एक चौराहे पर थम गया, पता नहीं यह बात सुनने के लिये, या अपनी किरणों की दौड़ देखने के लिये।
बारह बरस के लड़के राजू ने अंडों की गिनती छोड़कर, संशय से अपने पिताजी की तरफ देखा, "लेकिन बापूजी आपने मुझसे तो कहा था कि दो आदमियों के बीच सबसे पहली बात यह है कि कौन आगे और कौन पीछे खड़ा रहेगा।" आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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