हास्य व्यंग्य

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पॉलिथीन युग पुराण
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वीरेंद्र जैन
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सतयुग वालों को आगामी त्रेता, द्वापर, कलयुग के बारे में पता था। पर पत्थर युग वालों से परमाणु युग के बारे में पूछने का साहस किसी ने नहीं किया अन्यथा पत्थर और सिर का मेल मिलाप हो जाता।

अब युग पदयात्रियों की तरह ख़रामा-ख़रामा नहीं चलते अपितु रॉकेट की गति से चलते हैं। मैं आज कह सकता हूँ कि दो हज़ार बीस से युग पॉलिथीन युग के नाम से जाना जाएगा। यूरोप से एशिया और अफ्रीका से ऑस्ट्रेलिया तक चारों ओर पॉलिथीनें ही पॉलिथीनें होंगी। भारत के लोग अपनी राष्ट्रवादी शान से कहेंगे कि हिमालय से कन्या कुमारी और अटक से कटक तक जहाँ तिरंगी पॉलिथीनें बिखरी पड़ी हैं, वह शस्य रंगबिरंगी आसेतु हिमालय हमारी पुण्यभूमि है।

भाजपा वाले भगवा पॉलिथीनों पर ज़ोर देंगे तो मुस्लिम लीगी हरी पॉलिथीनें फैलाएँगे। कम्युनिस्ट लाल ही लाल पॉलिथीनें लहराएँगे तो काँग्रेसी तिरंगी पॉलिथीनें। सड़कों पर गलियों में, खेतों में तालों में, नदियों-समुद्रों, में पेड़ों की डालों पर, बिजली के तारों पर, सर्वत्र पॉलिथीनें फैली होंगी। कोई नाली ऐसी नहीं होगी जहाँ पॉलिथीनें न फँसी पड़ी हों। सड़कों पर धूल उड़ना बंद हो जाएगी और गाड़ियों के आने जाने पर पॉलिथीनें उड़ा करेंगी। आँधी आएगी तो पॉलिथीनों के बगूले बनेंगे। पानी बरसेगा तो सड़प-सड़प की विचित्र-सी आवाज़ से लोग समझ जाएँगे कि बारिश हो रही है। खिड़कियों में जालियाँ लगी होंगी ताकि पॉलिथीनें अंदर न आ जाएँ।

आस्तिक प्रभु की महिमा बताते हुए कहेंगे कि उसकी लीला देखो उसने कैसी-कैसी पॉलिथीनें बनाई हैं। उपदेश झाड़ने का धंधा करने वाले संत महात्मा आत्मा के बारे में प्रवचन फटकारते हुए बताएँगे कि आत्मा पॉलिथीन की तरह नश्वर होती है। न वो सड़ती है न गलती है। गाय और गधे के पेट से जिस तरह पॉलिथीन यथावत बाहर निकल आती है, उसी तरह शरीरों में आत्मा का प्रवेश और निष्कासन होता है। यह पॉलिथीन की तरह अजर अमर अविनाशी है, घट घट वासी है। दुनिया में ऐसा कौन-सा स्थान है जहाँ पॉलिथीन नहीं है।

पुराने ज़माने के उपदेशक जिन कणों-कणों में परमात्मा का वास होना बतलाते हैं वे सारे कण आज पॉलिथीनों में रखे हैं या यहाँ से वहाँ ले जाए जा रहे हैं। मनुष्य के हाथों में अगर कोई चीज़ लटकी है तो वो पॉलिथीन है। दुकानदार कोई चीज़ तौलने के बाद किसी चीज़ में भर रहा है तो वह पॉलिथीन है। सारा व्यापार, वाणिज्य, उद्योग, पॉलिथीन पर टिका है। पर्यटन व पुरातत्व के सारे स्थल पॉलिथीनों से भरे हैं। कवि उपमा दे रहे हैं कि तेरे होठों का रंग गुलाबी पॉलिथीन की तरह है। जिस कहानी में पॉलिथीन का ज़िक्र न आए वह पौराणिक कथा या ऐतिहासिक कहानी मानी जाएगी। ईसवी सन और ईसा पूर्व के युग विभाजन की तरह पॉलिथीन आने से पहले और पॉलिथीन आने के बाद का विभाजन बनेगा।

फ‍़िल्मी गीतों के मुखड़े होंगे- पॉलिथीन के अंदर क्या है? या मेरी सामने वाली खिड़की में एक लाल पॉलिथीन लटकी है। जहाँ लिखा होगा कि 'यहाँ पॉलिथीन लाना सख़्त मना है' वहीं पर पॉलिथीन कचरे का ढेर लगा होगा। इस ढेर के पीछे लिखा होगा- गधा पॉलिथीन फेंक रहा है। बाहर गाँव सड़क के किनारे शौच के लिए लोग मोटी पॉलिथीनों में पानी ले जाया करेंगे

कचरा बीनने वाले पॉलिथीनों को छोड़ कर सब कुछ बीनेंगे और पॉलिथीन फ्री पार्कों के टिकट बहुत महँगे बिकेंगे। पर्यावरण प्रेमी 'पॉलिथीन स्वास्थ्य लिए हानिकरक है' जैसी वैधानिक चेतावनियाँ मुद्रित करवाने में सफल भी हो जाएँगे तो भी उसका परिणाम वैसा ही होगा जैसा कि सिगरेट के पैकिटों या शराब की बोतलों पर लिखी चेतावनियों का होता आया है।

इस युग में जिस अवतार से जन्म लेने लिए कहा जाएगा तो वह जन्म लेने की जगह सिक लीव पर चला जाएगा।

१ जून २००७