पतंग उत्सव की परंपरा
—यशवंत
कोठारी
पतंग उड़ाने की परम्परा भारत तथा विदेशों में काफी
प्राचीन है। मानव शुरू से ही आसमान में उड़ते
परिन्दों की देख देख कर स्वयं भी उड़ने की कल्पना
करता था, पतंगबाजी इसी कल्पना को साकार करती है।
दुनियाभर के देशों में पतंगबाजी की अनेक परम्पराएँ
विद्यमान है।
ग्रीक इतिहासकारों के अनुसार पतंगबाजी २५०० वर्ष
पुरानी है जबकि चीन में पतंगबाजी का इतिहास दो हजार
साल पुराना माना गया है। चीन के सेनापति हानसीन ने कई
रंगों की पतंगें बनाईं और उन्हें उड़ाकर अपने सैनिकों
को संदेश भेजे। विश्व के इतिहासकार पतंगों का जन्म
चीन में ही मानते हैं।
भारत में ईसा पूर्व ३५०० से २७५० के मध्य में सिन्धु
संस्कृति में पतंगों के चित्र तथा चित्रलिपि मिलती
है। पतंगों का विकास यूरोप तथा पूर्व के देशों में
बड़ी तेजी से हुआ। अमरीका, इंग्लैण्ड, हाँगकांग,
जापान, इटली, आस्ट्रेलिया आदि देशों में पतंगें बनने
और उड़ने लगीं। पतंगों के रूप में लोगों ने गरुड़,
सर्प, तोता, मछली, मगरमच्छ, मानव आदि बना बनाकर
उड़ाना शुरू किया।
अमरीका में रेशमी कपड़े और प्लास्टिक से बनी पतंगें
उड़ाई जाती हैं। वहाँ जून में पतंगें खूब उड़ती हैं और
पतंग प्रतियोगिताएँ आयोजित की जाती है। १९६९ में एक
अमरीका पतंगबाज १०,८३० मीटर ऊंची पतंग उड़ा चुका है।
एक अन्य पतंगबाज ने १७८ पतंगे एक साथ उड़ाकर एक
कीर्तिमान बनाया।
जापानी जनता भी पतंगबाजी की शौकीन है। जापान में
पतंगबाजी मई में की जाती है। उनका मानना है कि पतंग
उड़ाने से देवता खुश हो जाते हैं। जापान के होजीवाना
शहर में प्रतिवर्ष पतंगबाजी की प्रतियोगिता की जाती
है। यहाँ पतंग की लम्बाई १३ मीटर व चौड़ाई ७ मीटर
होती है। १९३६ में जापान ने ४० गुणा ५० से․मी․ आकार के
३१०० मीटर कागज की एक बड़ी पतंग बना कर उड़ाई थी। जो
आज भी एक कीर्तिमान है। इन सबके ठीक विपरीत वाशिंगटन
शहर में पतंग उड़ाना एक अपराध है।
आधुनिक पतंग बनाने में चीन का जवाब नहीं। चीन में २-३
लोग मिल कर बड़ी पतंगें उड़ाते हैं। मनुष्य, मछली,
मगरमच्छ, अजगर आदि आकृति की पतंगें भी उड़ाई जाती है।
मलेशिया, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया, इटली, मलाया,
थाइलैंड, नीदरलैंड, हाँगकांग आदि देशों में भी पतंगें
उड़ाई जाती हैं।
ऑस्ट्रेलिया में एक बार ४ मीटर लम्बी नायलोन की पतंग
उड़ाकर उड़ाने वाले ने आकाश में सैर की थी।
न्यूजीलैंड में पतंगोत्सव को धार्मिक मान्यता मिली
हुई है। यहाँ लोग भजन गाकर और धार्मिक वाक्य लिखकर
पतंग उड़ाते हैं।
भारत में प्रतिवर्ष मकर संक्रांति पर पतंगोत्सव देश
के कई भागों में मनाया जाता है। यह एक लोक उत्सव है।
अब कागज, खपच्ची और कपड़े के अलावा, नाइलोन, पोलीथीन,
प्लॉस्टिक आदि का प्रयोग भी पतंग बनाने में किया
जाता है। मंझा काँच, सरेस, रंग आदि से बनाया जाता है।
अच्छी पतंग और अच्छा मंजा बरेली, कानपुर, लखनऊ,
ग्वालियर आदि का होता है। सूरत का मंझा भी प्रसिद्ध
है।
गुजरात, महाराष्ट्र, राजस्थान, कर्नाटक, तमिलनाडु,
दिल्ली, उत्त्ार प्रदेश, पंजाब आदि प्रदेशों में
पतंगों को उड़ाने के लिए विशेष समय नियत है। अलग-अलग
प्रदेशों में पतंगों को अलग-अलग नामों से जाना जाता
है। अहमदाबाद शहर पूरे भारत में ही नहीं विश्व में भी
पतंगबाजी के लिए प्रसिद्ध है। मकर संक्रांति पर पतंग
उत्सव की छटा देखते ही बनती है। पूरे देश के पतंगबाज
अहमदाबाद आते हैं। यहाँ पर सन १९८९ से प्रति वर्ष
अन्तरराष्ट्रीय पतंग महोत्सव मनाया जाता है।
विदेशी पतंगबाजों के आने से प्रतियोगिताएँ बहुत बढ़ गई
हैं। डिजाइनों तथा आकार-प्रकार के कारण लोगों का
आकर्षण भी बहुत बढ़ गया है। अहमदाबाद में एक पतंग
म्यूजियम भी बनाया गया है। अमरीका में पतंगों को
बनाने की ७०० कम्पनियाँ हैं। लंदन के ब्रिटिश
म्यूजियम एवं अमरीका के स्मिथ सोनिअन म्यूजियम मे
सैकड़ों वर्षों पूर्व की पतंगें सुरक्षित हैं।
पतंगोत्सव पर पतंगबाजी का जुनून सवार हो जाता है और
मकर संक्रांति पर बच्चे, बूढ़े, जवान, औरतें एवं
लड़कियाँ सभी पतंग उड़ाते हुए दिखाई दे जाते हैं। जब
चारों तरफ ‘वो काटा, ‘वो मारा' का शोर फेल जाता है,
तभी तो पतंगोत्सव पूरा होता है। |