१३ दिसम्बर,
१९७३–दक्षिणी फ्रांस का एक छोटा सा शहर –
कलेमॉन्ट फरान्ड–जहाँ आप पत्रकार हैं और आप का काम
मोटर–दौड़ प्रतियोगिताओं के बारे में अखबरों और पत्रिकाओं
को जानकारी देना है। इस दिन भी रोज की तरह आप काम पर
निकलते हैं, लेकिन पता नहीं किस धुन में उस निर्जन स्थान
की ओर अपनी कार मोड़ देते हैं जहाँ एक पुराना शांत
ज्वालामुखी है। वहाँ पहुँचते ही आप के चारों ओर रोमांचकारी
घटनाएँ होने लगती हैं। आप को लगने लगता है कि आकाश का रंग
तेजी से बदल रहा है और आप धीरे–धीरे अपने होशो–हवाश खोते
जा रहे हैं। आप की आँखों के सामने वह हो रहा है जैसा शायद
आपने विज्ञान कथाओं में पढ़ा हो या स्टार वार, स्टार ट्रेक
सरीखी फिल्मों और टीवी सिरियल्स में देखा हो।
आकाश के बदलते रंगों में अचानक एक छोटा सा धब्बा उभरता है
और तेजी से बड़ा होते–होते आप की आँखों के सामने थोड़ी दूर
पर उतर कर स्थिर हो जाता है। ध्यान से देखने पर आप पाते
हैं कि वह धब्बा वास्तव में लगभग १४ मीटर व्यास का किसी
चाँदी जैसी चमकदार धातु से बना हुआ तश्तरी के आकार का
अन्तरिक्ष यान है। अभी आप आवक् आँखें फाड़े इस अविश्वसनीय
घटना को देख ही रहे हैं कि आप को आश्चर्यचकित करते हुए
उस यान से लगभग चार फुट लंबा, पीलापन लिए हुए हरे रंग की
त्वचा वाला मानव रूपी जीव, जिसके काले लंबे बाल और बादाम
जैसी आँखें हैं, निकल कर आप की ओर बढ़ने लगता है। इतना ही
नहीं, पास आकर वह अद्भुत जीव आप की मातृभाषा में ही
बातें करने लगता है।
वार्तालाप के दौरान वह बताता है कि उसका नाम ‘याहवेह’ है
और वह पृथ्वी से करोड़ों किलो मीटर दूर ‘इलोहिम ग्रह’ का
निवासी है। वह और उस जैसे कई लोग इस पृथ्वी पर होने वाली
मानव सभ्यता के विकास एवं प्रगति पर निगाह तो रखते हैं
परंतु हस्तक्षेप नहीं करते। वास्तव में आज से पच्चीस हजर
वर्ष पूर्व उसके ग्रह के लोग पृथ्वी पर आए थे और उन लोगों
ने ही हम मनुष्यों को ‘जेनेटिक इंजिनियरिंग’ और ‘क्लोनिंग’
द्वारा अपनी प्रतिकृति के रूप में प्रयोगशाला में बनाया
था। यही नहीं, इस पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीव–जंतु
इसी प्रक्रिया के परिणाम हैं। वह आगे बताता है कि आज मानव
सभ्यता वैज्ञानिक प्रगति के उस स्तर पर पहुँच गई है जहाँ
मनुष्यो को ‘जेनेटिक इंजिनियरिंग और क्लोनिंग’ के आधरभूत
रसायन ‘डीऑक्सीराइबोज न्यूलिक एसिड’ का ज्ञान हो चुका है
और अब ‘इलोहिम ग्रह’ के निवासी पृथ्वी–वासियों को अपने
सीधे संपर्क के योग्य समझने लगे हैं।
उनसे सीधा संपर्क, हम पृथ्वी–वासियों के ज्ञान–विज्ञान के
क्षेत्र में हो रही प्रगति की रफ्तार को कई गुना बढ़ा देगा
और हम अतिशीघ्र ‘इलोहिम’ के समान अन्य ग्रहों पर जाकर नए
जीवन के सृष्टिकर्ता बन सकेंगे। इतना ही नहीं, हम उन्हीं
के समान एक प्रकार से अमरत्व भी प्राप्त कर लेंगे। परंतु
‘इलोहिम’ से सीधा संपर्क तभी संभव है जब हम उनके अनुकूल
