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पर्यटन


कोहिनूर का घर- गोलकुंडा
— पर्यटक


"फतेह दरवाजा किले का मुख्य द्वार है।"
– यह हमारे गाइड अब्दुल्ला की आवाज़ थी। उन्होंने किले की बारीकियों से हमें अवगत कराना शुरू किया और हम उसके अदब और तहजीब के कायल हो चले थे।
यह बहुत ही मजबूत दरवाजा है। हाथियों के हमले से बचने के लिए इसमें वृहत और मजबूत लौह कीलों का इस्तेमाल किया गया है। मुख्य द्वार के अग्रभाग में एक तरंगित मजबूत दीवार का परदा बनाया गया है ताकि आक्रमणकारियों को द्वार सहज ही नज़र न आये। वस्तुतः युद्ध नीति के
मद्देनजर ही इस भव्य किले का निर्माण किया गया है।

हीरे का वाणिज्य केंद्र-

पहाड़ियों पर स्थित गोलकुंडा किला ऐतिहासिक दृष्टि से हीरे का वाणिज्य केंद्र था। मध्यकालीन दक्कन के कुछ सबसे मजबूत किलों में इसकी गिनती होती थी। इसका निर्माण बारंगल के प्रारंभिक शासकों ने लगभग १३६३ में करवाया थ। बाद में यह बाहमनी राजाओं के शासन में रहा। बाहमनी राजाओं के पतन के बाद १५१८ से १६८७ में यह कुतुबशाही शासकों की राजधानी बना। कुतुबशाही शासकों द्वारा ही किले का विस्तार किया गया। इसकी दीवारों, बुर्जों और शास्त्रागारों को और भी मजबूत बनाया गया। कुतुबशाही राजवंश के अंतिम शासक अब्दुलहसन तानाशाह ने असफजाह को दक्कन प्रांत का सूबेदार नियुक्त किया। औरंगजेब ने इस किले को मुगल साम्राज्य में मिला लिया था किंतु असफजाह ने १७१३ में निजामुलमुल्क के नाम से आज़ादी की घोषणा कर दी और निजाओं ने हैदराबाद पर १९४८ तक शासन किया। यह तो
रहा इसका इतिहास पक्ष, अब इस किले के खूबसूरत निर्माण की तरफ दृष्टिपात करें।

इस किले की ऊँचाई ४०० फीट है और पचास से साठ फीट की ऊँचाई में अद्र्धवृत्ताकार उभरी परिधि में मोटी और मजबूत दीवारों का निर्माण किया गया है। बाहरी दीवार के चारों तरफ गहरी खाई है जो सात किलोमीटर के विशाल परिधि में फैली हुई है। इसके आठ भव्य द्वार और सत्तासी बुर्ज हैं जिनकी ऊँचाई पंद्रह से अठारह मीटर तक है। प्रत्येक बुर्ज विभिन्न शक्ति के तोपों से सुसज्जित होता था, जो गोलकुंडा किले को मध्य दक्कन के अन्य किलों के मुकाबले मजबूत और अजेय बनाता था। किले की महत्वपूर्ण इमारतों में शाही किला, शिलाहखाना ह्यतीन मंजिला शास्त्रागारहृ मदन्ना, दरबार हॉल, बारहदरी और मसजिद है। हमारा गाइड अब्दुल्ला रास्ता तय करने के दरम्यान मोटी जानकारियाँ भी देता जा रहा था।

