इस सप्ताह-
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अनुभूति
में-
बनवारीलाल खामोश,
महेन्द्र हुमा, दिविक रमेश, सत्यनारायण सिंह, और इंदुकांत
शुक्ल की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- पर्वों के दिन शुरू हो गए हैं और दावतों की
तैयारियाँ भी। इस अवसर के लिये विशेष शृंखला में शुचि प्रस्तुत
कर रही हैं-
पनीर
काठी रोल। |
बचपन की
आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में
संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु-
सर्दी में सावधानी।
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सुनो कहानी- छोटे
बच्चों के लिये विशेष रूप से लिखी गई छोटी कहानियों के पाक्षिक स्तंभ में
इस बार प्रस्तुत है कहानी-
फूलों से
बातें। |
- रचना और मनोरंजन में |
साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक
समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये
यहाँ देखें |
नवगीत की पाठशाला में-
कार्यशालाओं के विषय में कृपया
प्रतीक्षा करें। अगली कार्यशाला की घोषणा ५ दिसंबर को की जाएगी।
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लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत-
प्रस्तुत है पुराने अंकों से ९ जून
२००३ को प्रकाशित
अमरीक सिंह दीप की कहानी—"हरम"।
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वर्ग पहेली-१०९
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से
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सप्ताह
का कार्टून-
कीर्तीश
की कूची से |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों में
भारत से
सुमति
सक्सेना लाल की कहानी-
दूसरी बार न्याय
अभी हफ्ता भर पहले ही तो मैं
लखनऊ से मेरठ आई थी। चाचा के घर में सब कुछ ठीक ठाक ही था। ऐसी
किसी भी अनहोनी की कोई भी तो गंध महसूस नहीं की थी मैंने। इन
सात दिनों में ऐसा क्या हो गया? कैसे हुआ यह सब? पापा मम्मी
तीन दिन लखनऊ रह कर लौट आये हैं। पापा बेहद पस्त, पराजित और
झल्लाये हुये से हैं। मम्मी की परेशानी? उन्हें देखकर समझ नहीं
आता कि सच में परेशान हैं या स्थितियों का मजा ले रही हैं या
दोनो कुछ साथ में है। वैसे भी मम्मी मुझे कभी भी चाची के लिये
संवेदनशील नहीं लग पायी हैं। मेरा
कितना समय लखनऊ मे बीता है मेरी तो अधिकांश पढाई चाची के पास
रह कर ही हुयी है और अब नौकरी। वहाँ मुझे करीब चार महीने बाद
ज्वायन करना है। चाची के साथ रहकर नौकरी करने की कल्पना मात्र
ही मुझे खुशी से भर गई थी...पर चाचा के घर जो कुछ हुआ है उसे
सुन कर मैंने मम्मी से साफ कह दिया था कि अब मुझे लखनऊ नहीं
जाना... किसी भी और शहर के किसी भी कॉलेज में चली जाऊँगी।
आगे-
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दुर्गेश ओझा की
लघुकथा- दान
*
डॉ. अजय कुमार पटनायक से जानें
उड़िया नाटक
: उद्भव और विकास
*
नारायण भक्त का आलेख
भारतीय चित्रकला और पटना कलम
*
पुनर्पाठ में- दीपिका जोशी के साथ पर्यटन
पतझड़ के बदलते रंगो में डूबा
अमेरिका
1 |
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पिछले-सप्ताह-
बालदिवस विशेषांक में |
१
हास परिहास में मीरा
ठाकुर
के साथ- बच्चों के मुख से
*
अमिताभ शंकर राय चौधरी का दृष्टिकोण
भूत कथाएँ तथा बाल मनोविज्ञान
*
डॉ.चक्रधर नलिन से जानें
बाल साहित्य में नवलेखन
*
पुनर्पाठ में- अजय ब्रह्मात्मज का आलेख
बच्चों
का फिल्म संसार
*
बालदिवस के अवसर पर भारत से विनायक
की कहानी
पीली बिल्ली
फिर आना
“माँ, शेर की
दुम क्या हमारी दुम से बड़ी होती हैं ?” “चुप कर! सो जा! बड़ा
दुम वाला आया हैं।” सियारिन ने बेटे को जोर की डाँट लगाईं।
पिछले एक घंटे से वह थपकी दे-देकर अपना सिर पीट रही है और यह
दुष्ट, सोना तो दूर, शेर की दुम की नाप-जोख में लगा है। एक
बच्चा हो, शैतान भी हो, तो भी गनीमत। लेकिन यहाँ तो सियारिन के
चार-चार नयनतारे हैं। दो तो माँद में ही बाप की अगल-बगल चिपके
सो रहे हैं, तीसरा माँ का स्तन मुँह में डाले चुलबुला भी रहा
है और सो भी रहा हैं। लेकिन इधर इस चौथे ने तो नाक में दम कर
रखा है। आधी रात को शेर की दुम के बारे में पूछ रहा हैं।
“अबकी बोला, तो दूँगी एक कंटाप ! कसकर !” माँ ने खोजी सिर को
फिर धमकाया। कुछ देर के लिए आतंकी सन्नाटा। लेकिन दो मिनट बाद
ही छोटा शृंगाल फिर हुआ बेचैन। कसमसाया, और फिर नन्हे बोल
फूटे- “माँ, नींद नहीं आ रही है।”
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