वातावरण वाला सुरक्षित दूतावास का निर्माण कर, उन्हें यहाँ
आने का निमंत्रण दें। क्यों कि वे यहाँ प्रेम और सम्मान का
प्रतीक बन कर ही आना चाहेंगे, एक आक्रमणकारी के रूप में
नहीं।
‘याहवेह’ अब आप से विदा लेता है और अपने यान में बैठ कर
आप की आँखों के सामने से ओझल हो जाता है। उसके जाते ही आप
के आसपास सब कुछ सामान्य होने लगता है और आप होशो– हवाश
में आने लगते हैं। अब आप की समझ में यह आना मुश्किल है कि
अभी–अभी जो घटित हुआ है, वह एक सच्चाई है या दिवास्वप्न या
फिर अर्धचेतना की स्थिति में की गई कोरी कपोल कल्पना! जो
भी हो, बिना सबूत के आप चाहते हुए भी किसी को इस घटना के
बारे मे बताने से हिचकेंगे। भला आप की बात पर विश्वास कौन
करेगा? कुछ आप को गप्पी समझेंगे तो कुछ चोरी की घटिया
कहानी सुनाने वाला…यहाँ तक कि कुछ लोग पागल भी समझ सकते
हैं।
लेकिन नहीं, श्रीमान क्लाड वरिलॉन एक वास्तविकता हैं और
जैसा कि उनका दावा है, उपरोक्त घटना उनके साथ वास्ताव में
घटी थी और उस पर उन्हें पूरा चिश्वास है। उनका दावा तो
यहाँ तक है कि १९७५ में इलोहिम ग्रह के निवासियों ने उनसे
पुन: संपर्क किया एवं इस बार यान में बैठ कर अपने ग्रह
चलने की दावत भी दे डाली। वे वहाँ गए भी और वहाँ जो कुछ
देखा, वह चमत्कृत करने वाला था। अकल्पनीय वैज्ञानिक तकनीk,
पूर्णरूपेण उन्मुक्त समाज एवं एक प्रकार से अमर लोग!
अमरत्व प्राप्त करने का तरीका बताने के साथ उन्हें यह भी
बताया गया कि पृथ्वी पर समय–समय पर जन्म लेने वाले विभिन्न
धर्म प्रवर्तक इलोहिम द्वारा चुने गए प्रशिक्षित लोग थे।
इनके द्वारा समय–समय पर उस समय की सभ्यता और सामाजिक विकास
के स्तर के अनुरूप मानव समज को शिक्षित करने का प्रयास
किया गया।
वरिलॅन साहब इतने प्रभावित हुए कि पृध्वी पर वापस आकर
इलोहिम द्वारा बताई गई बातों का प्रचार–प्रसार करने का
बीड़ा उठा लिया। सर्व प्रथम इन्हों ने अपना नाम बदल कर
‘रेल’ रख लिया और इलोहिम लोगों के लिए दूतावास बनाने के
कार्य में जुट गए ताकि वे यहाँ आकर मानव सभ्यता के
वैज्ञानिक, सांस्कृतिक, धार्मिक एवं सामाजिक स्तर को तीव्र
गति से ऊपर उठाने में सहायक हो सकें।
आज के युग में भी ईश्वर के तथाकथित दूत या फिर स्वयं को ही
भगवान बताने वाले धर्मगुरुओं की कमी नहीं है और सभी को इस
करोड़ों की जनसंख्या में कुछ न कुछ अनुयायी मिल ही जाते हैं
जो उनके धर्म की दुकान चलाने में सहायक होते हैं। वरिलॉन
उर्फ रेल साहब भी इसके अपवाद नहीं हैं। इन्हें भी लगभग
पचास हजार अनुयायी मिल ही गए हैं और इन्होंने ‘रेलियन
आंदोलन’ के रूप में एक ‘कल्ट’ को जन्म दिया है। इससे जुड़े
लोगों का उद्देश्य इलोहिम के लिए दूतावास निर्माण एवं
श्रीमान वरिलॉन की विचारधारा का प्रचार करने के साथ–साथ एक
उन्मुक्त समाज की रचना करना है. जहाँ किसी प्रकार की कोई
