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1. 6. 2007

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हास्य व्यंग्य

इस सप्ताह 5 जून विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर—

समकालीन कहानी में
भारत से सुमेरचंद की कहानी पेड़ कट रहे हैं
रिटायर होने के बाद उनियाल ने भी पर्यावरण मित्र के नाम से एन.जी.ओ. बना कर छोटा सा बोर्ड एक कमरे पर लटका दिया। असल में इस तरह के एन.जी.ओ., बड़े नगरों में काले धंधों से नोट बटोरने वाले बड़े लोगों के लिये, गर्मियाँ बिताने वाले कॉटेज बना-बना कर बेचते थे। कॉटेज बनने वाले स्थान पर पहले से खड़े पुराने पेड़ों को नोटों में बदलते और काली कमाई में भी साझा कर लेते। ऊपर से पर्यावरण संरक्षण की आड़ में पर्यावरण मंत्रालय से मोटा अनुदान भी मार लेते। जिस पर्यावरण को उनियाल सरकारी फ़ाइलों में फलता-फूलता छोड़ कर आया था वह पहाड़ों पर, अपनी किस्मत को रो रहा था।

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हास्य-व्यंग्य में
वीरेंद्र जैन का पॉलिथीन युग पुराण
मैं आज कह सकता हूँ कि दो हज़ार बीस से युग पॉलिथीन युग के नाम से जाना जाएगा। यूरोप से एशिया और अफ्रीका से ऑस्ट्रेलिया तक चारों ओर पॉलिथीनें ही पॉलिथीनें होंगी। भारत के लोग अपनी राष्ट्रवादी शान से कहेंगे कि हिमालय से कन्या कुमारी और अटक से कटक तक जहाँ तिरंगी पॉलिथीनें बिखरी पड़ी हैं, वह शस्य रंगबिरंगी आसेतु हिमालय हमारी पुण्यभूमि है। भाजपा वाले भगवा पॉलिथीनों पर ज़ोर देंगे तो मुस्लिम लीगी हरी पॉलिथीनें फैलाएँगे। कम्युनिस्ट लाल ही लाल पॉलिथीनें लहराएँगे तो काँग्रेसी तिरंगी पॉलिथीनें। सड़कों पर गलियों में, खेतों में तालों में, नदियों-समुद्रों, में पेड़ों की डालों पर, बिजली के तारों पर, सर्वत्र पॉलिथीनें फैली होंगी।

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महानगर की कहानियों में
पर्यावरण की खुशबू में डूबी सुभाष नीरव की धूप
वे भीतर ही भीतर खिन्नाए, 'कैसी बनी है यह सरकारी इमारत! इस गुनगुनी धूप के लिए तरस जाता हूँ मैं। . . .उन्हें अपना पिछला दफ़्तर याद हो आया। कितना अच्छा था वह ऑफ़िस-सिंगल स्टोरी! ऑफ़िस के सामने खूबसूरत छोटा-सा लॉन! लंच के समय चपरासी स्वयं लॉन की घास पर कुर्सियाँ डाल देता था- अफ़सरों के लिए। ऑफ़िस के कर्मचारी दूर बने पार्क में बैठकर धूप का मज़ा लेते थे। पर, यहाँ ऑफ़िस ही नहीं, सरकार द्वारा आवंटित फ़्लैट में भी धूप के लिए तरस जाते हैं वह। तीसरी मंज़िल पर मिले फ़्लैट पर किसी भी कोण से धूप दस्तक नहीं देती। एकाएक उनका मन हुआ कि वह भी सामने वाले पार्क में जाकर धूप का मज़ा ले लें।

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घर परिवार में
अतुल अरोरा पर मौसम की मार- अब तक छप्पन
शीर्षक से फिल्म या फिर इनकाउन्टर जैसे विषय पर लेख का पूर्वानुमान लगाने से पहले आइए आपको कुछ मजेदार तथ्यों से अवगत कराया जाये। १. मादा प्रजाति से भेदभाव छींक जुकाम का कारण है। २. भारतीय छींकने के माले में निहायत ही बदतमीज होते हैं। ३. जुकाम , खाँसी वगैरह का सबसे ज्यादा प्रकोप अप्रैल मई में होता है । ४. बिना आँखे बंद किये छींकना असंभव है, ऐसा न करने पर आँख की पुलिया बाहर टपक कर गिर सकती है। अब आप इन तथ्यों को बकवास करार ही करार देंगे, क्योंकि जुकाम वगैरह तो सर्दी में होता है, और फिर छींकने और शराफत का क्या मेल और उस पर तुर्रा यह कि महिलाओं से भेदभाव का जुकाम का कारण है?

