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“माँ, शेर की
दुम क्या हमारी दुम से बड़ी होती हैं ?” “चुप कर! सो जा! बड़ा
दुम वाला आया हैं।” सियारिन ने बेटे को जोर की डाँट लगाईं।
पिछले एक घंटे से वह थपकी दे-देकर अपना सिर पीट रही है और यह
दुष्ट, सोना तो दूर, शेर की दुम की नाप-जोख में लगा है। एक
बच्चा हो, शैतान भी हो, तो भी गनीमत। लेकिन यहाँ तो सियारिन के
चार-चार नयनतारे हैं। दो तो माँद में ही बाप की अगल-बगल चिपके
सो रहे हैं, तीसरा माँ का स्तन मुँह में डाले चुलबुला भी रहा
है और सो भी रहा हैं। लेकिन इधर इस चौथे ने तो नाक में दम कर
रखा है। आधी रात को शेर की दुम के बारे में पूछ रहा हैं।
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“अबकी बोला, तो दूँगी एक कंटाप ! कसकर !” माँ ने खोजी सिर को
फिर धमकाया। कुछ देर के लिए आतंकी सन्नाटा। लेकिन दो मिनट बाद
ही छोटा शृंगाल फिर हुआ बेचैन। कसमसाया, और फिर नन्हे बोल
फूटे- “माँ, नींद नहीं आ रही है।”
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“तो जा बाप के पास ! खा उन्ही का सिर !” माँ ने पिंड छुडाया और
धकियाते हुए अलग किया।
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बाप की अगल-बगल तो पहले से ही दो का कब्ज़ा था। तीसरे ने भी
अपनी जगह तलाश ली और उतान लेटे बाप के सीने पर ही जाकर पसर
गया। |