वर्जना न हो।'रेलियन्स’ का दावा है कि दूतावास निर्माण का
कार्य काफी प्रगति पर है और इस संदर्भ में इजराइल की सरकार
से गुपचुप बात–चीत भी चल रही है। इजराइल से ही क्यों? तो
इनका कहना है कि वास्तव में इलोहिम शब्द का उल्लेख हीब्रू
भाषा में मिलता है, जिसका तात्पर्य ईश्वर है। लेकिन इसका
वास्तविक अर्थ “आकाश से अवतरित लोग” है। अन्य स्थानों पर
इन्हें विरोध भी झेलना पड़ रहा है इस कारण बीच में इनका
उत्साह कुछ ढीला पड़ गया था।
१९९७ में ‘रोज़लिन रिसर्च इंस्टीट्यूट, स्कॉटलैंड में
कार्यरत विल्मट एवं साथी वैज्ञानिकों ने एक मादा भेड़ के
स्तन की कोशिका से उसकी हूबहू प्रतिकृति (क्लोन) के
निर्माण में पहली बार सफलता प्राप्त की। सामान्यत:
प्राकृतिक रूप से नए जीव की उत्पत्ति नर के शुक्राणु
द्वारा नि:सेचन के बाद मादा डिम्ब से ही होती है, फलत:
उसमें नर एवं मादा, दोनो के ही गुण आते हैं, इस खबर ने
सारी दुनिया में हलचल मचा दी और वैज्ञानिकों में तरह–तरह
के जीव–जन्तुओं की सामान्य शारीरिक कोशिकाओं से प्रतिकृति
बनने की होड़ सी लग गई। यहाँ तक कि मानव–प्रतिकृति के
निर्माण की दिशा में भी प्रयास होने लगे। इस खबर ने
रेल्यिन्स को भी नया उत्साह दिया और इनके जनक वरिलॉन ने एक
रसायनिक अनुसंधानकर्ता डॉ.ब्रिगिट ब्वायज़लियर की
अध्यक्षता में ‘क्लोनेड’ नामक कंपनी बना डाली, जहाँ
मानव–प्रतिकृति के निर्माण का कार्य तीव्र गति से परंतु
गुप–चुप चलने लगा। और ऐसा हो भी क्यों न? आखिर इस संदर्भ
में वरिलॉन को कुछ–कुछ ज्ञान याहवेह और इलोहिम द्वारा
पच्चीस साल पहले ही मिल चुका था। बीच–बीच में इस संबंध में
किए जा रहे प्रयासों की सूचना समाचार पत्रों में आती रही,
परन्तु इतनी जल्दी मानव–प्रतिकृति के निर्माण की सफलता की
आशा किसी को नहीं थी। कारण, इससे जुड़ी तकनीक अभी भी शैशव
अवस्था मे ही है। साथ ही साथ, मानव क्लोनिंग के समर्थकों
को स्थापित धार्मिक, सामाजिक एवं मानवीय मूल्यों के
समर्थकों के घोर विरोध का सामना भी करना पड़ रहा है।
लेकिन रेलियन आन्दोलन से जुड़ी ब्रिगिट ब्वायज़लियर ने हाल
ही में एक नहीं, दो नहीं, तीन बार मानव क्लोनिंग की सफलता
के दावे पेश कर सारी दुनिया को चौंका दिया। पहली घोषणा
उन्हों ने २७ दिसंबर २००२ को फ्लोरिडा के एक बीच रिसॉर्ट
पर की। आप ने बताया कि क्लेनड कंपनी ने एक अविवाहित महिला
के त्वचा की कोशिका के न्युक्लियस को उसके डिम्ब में
प्रतिस्थापित कर प्रथम मानव क्लोन के निर्माण में सफलता
प्राप्त की है। दूसरी घोषणा ४ जनवरी २००३ के दिन पुन: की
गई। इस बार नीदरलैंड में एक दंपति द्वारा उत्पन्न संतान
को मानव क्लोन निर्माण की प्रक्रिया का परिणाम बताया गया।
इसी कंपनी ने ६ जनवरी २००३ को पुन: दावा किया कि तीन और
मानव क्लोन जनवरी के अन्त तक उत्पन्न हो जाएँगे।
अधिकतर वैज्ञानिक रेलियन्स के दावे पर कतई विश्वास नहीं
