परिवार के लोग अपने लिए नयी
शॉल खरीद के लाये हैं ये बात मालूम होते ही हरिप्रसाद ने
अपनी बहुत पुरानी शॉल पर पकड़ मजबूत कर ली। किसी भी कीमत पर
वे अपनी पुरानी शॉल छोड़ने को तैयार न थे।
’पिता जी, इस शॉल में जगह जगह पर छेद हो गये हैं। यह
बिल्कुल बेकार जर्जर हो गयी है। कोई देख ले तो हमको भी
शरमाना पड़े। अब ये शॉल ठंड में ठिठुरते हुए रघु को दे दो।’
उनके बेटे ने कहा।
अपनी प्रिय शॉल दे देने की बात सुनते ही हरिप्रसाद ने उसको
और कसके लपेट लिया और ना कह दी।
सब तरह तरह की बातें सुनाने लगे, ’इस उम्र में भी बाबू जी
की माया छूट नहीं रही। जीवन की ढलती साँझ में इन्सान कुछ
दान पुण्य का सोचे, पर इनको पुरानी शॉल तक नहीं छोड़नी ! अब
तो मोह छोड़ो !’
दूसरे दिन अचानक हरिप्रसाद परिवारजनों की बात मानने को
राजी हो गये और सब लोग साथ मिलके रघु के पास गये।
रघु तो अपने शरीर पर लगी शॉल को देख के खुश हो गया और
हरिप्रसाद के परिवार वाले सब स्तब्ध हो रह गये। हरिप्रसाद
संतोषभरी दृष्टि के साथ मुस्कुराये।
रघु ’नयी’ शॉल में बहुत अच्छा लग रहा था।
२६ नवंबर २०१२ |