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१३. १. २०१४

इस सप्ताह-

1
अनुभूति में-
सुमित्रानंदन पंत, ओम ठाकुर, मुसव्विर रहमान, उत्तम कांबले और किशन साध की रचनाएँ।

कलम गही नहिं हाथ-

मकर संक्रान्ति की शुभकामनाएँ। गुड़ और तिल का यह पर्व हर किसी के जीवन में मिठास और स्वास्थ्य का वरदान लेकर आए। संक्रान्ति का सीधा...आगे पढ़ें

- घर परिवार में

रसोईघर में- हमारी रसोई-संपादक शुचि द्वारा प्रस्तुत है- मकर संक्रांति की तैयारी में लड्डुओं की विशेष शृंखला के अंतर्गत- गोंद के लड्डू

आज के दिन (१३ जनवरी) को १९११ में कवि शमशेर सिह, १९२६ में फिल्म निर्माता-निर्देशक शक्ति सामंत, १९३८ में संतूर वादक शिव शर्मा...

हास परिहास के अंतर्गत- कुछ नये और कुछ पुराने चुटकुलों की मजेदार जुगलबंदी का आनंद...

नवगीत की पाठशाला में- कार्यशाला- ३१- नव वर्ष की रचनाओं का प्रकाशन पूरा हो चुका है। अगली कार्यशाला की घोषणा जल्दी ही होगी।

लोकप्रिय उपन्यास (धारावाहिक)- के अंतर्गत प्रस्तुत है २००३ में प्रकाशित रवीन्द्र कालिया के उपन्यास— 'एबीसीडी' का दूसरा भाग

वर्ग पहेली-१६८
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-

समकालीन कहानियों के अंतर्गत भारत से विनय विरवानी की कहानी मकर संक्रांति

"दो आदमी एक जगह नहीं खड़े रह सकते हैं।"
रमेश भाई का सारा शरीर हँसी से हिलने लगा, अपने बचपन के दोस्त प्रीतम बक्शी का यह कथन सुनकर। साथ साथ उनकी कुर्सी भी हिलने लगी। काउन्टर पर धड़ से हथेली मारी, चाय का छलकना रोकने के लिये, लेकिन न तो चाय का छलकना रुका और न उनकी हँसी कम न हुई।
"मेरे दोस्त, तुम्हारे इस दर्शन-शास्त्र को सुनने के लिए ही तो मन तुम्हारा दर्शन करने के लिये इतना बेचैन हो उठता है।" और फिर वे हँस पड़े। उगता हुआ सूरज मथुरा-आगरा राजपथ के एक चौराहे पर थम गया, पता नहीं यह बात सुनने के लिये, या अपनी किरणों की दौड़ देखने के लिये।
बारह बरस के लड़के राजू ने अंडों की गिनती छोड़कर, संशय से अपने पिताजी की तरफ देखा, "लेकिन बापूजी आपने मुझसे तो कहा था कि दो आदमियों के बीच सबसे पहली बात यह है कि कौन आगे और कौन पीछे खड़ा रहेगा।"
रमेश भाई की कुर्सी फिर हिलने लगी। आगे-

*

सरस्वती माथुर की लघुकथा
बदलाव और प्रेम की सुहानी हवा
*

यशवंत कोठारी का आलेख-
पतंग उत्सव की परंपरा
*

राजेश जोशी की कलम से
कुमाऊँ की मकर संक्रांति- घुघुतिया त्यार
*

पुनर्पाठ में- रमेशचंद्र द्विज से जाने
पोंगल- संक्रांति का महा उत्सव
1

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पिछले सप्ताह-


श्रीप्रकाश का व्यंग्य
बालमखीरा का चूरन
*

संजय जैन का आलेख
सिवनी का जैन मंदिर
*

सतीश जायसवाल का यात्रा संस्मरण
सिक्किम में यति को खोजते हुए
*

पुनर्पाठ में-रामेश्वर कांबोज 'हिमांशु'
का दृष्टिकोण नववर्ष में संकल्प ले

*

समकालीन कहानियों के अंतर्गत भारत से संजय कुमार की कहानी सब्जी वाला लड़का

शाम का समय था। बच्चे सड़कों पर खेल रहे थे। कोई पहिया घुमा रहा था; कोई साईकिल चला रहा था; कोई गुल्ली डंडा खेल रहा था; तो कोई पंतग उड़ने में व्यस्त था। सब मज़े कर रहे थे। मैं अपने घर में बैठा था और प्रसादजी की एक कहानी पढ़ रहा था। कहानी खतम होने को आई थी कि मेरे कानों में आवाज पड़ी 'सब्जी ले लो सब्जी'। यों तो इस तरह की आवाजें तरकारी वाले प्राय: लगाते थे लेकिन ये आवाज कुछ अलग थी। मैं किताब छोड़कर नीचे आ गया और इस आवाज के मालिक को तलाशने लगा। मेरी नजर सामने पड़ी। एक छोटा बालक तरकारी का ठेला धकाते हुए मेरी ओर बढ़ रहा था। बीच बीच में चिल्लाता जाता 'सब्जी ले लो सब्जी'। उसकी उमर बारह या तेरह बरस से ज्यादा न लगती थी। लड़का देखने में बहुत सुन्दर था उसके चेहरे से मासूमियत टपक रही थी। उसे देखकर मेरे मन मैं अनगिनत सवाल नाग की तरह फन फैलाने लगे। वो अभी इतना छोटा था कि ठेलागाड़ी उससे... आगे-

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है
यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी -|- मीनाक्षी धन्वंतरि
 

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