रचनाकार
इला प्रसाद
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प्रकाशक
भावना प्रकाशन,
१०९-ए, पटपड़गंज,
दिल्ली-११००९१
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पृष्ठ: १२८
*
मूल्य :
$ १०.९५ कूरियर से
मूल्य: १५० रुपये भारत में
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प्राप्ति-स्थल
भारतीय साहित्य संग्रह
वेब पर
दुनिया के हर कोने में
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'उस
स्त्री का नाम (कहानी संग्रह)
इला प्रसाद समकालीन हिंदी
कहानी में एक परिपक्व और समर्थ कथाकार के रूप में तेजी से
उभर कर हमारे सामने आई हैं। परिपक्व और समर्थ कथाकार होने
की बानगी इला अपने पहले कथा संग्रह ‘इस कहानी का अंत नहीं’
से हिंदी पाठकों को दे चुकी हैं। ‘उस स्त्री का नाम’ इला
प्रसाद का दूसरा कहानी संग्रह है जिसमें पंद्रह कहानियाँ
संकलित हैं। मानवीय संवेदनाओं से भरी इन कहानियों में
मनुष्य के दुख-सुख, उतार-चढ़ाव, आशा-निराशा के अनेक रंग
देखने को मिलते हैं। अधिकतर कहानियाँ अमेरिकी समाज में रह
रहे भारतीय परिवारों द्वारा वहाँ की दैनन्दिन मुश्किलों से
दो-चार होने की कथा
बयान करती हैं।
वर्तमान समय में पूरे विश्व में मानवीय मूल्यों के साथ-साथ
मनुष्य के भीतर की संवेदना का क्षरण हो रहा है। ऐसे में
साहित्य और साहित्य में कहानी और उपन्यास ही वे क्षेत्र
बचे हैं जहाँ इन्हें बचाने की पुरजोर ईमानदार कोशिश एक
लेखक करता है। इला
प्रसाद भी अपने लेखन में इसी पुरजोर ईमानदार कोशिश में
संलग्न है।
किसी भी संग्रह की सभी कहानियाँ पाठकों को एक ही तरह से
प्रभावित करें, ज़रूरी नहीं होता। हर कहानी अपने गठन,
संगठन, प्रस्तुति, भाषा, शैली, कथ्य और चरित्रों के
सृजनात्मक चित्रण के चलते अलग-अलग प्रभाव पाठक पर छोड़ती
है। कुछ कहानियों का प्रभाव पाठक की अंतसचेतना पर गहरा
पड़ता है तो कुछ का कम। वहीं कुछ कहानियाँ इतनी बेजोड़ होती
हैं कि वह पाठक के जेहन में अविस्मरणीय छाप छोड़ जाती हैं।
‘उस स्त्री का नाम’ संग्रह की कहानियाँ पढ़ते हुए इसी
प्रकार मिलाजुला असर होता है। संग्रह में जहाँ ‘एक अधूरी
प्रेमकथा’, ‘बैसाखियाँ’ ‘उस स्त्री का नाम’, ‘मेज’ ‘साजिश’
‘कुंठा’ जैसी उत्कृष्ट और बेजोड़ कहानियाँ हमें पढ़ने को
मिलती हैं, वहीं ‘तलाश’ और ‘मुआवज़ा’ जैसी भी कहानियाँ है
जो पाठक के दिलादिमाग पर उस प्रकार का प्रभाव नहीं छोड़
पातीं कि वह उन्हें याद रख सके। यूँ भी सभी कहानियाँ याद
रखे जाने लायक होती भी नहीं हैं। बस, पढ़ते समय हल्का-सा
क्लिक करती हैं,अच्छी लगती हैं और फिर मन-मस्तिष्क के पटल
से गायब हो जाती हैं। लेकिन पाठक के
मन-मस्तिष्क पर स्थायी
प्रभाव न छोड़ने वाली ये कहानियाँ खारिज कर दी जाने वाली
कहानियाँ भी नहीं होतीं। चूंकि कहानी मात्र कहानी नहीं
होती, वह अपने समाज, काल, परिस्थिति, परिवेश को
प्रतिबिंबित करने की एक सशक्त विधा है। कहानी में अपना
समाज, समय और परिवेश
के साथ-साथ हमें अपना जीवन भी धड़कता दिखाई देता है, तभी तो
