अभिव्यक्ति-समूह : फेसबुक पर

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अभिव्यक्ति हिंदी पुरस्कार- २०१२ //  तुक कोश  //  शब्दकोश // पता-


१६. ४. २०१२

इस सप्ताह-

अनुभूति में- श्यामल सुमन, अनिल प्रभा कुमार, ओम प्रकाश तिवारी और संजीव गौतम के साथ नवगीत की कार्यशाला से चुनी हुए रचनाएँ।

- घर परिवार में

रसोईघर में- दाल हम रोज खाते हैं, पर कुछ नया हो तो क्या कहने? प्रस्तुत है १२ व्यंजनों की स्वादिष्ट शृंखला में- काली मलका मसूर

बचपन की आहट- संयुक्त अरब इमारात में शिशु-विकास के अध्ययन में संलग्न इला गौतम से जानें एक साल का शिशु- नहीं से सामना

बागबानी में- कीट नाशक दवा- अक्सर पौधों के पत्तों पर चीटियाँ चलती दिखाई देती हैं। वे यहाँ एफ़िड्स के लिये आती हैं। एफिड्स पत्तियों को खाने वाला...

वेब की सबसे लोकप्रिय भारत की जानीमानी ज्योतिषाचार्य संगीता पुरी के संगणक से- १६ अप्रैल से ३० अप्रैल २०१२ तक का भविष्यफल।

- रचना और मनोरंजन में

नवगीत की पाठशाला में- ार्यशाला-२१ में नवगीतों के प्रकाशन का क्रम पूरा हो गया है। जल्दी ही इस पर समीक्षा प्रकाशित करने का प्रयत्न करेंगे।

साहित्य समाचार में- देश-विदेश से साहित्यिक-सांस्कृतिक समाचारों, सूचनाओं, घोषणाओं, गोष्ठियों आदि के विषय में जानने के लिये यहाँ देखें

लोकप्रिय कहानियों के अंतर्गत- प्रस्तुत है- १६ सितंबर २००४  को प्रकाशित, अमेरिका से सीमा खुराना की कहानी— बूढ़ा शेर

वर्ग पहेली-०७७
गोपालकृष्ण-भट्ट
-आकुल और रश्मि आशीष के सहयोग से

सप्ताह का कार्टून-             
कीर्तीश की कूची से

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साहित्य एवं संस्कृति में-


समकालीन कहानियों में भारत से पावन
की कहानी- फेसबुक मित्र

दिल्ली एयरपोर्ट। सुबह आठ बजकर पचास मिनट।
मैं ठीक समय पर पहुँच गया था। एयरपोर्ट के डिपार्चर लाउन्ज में खड़ा उसे आसपास तलाश कर रहा था। मुझे विश्वास था कि मैं उसे पहचान जाऊँगा। मैंने उसे कभी नहीं देखा था सिर्फ फेसबुक में लगी तस्वीर देखी थी। जब वह कहीं नहीं दिखाई दी तो मैंने मोबाइल फोन पर उसका नम्बर मिलाया। दूसरी तरफ तुरन्त घण्टी बजी मानों उसका मोबाइल मेरे ही नम्बर की प्रतीक्षा कर रहा हो।
‘हैलो?’ उसका परेशान और व्याकुल स्वर मेरे कानों में पड़ा।
‘क्या आप अभी पहुँची नहीं? मैं आ चुका हूँ।’ मैंने हिचकते हुए धीमे स्वर में कहा।
‘मैं रास्ते में हूँ। ड्राइवर बता रहा था कि बस पहुँचने ही वाले हैं।’
‘ठीक है।’ मैंने कहा और फोन काट दिया।
एकाएक मुझे कुछ याद आया। मैं लिफ्ट से नीचे एराइवल लाउन्ज में आया जहाँ... विस्तार से पढ़ें...

*

रतनचंद जैन का प्रेरक प्रसंग
वृद्धाश्रम
*

रचना प्रसंग में विजय कुमार से जानें
क्या कविता का अनुवाद संभव है

*

आज सिरहाने इला प्रसाद का
कहानी संग्रह- उस स्त्री का नाम
*

पुनर्पाठ में देखें-
कोहिनूर का घर गोलकुंडा

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पिछले सप्ताह-


मनोहर पुरी का व्यंग्य
सरकारी इकबाल कमाल है कमाल
*

अज्ञेय का ललित निबंध
ताली तो छूट गई

*

सुधीर विद्यार्थी से इतिहास चर्चा
चाँद के संपादक रामरख सहगल
*

पुनर्पाठ में सुबोध का नगरनामा
लंदन की चकाचौंध

*

समकालीन कहानियों में भारत से सुधा अरोड़ा
की कहानी- काँच के इधर-उधर

मैं घर के अंदर दाखिल हुई ही थी कि देखा चिल्की खिल खिल करती कमरे में चक्कर काट रही है और उसके सिर के ऊपर एक बर्रेनुमा कुछ मंडरा रहा है। पास आई तो देखा, वह बर्रा नहीं, एक बड़ी सी मधुमक्खी थी। सामने बाल्कनी के काँच के दरवाजे़ बंद थे और वह मक्खी काँच के आर पार दिखती रोशनी से धोखा खाकर, बाहर खुले में निकल भागने की कोशिश में बार बार काँच के दरवाज़े से टकरा जाती। ‘‘क्या हो रहा है, चिल्की!’’ मेरे मुँह से एकदम निकला, ‘‘काट लेगी! हट जा!’’ चिल्की ने तो नहीं, मक्खी ने सुन लिया और थक-टूट कर लकड़ी के उस टुकड़े पर जा बैठी जिसे एअर कंडीशनर का खोल बंद करने के लिये लगाया गया था और उस पर करीने से वारली का डिज़ाइन आँका गया था कि वह एअरकंडीशनर का खाली खोल न लगकर चित्रकारी का नमूना दिखे। ‘‘दादी, सो क्यूट ना?’’ चिल्की उसे निहारती रही...‘ विस्तार से पढ़ें...

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

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