मुखपृष्ठ

पुरालेख-तिथि-अनुसार -पुरालेख-विषयानुसार -हिंदी-लिंक -हमारे-लेखक -लेखकों से


डॉ० रामदरश मिश्र को "उदयराज सिंह स्मृति सम्मान" तथा हरिपाल त्यागी, डॉ०सिद्धानाथ कुमार और राजेश कुमार को "नई धारा रचना सम्मान"




२१ अप्रैल २००७ को पटना में प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिका "नई धारा" द्वारा तृतीय उदयराज सिंह स्मारक व्याख्यान तथा साहित्यकार सम्मान समारोह भव्य आयोजन सफलतापूर्वक किया गया।

समारोह के दौरान प्रसिद्ध साहित्यकार उदयराज सिंह की धर्मपत्नी श्रीमती शीला सिन्हा ने डॉ० रामदरश मिश्र को "उदयराज सिंह स्मृति सम्मान" से सम्मानित किया। यह सम्मान "नई धारा" द्वारा प्रसिद्ध साहित्यकार उदयराज सिंह की स्मृति में इसी वर्ष से प्रारंभ किया गया है। पुरस्कार में एक लाख रुपए, सम्मान-पत्र एवं स्मृति चिह्न भेंट किया गया। इसके बाद मुख्य अतिथि डॉ० रामदरश मिश्र ने दिल्ली के प्रसिद्ध साहित्यकार हरिपाल त्यागी, रांची के डॉ०सिद्धानाथ कुमार तथा लखनऊ के नाटककार राजेश कुमार को "नई धारा रचना सम्मान" से विभूषित किया, जिसके तहत उन्हें २५-२५ हजार रूपए सहित सम्मान पत्र और स्मृति चिह्न भेंट किए गए।

"मैं रामचरितमानस क्यों पढ़ता हूँ",  विषय पर बोलते हुए डॉं० रामदरश मिश्र ने कहा, "रामचरितमानस` एक महान जीवन-दर्शन है, जिससे भारत की सामाजिक बुनावट को जानने में सुविधा होती है। भारतीय हिंदी समाज की सामाजिक-सांस्कृतिक एकता को सबसे अधिक मजबूती `रामचरितमानस` से मिली, जिस कारण अनेक विदेशी आक्रांताओं के नाना हमलों के बावजूद इस देश की अखंडता बनी हुई है। उन्होंने कहा कि जो लोग इसे केवल धार्मिक दृष्टि से देखते हुए दकियानूसी ख़्यालों में जीते हैं, वास्तव में उन्हें भारत की सांस्कृतिक-चेतना एवं मनुष्य की गरिमा का बोध नहीं होता। कुछ लोग अपने को प्रगतिशील दिखाने की होड़ में आज `रामचरितमानस` की फूहड़ आलोचना कर रहे हैं, लेकिन उत्तर आधुनिक समाज में जो नाना प्रकार की जड़ता आज देखने को मिल रही है, उस गतिरोध को केवल `रामचरितमानस` जैसी कृति के मार्गदर्शन से ही खत्म की जा सकती है। डॉं० मिश्र ने "रामचरितमानस" से अनेकानेक उद्धरण देते हुए कहा कि जिस ग्रंथ ने दुनिया को मॉरिशस, फीजी जैसे अनेक मुल्कों में रह रहे भारतीयों को जीने का पुरुषार्थ दिया, आज उसकी आलोचना उसके ही मुल्क में एक फैशन के तहत हो रही है। लोग इस ग्रंथ की आलोचना कर अपने को आधुनिक दिखाना चाहते हैं, जबकि आधुनिक समाज के निर्माण का श्रेय इसी ग्रंथ को जाता है। मैं जब-जब इस ग्रंथ को पढ़ता हूँ, तब-तब अपने को इस देश के कोटि-कोटि जनसामान्य के अधिक निकट महसूस करता हूँ।"

इस अवसर पर सम्मानित साहित्यकारों ने अपने-अपने उद्बोधन में `नई धारा` के साहित्यिक संकल्पों को स्वागत करते हुए अपने हर संभव सहयोग से इस पत्रिका को समृद्ध करने का आश्वासन दिया। आरंभ में स्वागत करते हुए "नई धारा" के संपादक प्रमथराज सिंह ने कहा कि नई धारा केवल साहित्यिक-प्रकाशन नहीं है, बल्कि हिन्दी सेवा के क्षेत्र में हमारे परिवार की हिन्दी सेवा का वृहत संकल्प भी है, इसलिए इसका विस्तार करते हुए भविष्य में हम नई धारा को और बेहतर बनाएँगे तथा हिन्दी सेवियों का सम्मान भी करेंगे।

समारोह की अध्यक्षता `नई धारा की संचालिका श्रीमती शीला सिन्हा ने की, जबकि कवि समालोचक एवं `नई धारा` के सौजन्य संपादक डॉ० शिवनारायण ने समारोह का संचालन किया। इस अवसर पर देश भर से आये साहित्यकार और बुद्धिजीवी भारी संख्या में उपस्थित थे। अंत में डॉ० रामशोभित प्रसाद सिंह ने धन्यवाद ज्ञापन किया।


जय कुमार
पटना

२४ मई २००७

1

1
मुखपृष्ठ पुरालेख तिथि अनुसार । पुरालेख विषयानुसार । अपनी प्रतिक्रिया  लिखें / पढ़े
1
1

© सर्वाधिका सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक
सोमवार को परिवर्धित होती है।