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फुलवारी में
ललित सिंह पोखरिया का बाल-नाटक अपना घर अपनी धरती
तो देख लिया आपने! इन बड़े मकानों में रहने वाले महानों का करिश्मा! धरती के पर्यावरण की रक्षा का दर्द कैसा ये दिखा रहे थे। पर पल पल वो अपने घर के पर्यावरण को मिटा रहे थे। वन की रक्षा, नदियों की रक्षा, रक्षा ओज़ोन परत की। बातें हैं ये बड़ी-बड़ी पहली बात करो घर की। बूंद बूंद से घड़ा भरेगा। कदम कदम से शिखर नपेगा। हम सुधरेंगे जग सुधरेगा। सुधार अपने घर से ही शुरू होता है। यही बात पर्यावरण पर लागू होती है। पूरी धरती के पर्यावरण की रक्षा के लिए, अपने घर के पर्यावरण की रक्षा करनी होगी। ऐसा तभी होगा जब हमारे भीतर इंसानी गुणों की रक्षा होगी। इंसान और पर्यावरण का इतना गहरा नाता है, पेड़ नहीं हैं मात्र वनस्पति वे हमारे भ्राता हैं।

सप्ताह का विचार
बीस वर्ष की आयु में व्यक्ति का जो चेहरा रहता है, वह प्रकृति की देन है, तीस वर्ष की आयु का चेहरा जिंदगी के उतार-चढ़ाव की देन है लेकिन पचास वर्ष की आयु का चेहरा व्यक्ति की अपनी कमाई है। - अष्टावक्र

 

नचिकेता,  राजेन्द्र पासवान घायल,  एकांत श्रीवास्तव, प्रदीप दूबे और
कुंतल कुमार जैन
की नई रचनाएँ

मित्रों,  अभिव्यक्ति का 16 जून का अंक अमलतास विशेषांक होगा। इस अवसर पर अमलतास से संबंधित कहानी, व्यंग्य, नाटक, निबंध तथा अन्य विधाओं में रचनाएँ आमंत्रित हैं। रचना हमारे पास 1 जून तक अवश्य पहुँच जानी चाहिए। --टीम अनुभूति

-पिछले अंकों से-
कहानियों में
वसीयत-महावीर शर्मा
मुलाक़ात - शिबन कृष्ण रैणा
थोड़ा आसमान ...- रवींद्रनाथ भारतीय
क्या हम दोस्त...-उमेश अग्निहोत्री
संक्रमण
- कामतानाथ
फ्रैक्चर - डॉ० मधु संधु
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हास्य व्यंग्य में
कन्या-रत्न का दर्द-प्रेम जनमेजय
संसद में बंदर - राजेन्द्र त्यागी
अपुन का ताज़ा एजेंडा!-गुरमीत बेदी
सारा डेटा पा जाएगा बेटा-अशोक चक्रधर
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धारावाहिक में
ममता कालिया के उपन्यास
दौड़ की दूसरी किस्
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विज्ञान वार्ता में
डॉ. गुरुदयाल प्रदीप का आलेख

रक्तदान महादान
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साहित्य समाचार में
*महुआ माजी कथा (यू.के.) सम्मान व डॉ. गौतम सचदेव पद्मानंद साहित्य सम्मान से अलंकृत
*एमरी विश्वविद्यालय, एटलांटा में हिंदी-उर्दू कवि गोष्ठी
*भारत में जयप्रकाश मानस को माता सुंदरी फ़ाउंडेशन पुरस्कार
*मास्को में हिंदी ज्ञान प्रतियोगिता का आयोजन
*डॉ० रामदरश मिश्र को "उदयराज सिंह स्मृति सम्मान" तथा हरिपाल त्यागी, डॉ०सिद्धानाथ कुमार और राजेश कुमार को "नई धारा रचना सम्मान"
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ललित निबंध में
डॉ. शोभाकांत झा का आलेख
अपवित्रो पवित्रो वा
*
आज सिरहाने
श्रीप्रकाश शुक्ल का कविता संग्रह
जहाँ सब शहर नहीं होता

*
संस्मरण में
मोहन थपलियाल की
कटोरा भर याद में डूबी टिहरी
*
संस्कृति में
वैद्य अनुराग विजयवर्गीय के शब्दों में
दूब तेरी महिमा न्यारी

*
फुलवारी में
मौसम की कहानी का अगला भाग

कोहरा क्यों होता हैं?
*
रसोईघर में
माइक्रोवेव-अवन में पक रही है
गोभी की सूखी सब्ज़ी

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|-
सहयोग : दीपिका जोशी

 

 

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