करते। कारण, घोषणा के अतिरिक्त इन लोगों ने कोई भी प्रमाण
नहीं उपलब्ध कराया है। यदि तथाकथित मानव क्लोन शिशु डी.एन.ए. परीक्षण के लिए उपलब्ध करा दिए गए होते तो
क्लोनेड कंपनी के दावे की पुष्टि अपने आप हो गई होती।
रेलियन आंदोलन के नेता श्री वरिलॉन एवं क्लोनेड की
अध्यक्षा डॉ. ब्वायज़लियर प्रारंभ में तो इसके लिए तैयार
थे, परन्तु बाद में मुकर गए। कारण, इन शिशुओं को अदालत की
सुरक्षा में देने का भय और उस स्थिति में बच्चे से अलग
होने पर माँ की मानसिक त्रासदी…आदि।
चूँकि इन लोगों ने कोई प्रमाण नहीं दिया तो अब लोग कहने
लगे हैं कि यह सब सस्ती लेकप्रियता पाने के हथकंडे हैं।
अमेरिका स्थित ऑरेगॉन प्राइमेट रिसर्च इंस्टीट्ट की
वैज्ञानिक टॅन्ज़ा डॉमनिको का मानना है कि मानव क्लेनिंग
अभी संभव नहीं है। इन्होंने स्वयं चिम्पैजी सरीखे कई
प्राइमेट्स पर ३०० से भी अधिक प्रयोग किए, परन्तु उनके एक
भी क्लोन की उत्पत्ति में उन्हें सफलता नहीं मिली। वे ऐसे
किसी भी दावे पर एक मिनट के लिए भी विश्वास करने को तैयार
नहीं हैं। बाल्टीमोर स्थित जॉन हॉपकिन्स विश्वविद्यालय के
प्रजनन विज्ञान के अथ्यक्ष दॉ बेरी ज़रकिन के अनुसार ‘मानव
क्लोनिंग की प्रक्रिया इतनी सरल है! यह मेरे लिये आश्चर्य
की बात है’। वहीं मिसौरी विश्वविद्यालय में प्रजनन
जैव तकनॉलॉजी के प्रोफेसर रन्डॉल प्रैथर की प्रतिक्रिया इन
शब्दों में है—“क्या मानव क्लोनिंग अभी संभव है? पालतू
जीवों की क्लोनिंग से संबंधित समस्याओं को क्या हमने देख–समझ लिया है? यदि नहीं, तो हमें मानव क्लोनिंग नहीं करनी
चाहिए।” डॉली के जन्मदाता विल्मट के विचार भी कुछ इसी
प्रकार के हैं।
परन्तु रेल्यिन्स को दुनिया के मानने या न मानने की ज्यादा
चिंता नहीं है और मानव प्रतिरूप बनाना ही इनका अंतिम ध्येय
भी नहीं है। यह तो इनके दृष्टिकोण को वास्तविकता का रूप
देने के रास्ते का प्रथम सोपान है। जैसा कि इनके प्रर्वतक
वरिलॉन साहब इलोहिम ग्रह पर देख–सुन आए थे— उन्हीं के समान
मनुष्यों को अमरत्व प्रदान करना इनका लक्ष्य है। बल्कि
उससे भी आगे बढ़ कर इलोहिम की तरह अन्य ग्रहों पर जाकर
क्लोनिंग द्वारा ये सृष्टिकर्ता बनने का स्वप्न देख रहे
हैं।
पृथ्वी के हर प्राणी के लिए और कुछ निश्चित हो या न हो,
मृत्यु तो निश्चित ही है। मनुष्य इनसे अलग नहीं है परन्तु
वह एक विचारशील प्राणी है। वह न तो बूढ़ा होना चाहता है और
न ही मरना। युवा बने रहना और अमरत्व प्राप्त करना इसकी
आदिम इच्छा है। देवताओं एवं दानवों द्वारा अमृत की खोज में
समुद्र मंथन और अमृत पान की कथा हमारे पुराणों में भी
वर्णित है। अफसोस … मनुष्य आज तक न तो अमृत खोज पाया और न
ही उसे पी कर अमर हो पाया। लेकिन उसकी इस जिजीविषा एवं
खोजी प्रकृति ने उसे बहुत कुछ दिया। डी एन ए की संरचना का
ज्ञान, जेनेटिक इंजिनीयरिंग और अब क्लोनिंग…संभवतः इस सदी
क्या, पूरे मानव इतिहास में नाभिकीय ऊर्जा की खोज के बाद
