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कलम गही नहिं हाथ  

संक्रान्ति की शुभकामनाएँ

मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ। गुड़ और तिल का यह पर्व हर किसी के जीवन में मिठास और स्वास्थ्य का वरदान लेकर आए।

संक्रान्ति का सीधा संबंध सूर्य से होता है। सूर्य का मकर रेखा से उत्तरी कर्क रेखा की ओर जाना उत्तरायण है। उत्तरायण में दिन बड़े और रातें छोटी होने लगती हैं। शायद उत्तरायण के बड़े दिन होने की सूचना से पतंगबाजी का भी सीधा संबंध है कि भई, अब तो दिन बड़ा होने लगा चलो कुछ समय पतंगबाजी के लिये निकाला जाय। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि पतंग उड़ाकर भगवान भास्कर का स्वागत किया जाता है। किसी के स्वागत में आनंद मंगल का आयोजन स्वाभाविक है।

सूर्य का एक नाम पतंग भी है। यह नाम उसे दो कारणों से दिया गया है- एक तो उसके ज्योतिर्मय होने के कारण और दूसरे आकाश में गतिमान होने के कारण। संक्रान्ति के दिन पतंग उड़ाने के पीछे पतंग के भी ये दो गुण हो सकते हैं जो उसे सूर्य के समान बनाते हैं। पतंग आकाश में उड़ती है यह तो सभी जानते हैं लेकिन प्राचीन साहित्य में ऐसी पतंगों का उल्लेख मिलता है जिनमें दीप रखकर उड़ाया जाता था, ताकि अँधेरे में दूर से आने वाले यात्री को दिशा का पता चल सके। यह शोध का विषय हो सकता है कि ऐसी पतंगें किस पदार्थ की बनी होती थीं और उनमें प्रकाश व्यवस्था कैसे की जाती थी। सामान्य रूप से देखें तो इस पर्व में अंतर्निहित उन्नति और प्रकाश की जो भावना निहित है, वह हमारे सामाजिक जीवन के लिये उपयोगी है और सहज ही ग्रहण की जा सकती है। चिनगारी को भी पतंग कहा गया है, शायद इसलिये कि उसमें भी ज्योति है और वह भी उड़ती है। संक्रान्ति पर आग जलाने और तापने के पीछे एक यह अवधारणा भी हो सकती है।

सूर्य तिल तिल कर कर्क रेखा की ओर बढ़ता है और तिल का भोजन हमें जीवन में आगे बढ़ने की ऊर्जा प्रदान करता है इसलिये संक्रांति के दिन तिल का भी महत्व है। यह एक संदेश भी देता है कि निश्चित लक्ष्य तक पहुँचने के लिये हमें तिल की तरह बहुत सारे छोटे छोटे प्रयत्न करने होते हैं। इस शुभ दिन पर सब उन्नति करें सब ज्योतित रहें और सबके छोटे छोटे प्रयत्न बड़ी उपलब्धियों में बदलें यही मंगलकामना है।

भारत में उत्तर प्रदेश में कहते हैं कि संक्रान्ति के दिन पानी का एक छींटा तो जरूर गिरता है। लेकिन इमारात पर यह कथन लागू नहीं होता। इमारात एक ऐसा देश है जहाँ वर्षा नाम का कोई मौसम नहीं। कभी कभी तो पूरा साल ही बिना वर्षा के निकल जाता है। ऐसे देश में वर्षा होना किसी उत्सव से कम नहीं।  इस साल पिछले एक सप्ताह से बादल आते जाते रहे हैं। बार बार बूँदाबाँदी और कभी कदा तेज बौछारें भी पड़ी हैं। शायद यह संक्रान्ति बारिश वाली रहे।

यहाँ भारत और दक्षिण एशिया के अलग अलग देशों से आए लोग अपने अपने घरों में अपने अपने रीति रिवाजों के अनुसार संक्रान्ति मनाते हैं। सामूहिक संक्रान्ति तो संक्रान्ति के बाद पड़ने वाले शुक्रवार को ही मनाई जाती है। शुक्र को इसलिये क्यों कि वह साप्ताहिक अवकाश का दिन होता है। पतंग उड़ाने और नाचने गाने का कार्यक्रम दुबई के क्रीक पार्क में आयोजित होता है। कन्नड कूट का पारंपरिक कार्यक्रम सफा पार्क में होता है। जबील पार्क में लोहिड़ी का कार्यक्रम होता है। लोग घरों में भी अंतरंग मित्रों को साथ शुक्रवार की शाम सामूहिक रूप से मकर संक्रान्ति का पर्व मनाते हैं। कुछ लोग मंदिर जाते हैं और दान की विधि पूरी करते हैं। कुछ स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम होते हैं- कहीं स्थानीय नृत्य-संगीत संस्थान के कलाकारों की प्रस्तुति होती है, कहीं भारत से कलाकार बुलाए जाते हैं और कुछ स्थानों पर संस्कृति के नाम पर बॉलीवुड छाया रहता है। इस बार अगर मौसम खुला रहा तो यह सब कुछ १७ जनवरी को होने वाला है। 

पूर्णिमा वर्मन
१३ जनवरी २०१४

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