वह साहित्य की एक बहुपठनीय और लोकप्रिय विधा है। |
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इला प्रसाद की कहानियों से गुजरते हुए हम पाते हैं कि
लेखिका सामाजिक और परिवेशगत प्रवृत्तियों के प्रति बेहद
सजग और जागरूक है। कहानी को गढ़ना और कहना उन्हें बखूबी आता
है। अपने छोटे- छोटे अनुभवों को कलात्मकता से व्यक्त करने
वाली एक सशक्त भाषा उनके पास है। निरर्थक विस्तार से अपनी
कहानियों को बड़ी सफाई से बचा ले जाने की कला उन्हें आती है
और यह कला भी उनके पास है कि पाठक को कहानी के उस मूल
बिन्दु पर कैसे ले जाकर छोड़ा जाए, जहाँ उस कहानी का अभीष्ट
छिपा होता है। ऐसा लेखक की रचनात्मक कौशल से ही संभव हो
पाता है और यह रचनात्मक कौशल इला प्रसाद में है।
किसी भी प्रकार के छद्म से मुक्त इन कहानियों में एक बेहद
संवेदनशील रचनाकार की चिंताएँ मुखरित हुई हैं। ये चिंताएँ
ने केवल भारतीय परिवारों की रोज़मर्रा की मुठभेड़ों से
संबंधित हैं, अपितु विदेशी धरती पर सांस ले रहे उन तमाम
प्रवासी और ग़ैर-प्रवासी लोगों के जीवन की समस्याओं, उनके
दुख-दर्दों, रोज़मर्रा की उठा पटकों को संजीदगी से रेखांकित
करती हैं।
‘एक अधूरी प्रेमकथा’ में लेखिका ने प्रेम और समर्पण को एक
नये दृष्टिकोण से देखने और उसे अभिव्यक्त करने का सफल
प्रयास किया है। संग्रह की शीर्षक कहानी ‘उस स्त्री का
नाम’ अपने विशेष कथ्य और अपनी विशिष्ट संरचना में एक
उत्कृष्ट कहानी है। विषय में साधारण-सी दिखने वाली कहानी
‘मेज’ पूरे संग्रह में क्लासिक कहानी बन गई है। यह कहानी
अपनी साधारणता में ही असाधारण है। ‘कुंठा’ एक समय चर्चा और
शोहरत के शिखर पर रहे व्यक्ति की समाज में एकाएक बेपहचान
होते जाने के दंश को बेहद खूबसूरती से उकेरती है।
‘तूफान की डायरी’ अमेरिका में आए तूफ़ान ‘गुस्ताव’ पर
केन्द्रित है और भंयकर तूफ़ान से हुई तबाही से प्रभावित
जन-जीवन की कथा बयान करती है। यहाँ तूफान की दहशत है, भय
है, चिंताएं हैं और तूफान के बाद पुनः जीवन को पटरी पर
लाने की जद्दोजहद है। तूफ़ान कहीं भी किसी भी देश में आएं,
अपने पीछे तबाही और लाचारगी के मंजर छोड़ जाते हैं। ‘आकाश’
एक बेहद सुन्दर और प्रतिभाशाली लड़की के धाराशायी होकर
टूटते सपनों की मार्मिक कथा बन पड़ी है।
‘मुआवजा’ न्यूयार्क की तेज रफ्तार ज़िन्दगी और वहाँ के सच
को बयान करती कहानी है। अमेरिकी परिवेश और समाज पर लिखी
कुछ कहानियाँ जैसे ‘मुआवजा’, ‘तूफान की डायरी’ हमारे उस
भ्रम को भी खंडित करती हैं कि पश्चिमी देश श्रेष्ठ और सभ्य
हैं और हमारे ही देश भारत में भेदभाव, शोषण, भ्रष्टाचार और
सांप्रदायिक विद्वेष अधिक है। जब कि सच यह भी है कि
असभ्यता, अमानवीयता, क्रूरता, भ्रष्टाचार, घृणा, शोषण,
भेदभाव विदेशों में भी बहुत है। संग्रह में एक मात्र कहानी
‘तलाश’ अपनी प्रस्तुति में पाठक तक पहुँचने में सफल प्रतीत
नहीं होती है। इन कहानियों की
भाषा सरल है पर कहीं-कहीं इतनी रम्य और मोहित करने वाली है
कि पाठक दंग रह जाता है। संग्रह की पहली ही कहानी की
शुरुआती पंक्तियाँ बानगी के तौर पर पेश हैं- “मन घूमता है