किले का ध्वनि-विज्ञान

प्रवेश द्वार से चंद कदम चलते ही दूरसंचार व्यवस्था का अद्भुत नमूना देखने को मिला। गोलकुंडा किले की वास्तुकला की खास विशेषता इसका ध्वनि–विज्ञान हैं। जिसका उपयोग किले के निर्माण में सुनियोजित ढँग से किया गया है। प्रवेश द्वार पर ताली बजाने की ध्वनि को साफ तौर पर पहाड़ी के शिखर पर अवस्थित किले के भवन में भी सुना जा सकता है। प्रतिध्वनि की यह विशेषता तभी कारगर होती है जब प्रवेश द्वार के छत के अंदरूनी हिस्से पर निर्मित षटकोणीय आकृति विशेष की परिधि में ही ताली बजायी जाए। स्थान विशेष पर लगभग सभी पर्यटक ताली बजाते नजर आते हैं। मान्यता है कि प्रतिध्वनि की यह व्यवस्था किले की सुरक्षा व्यवस्था के मद्देनजर की गयी थी। आगंतुक विशेष मित्र हैं या आक्रमणकारी शिखर पर के सुरक्षा प्रहरियों को भी इसकी सूचना दी जा सके। तात्कालिक विद्वान वास्तुविदों ने किले की इमारतों को इस तरह व्यवस्थित किया है ताकि ध्वनि को प्रतिध्वनि में बदलने में यह कारगर भूमिका निभा सके। यह ध्वनि संचार व्यवस्था किले के उस कक्ष विशेष में भी नियोजित है जहाँ बैठकर शासक किसी फरियादी, दूत या किसी मुखबिर की बातें सुनता था। वक्ता के खड़े होने के स्थान विशेष से शासक नजर नहीं आता था किंतु राजा को वह व्यक्ति साफ–साफ नजर आता था। दूत या मुखाबिर के कपड़े की मामूली–सी सरसराहट पूरे कक्ष को ध्वनि तरंगों से भर देती थी। अब इसके पूर्व की कोई अपने आक्रमण के मकसद में कामयाब हो उसकी मंशा जाहिर हो जाती थी। ध्वनि विज्ञान का यह समावेश दीवारों में भी किया गया है कक्ष विशेष की दीवारों से मुंह सटाकर जो भी शब्द फुसफुसाये जाते हैं – दूर दीवार से कान सटाया हुआ व्यक्ति उन शब्दों को साफ–साफ सुन सकता है। दूर संचार की यह अद्भुत व्यवस्था देशी–विदेशी पर्यटकों को चमत्कृत कर जाती है।

जलापूर्ति की व्यवस्था

किले में सुनियोजित ढंग से जलापूर्ति की व्यवस्था की गयी है। प्रत्येक तल्लों में जलसंचय की व्यवस्था थी। जो टेरीकोटा पाइपों द्वारा विभिन्न तलों के महलों, बगीचों और झरनों में पहुँचायी जाती थी। पाइपों के भग्नावशेष अब भी दीवारों पर देखे जा सकते हैं। मुख्यद्वार के थोड़ी ही दूरी पर अवस्थित है शवस्नान गृह। कुएं के आकार के इस खंड का निर्माण पारसी या तुर्की शैली में किया गया है। इसका उपयोग शाही परिवार के शवों को नहलाने के लिए किया जाता था। किले के अंदर पहाड़ी के शिखर पर एक विशाल कक्ष है जो कुतुबशाही शासकों द्वारा दरबार के लिए प्रयुक्त किया जाता था।

रामदास का कोठा

आगे चलकर रामदास का कोठा है। यह एक मजबूत आयताकार भवन है, इसके अंदर जाने का एक कृत्रिम द्वार है। वास्तव में इसका निर्माण भंडारगृह के लिए किया गया था किंतु अबुल हसन कुतुबशाह (१६७२–१७८७) के दौरान इसे कारागार में बदल दिया गया। भद्राचल रामदास शाही खजाने के खजांची थे। कहा जाता है कि जब शाही खजाने के दुरूपयोग का आरोप लगा था तब उन्हें इसी कैदखने में बंद किया गया था। किलवट यानी शाही निजी कक्ष। यह छोटा किंतु किले के वास्तुशिल्प का सबसे खूबसूरत हिस्सा है।

इत्र से भरा कटोराघर


फतेह मैदान से पोटला बुर्ज जाने के रास्ते में एक कटोरा घर है। चूने और पत्थरों से निर्मित यह घर अब खाली पड़ा है। किंतु कुतुबशाही के स्वर्णिम काल में यह इत्र से भरा रहता था जो अंतःपुर की महिलाओं के लिए होता था। असलाहखाना यानी शस्त्रागार, एक आर्डबरहीन किंतु किले की एक प्रभावशाली इमारत है। यह तीन तल्लों में एक बना है। तारामती मस्जिद कुतुबशाही शासनकाल के वास्तुशिल्प का बेहतरीन नमूना है। यह हिंदू और मुगल शैली का मिला–जुला नमूना है। इसके अतिरिक्त दो मीटर चौड़ाई का एक स्थान है, जहाँ बारह छोटे–छोटे मेहराब बने हैं। बारहदरी भवन का नक्शा इस तरह बनाया गया है ताकि यह पहाड़ी के शिखर का विस्तार लगे। शिखर पर होने की वजह से यह दूर से ही नज़र आता है और भव्य दिखता है। दो तल्ले की इस इमारत में एक खुली छत है, जिसमें एक दर्शक दीर्घा है। जहाँ महत्वपूर्ण अवसरों पर शामियाने लगाये जाते थे। बारहदरी भवन के रास्ते में एक गहरा कुआँ है जो वर्तमान में सूखा है, किंतु उस समय सेना को पानी की आपूर्ति इसी कुएँ से की जाती थी।

