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कहानियाँ

समकालीन हिंदी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है यू.के. से महावीर शर्मा की कहानी— 'वसीयत'


सुबह नाश्ते के लिए कुर्सी पर बैठा ही था कि दरवाज़े की घंटी बज उठी। उठने लगा तो सीमा ने कहा, "आप चाय पीजिए, मैं जाकर देखती हूँ।"
दरवाज़ा खोला तो पोस्टमैन ने सीमा के हाथ में चिट्ठी देकर दस्तख़त करने को कहा।
"किस की चिट्ठी है?" मैंने बैठे-बैठे ही पूछा।
चिट्ठी देख कर सीमा ठिठक गई और आश्चर्य से बोली, "किसी सॉलिसिटर का है। लिफ़ाफ़े पर भेजने वाले का नाम 'जॉन मार्टिन-सॉलिसिटर्स' लिखा है।"
यह सुनते ही मैंने चाय का प्याला होंठों तक पहुँचने से पहले ही मेज़ पर रख दिया। इंग्लैंड में वैध रूप आया था, और इस 65 वर्ष की आयु में वकील का पत्र देख कर दिल को कुछ घबराहट होने लगी थी। उत्सुकता और भय का भाव लिए पत्र खोला तो लिखा था.
''जेम्स वारन, 30 डार्बी एवेन्यू, लंदन निवासी का 85 वर्ष की आयु में 28 नवंबर 2004 को देहांत हो गया। उसकी वसीयत में अन्य लोगों के साथ आपका भी नाम है। जेम्स की वसीयत 15 दिसंबर 2004 दोपहर के बाद 3 बजे जेम्स वारन के निवास पर पढ़ी जाएगी। आपसे अनुरोध है कि आप निर्धारित तिथि पर वहाँ पधारें या ऑफ़िस के पते पर टेलीफ़ोन द्वारा सूचित करें।''
"यह जेम्स वारन कौन है?'' सीमा ने उत्सुकता से कहा. "मेरे सामने तो आपने कभी भी इस व्यक्ति का कोई ज़िक्र नहीं किया।"
मैं जैसे किसी पुराने टाइमज़ोन में पहुँच गया। चाय का एक घूँट पीते हुए मैंने सीमा को बताना शुरू किया।

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