बार-बार, उन्हीं खंडहर हो गए मकानों में, रोता-तड़पता,
शिकायतें करता, सूने-टूटे कोनों में ठहरता, पैंबंद लगाने
की कोशिश करता... मैं टुकड़ा टुकड़ा जोड़ती हूँ लेकिन कोई
ताज़महल नहीं बनता।”
इला प्रसाद की अधिकतर कहानियों की जो उल्लेखनीय विशेषता
है- वह है कहानियों की जबरदस्त पठनीयता और सम्प्रेषणियता।
यदि कहानी पठनीय और सहज सम्प्रेषणीय होगी, तभी पाठक उस
कहानी से भीतर तक एक जुड़ाव महसूस कर सकेगा और कहानी के मूल
मंतव्य को जान-समझ सकेगा। कहना न होगा कि इला प्रसाद अपनी
कहानियों में इस ओर अधिक सतर्क और जागरूक दिखाई देती हैं
और वह कहानी को उलझावों से बचाते हुए उसके भीतर के रोचक
प्रवाह को बनाये रखती हैं। यह रोचक प्रवाह ‘एक अधूरी
प्रेमकथा’, ‘बैसाखियाँ’, ‘उस स्त्री का नाम’, ‘मेज’,
‘हीरो’, ‘मिट्टी का दीया’, ‘साजिश’, ‘कुंठा’ में बखूबी
देखा जा सकता है।
विदेशी धरती के समाज, परिवेश और वहाँ की भिन्न
परिस्थितियों के साथ कोई भारतीय रचनाकार अपने वतन से दूर
रहकर किस तरह सामंजस्य स्थापित करता है और कैसे वहाँ की
कटु सच्चाइयों से बावस्ता होते हुए खट्टे-मीठे अनुभवों को
अपने में समाहित कर अपनी कलम द्वारा उन्हें शब्द देता है,
इसका उदाहरण बहुत से प्रवासी लेखकों की रचनाओं में हमें
बखूबी देखने को मिलता है। इला प्रसाद भी उन्हीं में से एक
ऐसी समर्थ कथाकार हैं जो अपने प्रवास के दौरान एक भिन्न
समाज, भिन्न संस्कृति, भिन्न परिवेश-परिस्थिति को आत्मसात
कर, वहाँ के जीवन की सच्चाइयों से मुठभेड़ करते हुए अपने
छोटे-छोटे दैनन्दिन अनुभवों को अपने लेखन द्वारा बहुत बड़ा
रचनात्मक और साकरात्मक विस्तार देने में सफल हो जाती हैं।
इला प्रसाद के पास देशी-विदेशी अनुभवों का एक बहुत बड़ा
खजाना है यानी उनका अनुभव संसार बहुत व्यापक है। यह अनुभव
संसार एक लेखक में जितना व्यापक होगा, उसकी रचनाओं में
उतना ही वैविध्य होगा। यह रचनात्मक वैविध्य इला प्रसाद की
कहानियों में स्वतः ही दृष्टिगोचर हो जाता है। कुछ
कहानियाँ भारतीय पर्व-त्योहार और अमेरिकी समाज के त्योहार
को केन्द्र में रखकर भी इस संग्रह में हैं जैसे
‘बैसाखियाँ’ ‘होली’ ‘मिट्टी का दीया’। ये कहानियाँ अपनी
भाषा और संवेदना में पाठक के अन्तर्मन को स्पर्श करने में
सफल रही हैं।
कहना न होगा कि इस संग्रह की कहानियाँ अतिवादिता के दोष से
मुक्त बेहद सहज और सम्प्रेषणीय कहानियाँ है। मानवीय
भावनाओं पर लेखिका की पकड़ बहुत गहरी और मजबूत है जो कि
कहानियों के चरित्रों को एक ऊँचाई देने में मदद करती है।
इनमें स्त्री-पुरुष के अन्तर्द्वंदों को ही नहीं, उनकी
आन्तरिक ऊर्जा को रेखांकित करने की सफल कोशिश की गई है।
सबसे अच्छी बात यह है कि लेखिका विदेश में रहकर अपनी
रचनाओं में किसी नॉस्टेल्जिया का शिकार नहीं है, जो कि
प्रायः प्रवासी लेखकों में आसानी से दीख जाता है। लेखिका
जहाँ है, वहाँ के समाज और परिवेश के सूक्ष्म से सूक्ष्म
यथार्थ को अपने लेखन में गहरी संवेदना के साथ साकारात्मक
अभिव्यक्ति देती है।
-सुभाष
नीरव
१६ अप्रैल
२०१२ |