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कला दीर्घा


भारतीय चित्रकला और पटना कलम
नारायण भक्त


भारतीय चित्रकला के विकास में ‘‘पटना कलम’’ का योगदान अविस्मरणीय है। सारे विश्व में भारतीय चित्रकला को जो ख्याति और प्रशंसा मिली है, उसका उल्लेख पटना कलम की चर्चा के बगैर अधूरा ही रहेगा। प्राचीन काल में मौर्य एवं गुप्त वंश के शासनकाल में भी पाटलिपुत्र की चित्रकला का विकास अवश्य हुआ, किन्तु सही मायने में यह कला यहीं उत्पन्न हुई। यहीं इसका पालन-पोषण हुआ।

कहा जाता है कि पटना शैली के चित्रकारों के पूर्वज प्रतापगढ़ (राजपुताना) के रहने वाले थे। बादशाह अकबर ने आगरा में एक चित्रशाला की स्थापना की। इस चित्रशाला में कला शिक्षकों की नियुक्ति के लिए उन्हीं चित्रकारों में से कुछ का चयन किया। इसी चित्रशाला के चित्रकार मनोहर
पटना शैली की चित्रकला के पूर्वज माने जाते हैं।

मुगल शासन जब अंतिम साँसे गिन रहा था, तब चित्रकारों के कई दल दिल्ली छोड़कर इधर-उधर जीविका की खोज में निकल पड़े, क्योंकि दिल्ली में अब उनका आदर-सम्मान और उन्हें पुरूस्कृत करने वाले नहीं रह गए थे। उन चित्रकारों का एक दल मुर्शिदाबाद चला गया। इसी दल में वे चित्रकार थे, जिन्हें पटना शैली की चित्रकला का पूर्वज माना जाता है। मुर्शिदाबाद से हटाकर चित्रकारों का यह दल पटना चला आया और इन चित्रकारों में से अधिकतर लोदीकटरा, मोगलपुरा, नित्यानंद का कुआँ, मच्छरट्टा (पटना सिटी) आदि स्थानों में आ बसे। उस समय पटना आर्थिक दृष्टि से सुखी-सम्पन्न था। लोगों में ललित कला और विधा के प्रति प्रेम था। दिल्ली की तरह यहाँ भी राजे-रजवाड़े ललित कला के प्रेमी और जानकार थे। दानापुर फौजी छावनी के फौजी अफसर भी चित्रों के प्रेमी थे। अतः चित्रकारों को प्रश्रय और जीविका का साधन मिल गया। आरम्भ में ये चित्रकार अपने मालिकों की इच्छा के अनुसार चित्र बनाते और उनके घरों को चित्रों से सजाया करते थे।

मुर्शिदाबाद से आने वाले चित्रकारों में सेवक राम का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। इनके चित्र पटना संग्रहालय में देखे जा सकते हैं। सेवक राम के जैसे हुलास लाल, झुमक लाल, फकीरचंद लाल, टुन्नी लाल जैसे अनेक चित्रकारों ने
पटना शैली की चित्रकला को विकसित और समृद्ध किया।

सन् १८५० से १८८० ई. की अवधि में पटना शैली के दो प्रमुख चित्रकार शिवदयाल जी और शिवलालजी सामने आए। इन दोनों की अपनी-अपनी विशेषताएं थीं। शिवदयाल लघु चित्र बनाने में सिद्धहस्त थे। इन दोनों ने अपनी-अपनी चित्रशालाएं खोलीं। इन चित्रशालाओं ने पटना कलम को गोपाल लाल, गुरू सहायलाल, बनी लाल, कन्हाई लाल, जयगोविन्द लाल, बहादुर लाल और जमुना प्रसाद जैसे उच्चकोटि के चित्रकार दिए। उस समय श्रीमती दक्षो बीबी और श्रीमती सोना कुमारी भी अच्छी चित्रकारी करती थीं।

धीरे-धीरे चित्रशालाएं बंद हो गई। चित्रकारों की मंडली बिखर गई। बहुत से चित्रकार पटना छोड़कर कहीं और चले गए। कुछ जीविका के लिए कुछ और काम में लग गए, फिर भी एक पुराना घराना लोदीकटरा में रह गया। यह मुंशी महादेव लाल का घराना था। महादेव लाल हाथी दाँत, कागज और अबरख पर भी चित्रकारी करते थे। वे राय दुर्गा प्रसाद के दरबार में रहते थे। १९४३ ई. में पटना सिटी में ही उनका देहान्त हो गया।

भारत प्रसिद्ध चित्रकार ईश्वरी प्रसाद वर्मा पटना शैली के अंतिम चित्रकार थे। उन्होंने पटना सिटी में अपनें नाना प्रसिद्ध चित्रकार श्री शिवलाल जी के यहाँ रहकर शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद कलकत्ता आर्ट स्कूल में प्रोफेसर नियुक्त हुए और वहीं से वाइस प्रिंसिपल के पद से सेवा निवृत्त हुए। कागज और हाथी दाँत पर हर प्रकार का काम करने में वे दक्ष थे। कलकत्ता के संग्रहालय में उनके चित्र सुरक्षित हैं। १९४९ ई. में पटना में ही उनका स्वर्गवास हो गया।

