हास्य व्यंग्य

बालमखीरा का चूरन
श्रीप्रकाश


जी हाँ सुकून नहीं मिल रहा है, दिल में घबराहट है। सही बात से डर लगता है, गलत काम में मन लगता है। थाने में दीवान रिपोर्ट नहीं लिखता, तहसील में इन्तखाब लेना है, लेखपाल पैसे माँगता है, आप पैसे से तंग हैं- तो बालमखीरा का चूरन खाइए, सब काम हो जायेगा। बैनामा कराना है, रजिस्ट्रार घूस माँगता है, बी.डी.ओ. ऑफिस में काम पड़ गया, पैसे के अभाव में बाबू काम नहीं करता- बालमखीरा का चूरन खाइए सब काम फटाफट होने लगेंगे।

जी साब! यह एक ऐसा चूरन है जो केवल आम आदमियों के लिए ही नहीं बल्कि सभी प्रकार के सभी लोगों के सभी मर्जों के लिए बनाया गया है। इसका फार्मूला कोई नया नहीं, काफी पुराना है सभी जानते हैं। चूरन बनाने में कोई मेहनत नहीं, झूठ, मक्कारी, घूस-लूट, चोरी-बदमाशी, बेईमानी इत्यादि सभी को बराबर मात्र में लेकर इमामदस्ते में कूटकर किसी चालाकी भरे कपड़े से छानकर चिमचागिरी या चापलूसी का नमक मिला लें- चूरन तैयार। परधानी का इलेक्शन लड़ना है, विधायकी का चुनाव जीतना है, दिमाग काम नहीं करता, वोटों की गणित ठीक नहीं बैठती......।

बालमखीरा का चूरन खाइए, आराम पाइए। जोड़तोड़ की सियासत करनी है, सरकार नहीं बन पा रही है, नेता को चाहिए कि वह बालमखीरा का चूरन खाए..और आराम पाए। इसके इस्तेमाल से दिमाग ठंडा रहता है, खाया पिया सब हजम हो जाता है, पाचन शक्ति तेज हो जाती है। बालमखीरा का चूरन खाएँ और काम पर जाएँ।

फर्जी काम कराना है, बगैर घूस के काम में मन नहीं लगता- डर का बुखार रहता है, बालमखीरा का चूरन खाइए। भाइयों एवं बहनों! यह चूरन सरकारी कर्मचारियों के लिए विशेष रूप से तैयार किया गया है। लेकिन सत्ता में बैठे नेतागण भी इसे लेकर फायदा उठा सकते हैं- कहीं का भी बजट बनाना है, हेरा-फेरी करनी है, गरीबों का खून चूसना है- बालमखीरा का चूरन खाइए...दिमाग दुरुस्त।

पैसे के लिए चोरी करनी है, राहजनी करनी है, धर्म के काम से जी ऊबता है- बालमखीरा का चूरन खाइए! सब काम हो जायेगा। जी साब! इस भूमंडलीकरण के जमाने में ऐसा चूरन कहीं नहीं मिलेगा- चूरन खाइये और दंगा कराइए....चोट चपाट का खतरा खत्म। चोरी की गाड़ी है, कागज़ कम्पलीट नहीं हैं, गाड़ी का हुलिया बदलवाने से पहले खाइए सिर्फ बालमखीरा का चूरन....कभी नहीं फँसेंगे। आपके पास डाक्टरी की डिग्री नहीं है, बच्चे भूखों मरते हैं, झोलाछाप बनना है। आपकी तमाम मजबूरियाँ हैं- चूरन खाकर जाएँ कुछ नहीं होगा। दफ्तर में काम करते हैं, रिश्वत नहीं मिलती, गुस्सा आता है- बालमखीरा का चूरन! कहाँ तक गिनायें साब...! इसके फायदे ही फायदे हैं, देश के भीड़तंत्र में इससे बढ़िया कोई दवाई नहीं। बालमखीरा का चूरन खाइए– आराम पाइए।

मुकदमा चल रहा है, पेशी लम्बी करवाने के पेशकार पैसे माँगता है। बालमखीरा का चूरन खाइए और पेशकार को भी खिलाइए- दोनों लोग पूरा आराम पाइए। वकील टरकाता है, पेशी पर पेशी लगवाता है, मुंशी लड़ता है, मास्टर भगाता है, फर्जी टी.सी. नहीं बनाता। डिप्टी आपका मुँह ताकता है, उसकी कलम रुकी है, आदेश पारित नहीं करता- बालमखीरा का चूरन खाइए, खिलाइए। आराम पाइए। जी हाँ! इम्तेहान नज़दीक हैं, पढाई नहीं की है। नक़ल का सहारा लेना है। गेस पेपर देखकर उलझन होती है। सोते वक़्त गरम पानी से चूरन लें, पर्चा बढ़िया होगा।

हाँ जी ... हारा हुआ मुकदमा जीतना है। बेंच अनुकूल नहीं बैठती, वकील गड्डी की डिमांड करता है। चैम्बर में चूरन खाकर घुसिए, जज अपने आप खड़ा हो जायेगा, लेकिन ध्यान रखें यह चूरन आप जज को भी खिलाएँ- काम फटाफट हो जायेगा। बस बालमखीरा का चूरन खाइए और पूरी तरह आराम पाइए.....।

जी हाँ एक तरफ हम वैश्वीकरण की ओर जा रहें हैं तो दूसरी ओर इक्कीसवी सदी की ओर- दोनों ओर चाँदी ही चाँदी है। ऐसे में हाजमा ख़राब होना कोई खास बात नहीं है। एक बार फिर हमारी बात जरूर मान लीजिये- बालमखीरा के चूरन की पुड़िया अपने साथ जरूर रखें। सब ओर सुनहरा दिखाई देने लगेगा। ध्यान रखें- बालमखीरा का चूरन !!

मैं बार-बार समझाने की जरूरत नहीं समझता। जब आप खायेंगे तो खुद ही पता चल जायेगा कि बालमखीरा के चूरन में कितनी तासीर है। न उर्दू का झंझट न अंग्रेजी का फिर हिंदी का तो सवाल ही नहीं उठता क्योंकि हम सब ‘हिन्दुस्तानी’ जो हो गये हैं न। हिंदुस्तान के सभी भाषाभाषियों के लिए- सिर्फ बालमखीरा का चूरन।

जी हाँ! रात-रात भर नींद नहीं पड़ती। सोचते-सोचते दिमाग दर्द करने लगता है, बिज़नेस में घाटा आ गया है। वैट लागू है, विरोध की शक्ति नाकाम है- सिर्फ एक ही दवा, बालमखीरा का चूरन!
हाँ साब! “अधाधुंध दरबार मा जो यह चूरन खाय, गदहा ते मानव बने बुद्धि सुधरि सब जाय।”

 ६ जनवरी २०१४