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   16. 11. 2007

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हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह बाल-दिवस के अवसर पर
साहित्य संगम के अंतर्गत वरलोट्टि रंगसामी की तमिल कहानी का हिंदी रूपांतर टेडी बियर, रूपांतरकार हैं कोल्लूरि सोम शंकर
"पापा, यह गुलाबवाला टेडी बियर अच्छा है ना, खरीद दो ना पापा'' सिंधु ने ज़िद की। उस टेडी बियर का दाम है 795 रुपये।
अख़बारों में चित्र बनाकर जीवन यापन करने मुझ जैसे प्रेस आर्टिस्ट के लिए यह बड़ी राशि है। हम गरीब नहीं...भूखे नहीं रहते। छोटी मोटी ज़रूरतें आसानी से पूरी होती हैं। उन सबकी तो कोई समस्या नहीं बस इस तरह की बाकी ही...मेरे सहकर्मी की शादी है। कुछ उपहार खरीदने के लिए यहाँ इस दूकान पर आया हूँ। लेकिन अपने साथ सिंधु को ले आना मेरी भूल है। वह तो अभी भी उस टेडी बियर को खरीदने की आशा में उसे हाथ में पकड़े हुए है। पर मैं अच्छी तरह जानता हूँ कि सिंधु के साथ ईमानदारी से रहना ही बेहतर है।

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अभिव्यक्ति के कहानी-संग्रह से
पाँच विशिष्ट लेखकों की पाँच लोकप्रिय कहानियाँ-
पिछले सात सालों में अभिव्यक्ति ने जीवन के विभिन्न पहलुओं को रेखांकित करती, विविध विषयों पर आधारित लगभग 500 कहानियों का संकलन किया हैं इस अंक में प्रस्तुत है- बाल-मनोविज्ञान पर आधारित पाँच लोकप्रिय कहानियों का पुनरावलोकन-

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हास्य-व्यंग्य में
अनूप कुमार शुक्ल की रचना बच्चा हाई स्कूल में
मैंने पड़ोस के मित्र से पूछा- क्या बात है? आजकल दिखते नहीं। घर भी बंद ही रहता है हमेशा। कोई चहल-पहल नहीं दिखती। आवाज़ तक बाहर नहीं आती। सब ठीक तो है न! मित्र ने जवाब देने के लिये लंबी सांस लेकर ढेर सारी आक्सीजन खींची लेकिन वह जब तक जवाब के साथ हवा निकाल सकें तब तक हर सुख-दुख में साथ रहने वाली उनकी पत्नी जी बोल पड़ीं- भाई साहब असल में बच्चा हाईस्कूल में है न! उनके चेहरे पर तुरन्त सटीक जवाब देने का गर्व तथा बच्चे के हाईस्कूल में होने का बोझ चस्पाँ था। गर्व तथा बोझ के ऊपर-नीचे होते दो पलड़ों के बीच में उनकी गरदन तराजू की डंडी की तरह तनी थी।

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साहित्यिक निबंध में दिविक रमेश की पड़ताल
हिंदी का बाल-साहित्य परंपरा, प्रगति और प्रयोग
प्रारंभ में ही कहना चाहूँगा कि हिंदी का बाल-साहित्य उपेक्षित और अपढ़ा अथवा अचर्चित भले ही हो लेकिन किसी भी दृष्टि से कम महत्वपूर्ण नहीं है। बल्कि कहा जा सकता है कि आज हिंदी के पास समृद्ध बाल-साहित्य, विशेष रूप से बाल-कविता उपलब्ध है। और इसका अर्थ यह भी नहीं कि बाल-साहित्य की अन्य विधाओं, मसलन कहानी, उपन्यास, नाटक, जीवनी आदि के क्षेत्र में उत्कृष्ट सामग्री उपलब्ध न हो। बाल-नाटकों की एक अच्छी पुस्तक 'उमंग' हाल ही में सुप्रसिद्ध कवि-आलोचक अशोक वाजपेयी के संपादन में राजकमल से प्रकाशित हुई है। यहाँ यह भी स्पष्ट कर दिया जाए कि बाल-साहित्य का मूल आशय बालक के लिए सृजनात्मक साहित्य से है।

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ललित निबंध के अंतर्गत
भारती परिमल का आलेख उम्र पचपन याद आता है बचपन
हममें से भला कौन होगा, जिन्हें अपना बचपन बुरा लगता होगा। एक वही थाती है, जो जीवन भर हमारे साथ होती है, कभी रात को चुपचाप बिना बताए भी चला आता है, यह शरारती बचपन। हम भले ही यह कहते रहें- भला यह भी कोई उम्र है, जो हम अपने बचपन जैसी हरकतें करें? पर वह कहाँ मानता है, थोड़ी-सी चुहल के बाद वह हमसे करा ही लेता है, ऐसी कोई न कोई हरकत, जिसे हम बचपन में बार-बार करते थे। इस बार करते समय हम भी थोड़ा सहम गए थे, कहीं किसी ने देख तो नहीं लिया ना। यह होता है बचपन का एक छोटा-सा अहसास, जो मन को भीतर तक गुदगुदा कर रख देता है।

 

अनुभूति में

कविता वाचक्नवी, शिव भजन कमलेश, राजेंद्र पासवान घायल, शरद तैलंग,  पवन चंदन, कन्हैयालाल शर्मा व भावना कुंअर

पिछले सप्ताह
9 नवंबर 2007 के अंक मे

समकालीन कहानियों के अंतर्गत
भारत से श्रीनाथ की कहानी
उपहार

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हास्य-व्यंग्य के अंतर्गत
हरिशंकर परसाईं की रचना
भोलाराम का जीव

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पर्व परिचय में
दीपिका जोशी संध्या की कलम से
यम द्वितीया की कहानी

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संस्कृति में
चक्र का आलेख
भ्रातृ-द्वितीया की वरदात्री चील

जिस तरह पितृपक्ष में काग और विजयादशमी के अवसर पर नीलकंठ का दर्शन मांगलिक माना जाता है, उसी तरह भ्रातृ-द्वितीया के दिन दिखी चील वरदान का पर्याय मानी गई है। भारत में ही नहीं, यूरोप के अनेक देशों में भी अत्यंत प्राचीन काल से चील शुभ और मंगलकारी मानी जाती है - विशेषकर सफ़ेद जाति की चील। विश्व भर में इसकी आठ-दस प्रजातियाँ पाई जाती हैं।, जिनमें से चार-पाँच केवल भारत में ही उपलब्ध हैं। अनेक चीलों के मात्र पेट के नीचे का भाग सफ़ेद होता है, और अधिकांश चीलें ऊपर से नीचे तक गहरे तांबे के रंग की होती हैं। लेकिन इन सब में जिसे क्षेमकरी कहते हैं, वह सफ़ेद चील ही है।

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घर परिवार में
अर्बुदा ओहरी की कलम से
उफ़ यह थकान

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दीपावली विशेषांक समग्र
अन्य पुराने अंक

सप्ताह का विचार
आपत्तियाँ मनुष्यता की
कसौटी हैं। बिना इन पर खरा उतरे
कोई सफल नहीं हो सकता।
--पं. राम प्रताप त्रिपाठी

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

 

     

 

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