सर्वोत्तम और बहुमूल्य खोज है। इनके बल पर हम पृध्वी के
जीवों मे मनचाहा परिवर्तन कर, उन्हें और उपयोगी बना सकते
हैं। यहाँ तक कि हम अपनी आने वाली पीढ़ियों को तरह–तरह की
बीमारियों से मुक्त कर संपूर्ण स्वस्थ समाज की रचना भी कर
सकते हैं। फिर भी अमरत्व प्राप्त करना संभव नही है।
लेकिन नहीं, रेलियन्स के अनुसार ऐसा संभव है। क्लोनिंग
द्वारा किसी के भी शरीर की प्रतिकृति बनाई जा सकती है।
परन्तु ये प्रतिकृतियाँ केवल शारीरिक संरचना में ही मूल
जीव के समान होंगी, क्यों कि इनका विकास भी शुक्राणु
द्वारा निःसेचित डिंब जैसे ही होगा और इन्हें भी भ्रूणीय
विकास एवं शारीरिक वृद्धि की प्रक्रिया से उसी प्रकार
गुजरना होगा जैसा किसी भी सामान्य जीव के साथ होता है
अर्थात् इनका भी बचपन, यौवन एवं बुढ़ापा आएगा। निश्चय ही इस
जीवन यात्रा में होने वाले अनुभव इनके नितांत अपने होंगे।
यही नहीं, वातावरण, खान–पान, शिक्षा–दीक्षा आदि का प्रभाव
इन्हें मूल जीव से भिन्न बना सकता है। किसी जीव की संपूर्ण
प्रतिकृति के निर्माण में, जो शरीर के साथ–साथ व्यक्तित्व
में भी मूल जीव के समान हो., यही सबसे बड़ी बाधा है।
रेलियन्स का विश्वास है कि निकट भविष्य में ऐसी तकनीक का
विकास संभव है जिसके द्वारा वृद्ध या मृत्यु शय्या पर पड़े
मूल जीव के संस्मरण एवं अनुभव उसकी प्रतिकृति में
स्थानांतरित किया जा सके। जिस दिन ऐसा हुआ, मूल जीव, वृद्ध
शरीर की मृत्यु के बाद भी अपनी प्रतिकृति के रूप में
पुनर्जीवित हो कर, एक प्रकार से अमरत्व प्रप्त कर लेगा।
यही प्रक्रिया प्रतिरूप के साथ भी दुहराई जा सकती है और इस
प्रकार प्रतिरूपों की पीढ़ी दर पीढ़ी अपने संस्मरणों के
साथ–साथ मूल जीव के संस्मरणों को वहन करते हुए उसे एक
प्रकार से अमर बना देगी। ऐसी तकनीक के विकास के पश्चात्
हम करोड़ों मील सुदूर ग्रहों की यात्रा अपनी प्रतिकृति के
रूप में कर सकेंगे और वहाँ पहुँच कर क्लोनिंग द्वारा नव
जीवन के सृष्टिकर्ता बनने का गौरव प्राप्त कर सकेंगे।
ऐसी तकनीक का विकास तो अभी दूर की कौड़ी लगता है, परंतु
रेल्यिन्स का विश्वास है कि जब वे सुरक्षित दूतावास का
निर्माण कर इलेहिम को बुलाएँ गे तब उनकी सहायता से कुछ ही
समय में इसे विकसित किया जा सकता है।
नहीं मालूम, रेलियन्स का यह दिवा–स्वप्न कभी पूरा भी होगा
या नहीं। इस बात में भी शंका ही है कि इन्हें मानव क्लोन
के निर्माण में वास्तव में सफलता मिली है या ऐसी घोषणा
केवल सस्ते प्रचार के लिए की गई है। लेकिन यह तय है कि
इनकी इस घोषणा के बाद क्लोनिंग से जुड़ी वैज्ञानिक संस्थाओं
में होड़ लग जाएगी और तमाम विरोधों के बावजूद, निकट भविष्य
में कोई न कोई इस कार्य में सप्रमाण सफलता की घोषणा अवश्य
करेगा। तब तक दिल थाम कर इंतज़ार कीजिए और सोचते रहिए कि इन
क्लोन्स का सदुपयोग या दुरुपयोग आप कैसे करेंगे! |