अब आप इन तथ्यों को बकवास करार ही करार देंगे,
क्यों कि जुकाम वगैरह तो सर्दी में होता है,
और फिर छींकने और शराफत का क्या मेल और उस पर तुर्रा यह कि
महिलाओं से भेदभाव का जुकाम का कारण है?
दिल्ली या मुंबई जैसे किसी शहर में बैठकर ऐसे किसी भी नतीजे
पर पहुँचने से पहले जरा अपनी सोच को आठ हज़ार मील खिसकाइए
और उत्तरी अमेरिका के किसी भी शहर में चार पाँच साल रहकर देख
लीजिए ऊपर की कोई बात दूर की कौड़ी नही लगेगी।
दरअसल उत्तरी अमेरिका में बसंत का आगमन अमूमन अप्रैल के मध्य
तक होता है। यही समय होता है जब विभिन्न प्रकार के पेड़
पौधों वंशवृद्धि के लिए सक्रिय होते हैं। उनकी वंशवृद्धि
पराग-कणों के प्रसार पर निर्भर होती है। अब कुछ प्रजातियाँ
निर्भर करती है कीट पतंगों पर जो कहलाती है एन्ट्रोमोफिलस और
कुछ प्रजातियाँ निर्भर करती हैं वायु द्वारा पराग-कणों के
विस्तार पर जो कहलाती हैं एनिमोफिलस। यही एनिमोफिलस उत्तरी
अमेरिका के लिए बवालेजान बन जाता है। यही नारी प्रजाति से
भेदभाव का दुष्परिणाम भी है। दरअसल पराग-कण या पोलन एलर्जी
का मुख्य कारण है। यह अति-सूक्ष्म पराग-कण श्वसन तंत्र में
जाकर श्वास नलियों की सूजन
,
छींक या जुकाम का कारण बनते हैं। कुछ अन्य दुष्प्रभावों में
ज्वर आना,
आँखे लाल होना भी शामिल है। इनसे लाखों करोड़ों लोग प्रभावित
होते हैं और और यह पोलन प्रतिवर्ष इस तरह कामकाजी आबादी को
बीमार कर अर्थव्यवस्था को करोड़ों का नुकसान पहुँचाता
है। (दाहिनी ओर फ़ोटो में विभिन्न
प्रकार के पराग-कण)
अब मूल कारण तो पता लग गया छींक का
,
पर भला इसमें नारियों से भेदभाव की बात कहाँ से आई?
बात नारियों की नही मादा प्रजाति की हो रही है। दरअसल शहरी
इलाकों में लोगों को अपने घरेलू बगिया में पेड़ पौधे लगाने का
शौक तो बहुत है पर फूल,
फल का कचरा उठाना
,
कीट पतंगों का आना जाना पसंद नही। अब उदाहरण के लिए मान
लीजिए आपके घर के सामने बेरी का झाड़ है,
इतनी बेरियाँ उगती हैं पेड़ पर कि पूरा घर खाकर अघा जाए। अब
पड़ोसियों को कहाँ तक बाँटे और उस पर भी रोज कौन चुने। नतीजा
यह कि फालतू बेरी आपके लॉन में गिरेंगी और सड़कर गंध पैदा
करेंगी और कीट पतंग,
कीड़े मकोड़ों को न्योता देंगी सो अलग। ध्यान देने की बात है
कि फल तो हमेशा मादा प्रजाति के पेड़ पौधे ही देते हैं। अतः
सफाई पसंद शहरी आबादी अक्सर नर प्रजाति के सिर्फ फूल पत्ती
वाले नर प्रजाति के पेड़ पौधे लगा डालते हैं। नतीजा पराग कणों
की अधिकता और बसंत आते ही दनादन छींके।
अब बात करें अमरीकियों की शराफत और हिंदुस्तानियों की
तथाकथित बदतमीज़ी की। यह भी एक मजेदार तथ्य हैं। जरा सोचिए
,
अपने हिंदुस्तान में जब कोई छींकता है तो लोग क्या कहते हैं?
"धत्त-तेरे-की!"
दरअसल बहुतों को अंधविश्वास हैं किसी शुभ काम से बाहर जाने
से पहले छींकना अपशकुन की निशानी है। अमेरिका में आने के
बाद आप देखेंगे कि लोग कहते हैं "गॉड ब्लेस यू" यानी भगवान
आपका भला करे। दरअसल ईसाइयों मे ऐसा माना जाना है कि छींकते
वक्त आपका दिल क्षण भर को रुकता है और आपकी आत्मा मुँह के
रास्ते बाहर आ जाती है। आपकी आत्मा को शैतान न लपक ले,
अतः गॉड ब्लेस यू कहा जाता है ताकि आत्मा वापस शरीर में लौट
जाए। वहीं जर्मन और यहूदी किसी के छींकने पर कहते है
"जिसनडाईट
"
इसका भी मतलब यही है कि भगवान आपका भला करे। पुराने समय में
यूरोप में भयबोनिक प्लेग के फैलने पर लोगों ने जिसनडाईट
कहना शुरू किया
,
ऐसा वे रोगी की स्वास्थ्य कामना हेतु कहते थे। आधुनिक काल
में भी जर्मन स्वास्थ्य शुभकामना जिसनडाईट कहकर व्यक्त
करते हैं।
अब सोचिए किसी के छींकने पर क्या अब भी आप धत्त-तेरे-की
बोलना पसंद करेंगे। बताता चलूँ कि छींकते छींकते,
छींके गिनते ही इस लेख का शीर्षक सूझा है।
१
जून २००७ |