अम्बरखाना यानी शाही खजाना

थोड़ी ही दूरी पर जीर्ण–शीर्ण अवस्था में एक भवन है, जिसके कोने में एक गोलाकार सुरंगनुमा रास्ता है। इसकी गहराई लगभग आठ किलोमीटर है। कुतुबशाही शासक आपातकाल में इसका उपयोग करते थे। इस महल के दूसरी तरफ अम्बरखाना यानी शाही खजाना के अवशेष हैं। एक पारसी शिलालेख के अनुसार इसका निर्माण १६४२ में अब्दुल्ला कुतुबशाह ने करवाया था। नजदीक ही किले की अंदरूनी दीवार है जो पूर्णतः अजेय है। इस दीवार का निर्माण बेहद बुद्धिमत्ता से पत्थरों से किया गया है एवं पत्थरों की दरारों को गच्चों से भरा गया है। इसके आगे इब्राहिम मसजिद है। बालाहिशार के अंदर एक हिंदू मंदिर भी है, जिसका नाम मदन्ना मंदिर है। अब्दुलहसन तानाशाह के एक मंत्री के नाम पर इसका नामकरण किया गया है। गोलकुंडा किला के अवशेषों में कुतुबशाही साम्राज्य के कई शासकों के शासनकाल के दौरान बने विभिन्न महल तात्कालीन वास्तुकला के सबसे खूबसूरत नमूनों में से हैं। इनमें से कुछ महल पाँच से छह तल्लों तक के हैं। इनमें जनाना कोठरी, आमोद–प्रमोद के बगीचे, झरने आदि प्रमुख हैं। ऐसे सभी निर्माणों में चमकीले संगमरमर पत्थरों की कारीगरी, फूलों और पत्तियों की नक्काशी और चमकीले बेसाल्ट पत्थरों के परत का इस्तेमाल किया गया है। यह सारी कारीगरियाँ कुतुबशाही शैली की विशेषता हैं।


खूबसूरत प्रार्थना–कक्ष

अनेक खूबसूरत धार्मिक इमारतें भी कुतुबशाही शासनकाल में बनी थीं, जो वास्तुशिल्प के दिलचस्प पहलुओं को अंकित करती हैं। इनमें बाहमनी बुर्ज के निकट बना एक विशाल मसजिद है। इसमें एक खुला प्रांगण और एक प्रार्थना–कक्ष हैं। इसका क्षेत्रफल उत्तर से पश्चिम की ओर ४२ मीटर एवं पूर्व से पश्चिम की तरफ ४५ मीटर है। आंगन के बीचोंबीच तीन कब्रे हैं। कब्रों के गुंबज पर उकेते गये इबारतों के अनुसार यह इब्राहिम कुतुबशाह के मंत्री मुस्तफाखान के बेटों की है। आयताकार प्रार्थना कक्ष में एक मेहराबनुमा छत है। खूबसूरती से तराशे गये इस मुहराबनुमा छत में पवित्र कुरान की आयतें बेमिसाल सुलेख में खुदी हुई हैं। प्रार्थना–कक्ष की दीवारें गचकारी कला को दर्शाती हैं। इस प्रार्थना कक्ष के उत्तरी और दक्षिणी दीवारों ७–४ मीटर के दो छोटे–छोटे कक्ष भी हैं। यह सीधे आँगन में खुलती है। सीढ़ियाँ दोनों कमरों से मसजिद के छत तक जाती है। इसके दक्षिणी दीवार के बीचोंबीच एक अंदर जाने का रास्ता है जिसमें एक दीवार पर एक पर्शियन शिलालेख है।


कोहिनूर का घर है गोलकुंडा

गोलकुंडा का जिक्र हो, रत्नों की दास्तान हो और उसमें कोहिनूर की चर्चा न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता, जब की विश्वविख्यात कोहिनूर का घर की गोलकुंडा किला है। दुनिया का सबसे दुर्लभ और सबसे बेशकीमती हीरा जिसकी वर्तमान अवस्था हर भारतीय के दिल में एक टीस बनकर उभरती है, इसका प्राचीन नाम सामंती मणि था, जिसे भगवान सूर्य ने अपने पुत्र कर्ण को उपहार स्वरूप दिया था। गोलकुंडा में एक गरीब मजदूर को यह हीरा खुदाई के समय मिला था। मीरजुमला ने बतौर नजराना इसे शाहजहाँ को पेश किया,  जिन्होंने इसे तख्त–ए–ताउस में जड़वा दिया। नगीना बाग में बैठकर हमने भी कोहिनूर की याद में चंद आहें भरीं और आपसी फूट और विद्वेष को कोसते हुए गोलकुंडा फोर्ट को अलविदा कहा।

 
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