पटना कलम के चित्रकार अत्यन्त प्रतिभाशाली और कुशल कलाकार थे। इनमें कुछ ऐसे गुण थे जो अन्य कलाकारों में दुर्लभ हैं। यह कागज और रंग खुद ही तैयार करते थे। कुछ चित्रों के लिए ये नेपाली कागज का प्रयोग करते थे और खास-खास चित्रों के लिए एक विशेष प्रकार के कागज का प्रयोग करते थे, जिसे वसली कहा जाता था। चित्रों पर चमक और चिकनापन लाने के लिए वे दो फीट चौड़े और ढ़ाई फीट लम्बे एक पत्थर का प्रयोग करते थे। इस पत्थर को अच्छी तरह बराबर करने के बाद उस पर रांजन, गोंद के बुरादे देकर कंबल के टुकड़ों से अच्छी तरह घिसते थे। इस प्रक्रिया से वह आईने की तरह चमकने लगता था। पत्थर पर चित्र का पहला रंग चढ़ाकर उसे पलट देते थे और उसे शंख से घिसते रहते थे। इस प्रक्रिया से रंग बैठ जाता था तथा चित्र में चिकनापन और चमक आ जाती थी।

पटना शैली के चित्रकार कागज के अलावा रंग भी जैसे- वृक्ष की छाल, फूल, पत्थर, धातु आदि तरह-तरह की वस्तुओं से खुद ही तैयार कर लेते थे। कुसुम और हरसिंगार के फूल से लाल, वृक्ष की छाल से पीला, लाजू पत्थर से नीला, लाह से गुलाबी, सीप जलाकर तथा कश्मीरी मिट्टी और शीशा से सफेद, गेरू मिट्टी और शिग्रीक से खास किस्म का लाल तथा चिराग के फुलिए से काला रंग तैयार किया जाता था।

कागज और रंगों के अलावा पटना शैली के चित्रकार तूलिका भी स्वयं ही तैयार कर लेते थे। बारीक चित्रकारी के लिए गिलहरी की पूँछ के बाल से तूलिका तैयार की जाती थी।

पटना कलम के चित्रकारों की चित्रांकन प्रणाली के सम्बन्ध में इस शैली के सुप्रसिद्ध चित्रकार राधामोहन बाबू ने लिखा है-- पटना शैली के चित्रों ने अपने आदर्श व्यवस्था तथा रचना-प्रणाली में अपना विशिष्ट स्थान बनाया है। चित्रांन प्रणाली के विषय में कहा जा सकता है कि शेडिंग में तिरछे बिन्दुओं का प्रयोग किया गया है। आधार-भूमि के अंकन में अधिकतर सुन्दर दृश्यों से काम लिया गया है जैसे- नदी के सामने गृह-द्वार, उपवन, स्तम्भों से युक्त भवन का अंश आदि। चित्रों में मौलिक और चटकीले रंगों का भरपूर उपयोग किया गया है।

पटना कलम के चित्रों के विषय में राधामोहन बाबू कहते हैं कि पटना शैली के चित्रकार राज दरबार से सम्बद्ध घटनाओं और दृश्यों के साथ-साथ दैनिक जीवन की साधारण घटनाओं पर भी अपनी तूलिका चलाते थे, जैसे- संगताराश, चर्मकार, पालकी ढोने वाले, शराब की भट्ठी, पाठशाला आदि के दृश्य भी अंकित करते थे। इनके अलावा पशु-पक्षियों के भी सजीव चित्र बनाते थे। पशुओं में केवल हाथी-घोड़े, निम्न श्रेणी के पशुओं और सवारियों को भी चित्रित किया, जैसे-- गाय, भैंस, इक्का, बैलगाड़ी आदि।

पटना शैली के चित्रकार जनजीवन से जुड़े थे, इसलिए उन्होंने अपनी कलाकृतियों में किसानों-मजदूरों के जीवन को चित्रित किया। उनके चित्रों में मछली बेचनेवालियों, टोकरी बनानेवाले, लुहार, दर्जी, कुम्हार, चर्खा आदि जन-साधारण के जीवन को अंकित किया है।

‘‘पटना कलम’’ की प्राचीन कृति है-- सेवक राम द्वारा निर्मित चित्र-- पटनिया इक्का। शिवलाल का ‘‘एक मुसलमानी विवाह’’ पटना शैली का एक उत्कृष्ट गोपाल लाल का चित्र ‘‘होली’’, महादेव लाल का ‘‘रागिनी गांधारी’’, हुलास लाल का ‘‘जुआड़ियों का अड्डा’’ और ‘‘महिलाओं की मधुशाला’’ तथा ईश्वरी प्रसाद वर्मा के चित्र ‘‘पर्दानशी’’, ‘‘संसार में शिशु’’ और ‘‘भारतमाता’’ पटना शैली के उत्कृष्ट नमूने हैं।

पटना शैली के चित्रों को व्यापक सराहना और ख्याति मिली है। तत्कालीन पटना के बैरिस्टर मानुक साहब, कलक्टर आर्चर, प्रसिद्ध चित्रकार अवनींद्रनाथ ठाकुर, अंग्रेज व्यापारी लयाल आदि कई विदेशी लेखकों, कलाविदों और विद्वानों ने भी पटना शैली के चित्रों की सराहना की है। तत्कालीन अधिकारी आचर्र की पत्नी ने तो पटना-पेटिंग पर एक स्वतंत्र पुस्तक ही लिखी है।

पटना शैली के चित्रों में समकालीन जन-जीवन का बड़ा ही सजीव और प्रभावशाली चित्रण हुआ है। निस्संदेह भारतीय चित्रकला को पटना कलम की देन अत्यन्त महत्वपूर्ण और अविस्मरणीय है। पटना शैली ने भारतीय चित्रकला के विकास और समृद्धि में अभूतपूर्व योगदान दिया है।

२६ नवंबर २०१२

 
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