मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है
भारत से सुमति सक्सेना लाल की कहानी— दूसरी बार न्याय


अभी हफ्ता भर पहले ही तो मैं लखनऊ से मेरठ आई थी। चाचा के घर में सब कुछ ठीक ठाक ही था। ऐसी किसी भी अनहोनी की कोई भी तो गंध महसूस नहीं की थी मैंने। इन सात दिनों में ऐसा क्या हो गया? कैसे हुआ यह सब? पापा मम्मी तीन दिन लखनऊ रह कर लौट आये हैं। पापा बेहद पस्त, पराजित और झल्लाये हुये से हैं। मम्मी की परेशानी? उन्हें देखकर समझ नहीं आता कि सच में परेशान हैं या स्थितियों का मजा ले रही हैं या दोनो कुछ साथ में है। वैसे भी मम्मी मुझे कभी भी चाची के लिये संवेदनशील नहीं लग पायी हैं।

मेरा कितना समय लखनऊ मे बीता है मेरी तो अधिकांश पढाई चाची के पास रह कर ही हुयी है और अब नौकरी। वहाँ मुझे करीब चार महीने बाद ज्वायन करना है। चाची के साथ रहकर नौकरी करने की कल्पना मात्र ही मुझे खुशी से भर गई थी...पर चाचा के घर जो कुछ हुआ है उसे सुन कर मैंने मम्मी से साफ कह दिया था कि अब मुझे लखनऊ नहीं जाना... किसी भी और शहर के किसी भी कॉलेज में चली जाऊँगी। पापा ने सुना तो बौखला गए थे। पापा के अनुसार आज भी वह कॉलेज लखनऊ का ही नहीं यू.पी. का भी बेस्ट कॉलेज है... फिर लखनऊ एक समझा बूझा शहर हैं। गनीमत है पापा ने हमेशा की तरह लखनऊ पुरखों की देहरी है वाली बात नहीं दुहराई थी... नहीं तो शायद मेरे मुँह से कुछ कड़वा... कुछ ऐसा जो मुझे नहीं कहना चाहिए... निकल जाता। पापा मेरा ज़िद्दी स्वभाव जानते हैं...

पृष्ठ : . .

आगे-

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।