इस
सप्ताह
समकालीन कहानियों में
यू.के. से अपूर्व कृष्ण की कहानी
अंतर्यात्रा
''ओ-ओ-ओ-ओ...कम-इन…कम-इन-कम-इन...फ़ास्ट..''
ये कहते हुए अगस्त्य ने ट्रेन के स्वतः बंद होते हुए दरवाज़े के दोनों
पल्लों को ताक़त लगाकर रोका। बाहर प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ी अँग्रेज़ महिला ने
एक झटके में ट्रेन के दरवाज़े को देखा, अगस्त्य की आवाज़ सुनी, और समझ गई
कि करना क्या है। महिला ने पहले एक हाथ से अपनी बेटी को डिब्बे के भीतर
धकेला, और दूसरे हाथ में बड़ा-सा चमड़े का बैग लिए ख़ुद भी लपककर डब्बे
के भीतर चली आई। फिर अगस्त्य की ओर देख मुसकुराते हुए कृतज्ञ भाव से
बोली, ''थैंक्यू वेरी मच।'' ''माइ प्लेजर।'' - अगस्त्य ने
मुसकुराते हुए
धीमे से कहा और वापस अपनी जगह आकर खड़ा हो गया।
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हास्य-व्यंग्य में
हरि जोशी की रचना अमरीकी टिकट बड़ा
विकट
जो
जो टिकटार्थी हिंदुस्तान में निराशा को प्राप्त हो रहे हैं, या निकट भविष्य
में होंगे, मेरी उन्हें सलाह है कि वे तत्काल अमेरिका का टिकट कटाएँ। उतरने
के बाद वहाँ टिकट बहुत आसानी से प्राप्त हो जाते हैं। जितना शोरगुल छीना
झपटी, सिर फुटौवल यहाँ करना पड़ता है, उसका सौवाँ भाग भी वहाँ संपन्न कर दिया
तो निश्चिंत हो जाइए, टिकट मिलकर ही रहेगा। एक भारतीय समाजसेवी अपने किसी
संबंधी के पास अमेरिका पहुँच गए। कुछ दिनों में ही अमेरिका रास आने लगा। सोचा
यदि यहाँ भी मैदान में उतरने का अवसर मिल जाए तो फिर कहना ही क्या। कुछ ही
दिनों में उन्होंने चुनाव में खड़े होने की प्रत्याशा में अपने घर पर दरबार
लगाना शुरू कर दिया।
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पर्व परिचय में
राजेंद्र तिवारी के शब्दों में
सूर्य उपासना का पर्व छठ पूजा
छठ
पूजा के इतिहास की ओर दृष्टि डालें तो इसका प्रारंभ महाभारत काल में कुंती
द्वारा सूर्य की आराधना व पुत्र कर्ण के जन्म के समय से माना जाता है।
मान्यता है कि छठ देवी सूर्य देव की बहन हैं और उन्हीं प्रसन्न करने के लिए
जीवन के महत्वपूर्ण अवयवों में सूर्य व जल की महत्ता को मानते हुए, इन्हें
साक्षी मान कर भगवान सूर्य की आराधना तथा उनका धन्यवाद करते हुए मां
गंगा-यमुना या किसी भी पवित्र नदी या पोखर ( तालाब ) के किनारे यह पूजा की
जाती है। प्राचीन काल में इसे बिहार और उत्तर प्रदेश में ही मनाया जाता था।
लेकिन आज इस प्रान्त के लोग विश्व में जहाँ भी रहते हैं वहाँ इस पर्व को उसी
श्रद्धा और भक्ति से मनाते हैं।
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प्रकृति और पर्यावरण में राजीव रंजन प्रसाद की कामना-
बूँद बूँद से घट भरे– भूमिगत जल के परिप्रेक्ष्य में--
भूमिगत
जल, सतह पर पीने योग्य उपलब्ध जल संसाधनों के मुकाबले अधिक महत्वपूर्ण है।
भारत के लगभग अस्सी प्रतिशत गाँव, कृषि एवं पेयजल के लिये भूमिगत जल पर ही
निर्भर हैं और दुश्चिंता यह है कि विश्व में भूमिगत जल अपना अस्तित्व तेजी से
समेट रहा है। विकासशील देशों में तो यह स्थिति भयावह है ही जहाँ जल स्तर लगभग
तीन मीटर प्रति वर्ष की रफ़्तार से कम हो रहा है पर भारत में भी स्थिति कुछ
बेहतर नहीं। केन्द्रीय भूजल बोर्ड के अन्वेषणों के अनुसार भारत के भूमिगत जल
स्तर में 20 सेंटी मीटर प्रतिवर्ष की औसत दर से कमी हो रही है, जो हमारी
भीमकाय जनसंख्या की ज़रूरतों को देखते हुए गहन चिंता का विषय है।
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साहित्य समाचारों में-
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डॉ. शशि तिवारी, मोहन कुमार
डहेरिया, देवी नांगरानी,
राजीव कुमार और स्वाती भालोटिया,
की नई रचनाएँ
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