पिछले
सप्ताह
1
हास्य व्यंग्य में
गणेशोत्सव पर शरद जोशी के शब्दों में
अथ
गणेशाय नमः
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प्रकृति
में
डा डी एन तिवारी का
चिर
सखा बांस
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साहित्यिक
निबंध में
विद्याभूषण मिश्र की लेखनी से
सावन
उड़ै कजरिया मस्तानी
°
फुलवारी
में
मौसम के विषय में जानकारी की बातें
मौसम
क्या है?
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कहानियों में
भारत से संतोष गोयल की कहानी
भटकन
मन की
भटकन को सब रंगो के फैलाव ने अपने भीतर समा लिया।
कितना आसान होता है मन को थामना पर उतना ही
आसान होता उसका भटक जाना। रंगीन कांच के भीतर डुबकियां लगाती रही जाने कितनी
देर। दुकान की मालकिन भी चमक
रही थी। लाल हरे नीले रंगो में सराबोर। चटक
चुनरी मे लगे कांच जल रहे गैस के बल्ब में धमक
मार रहे थे। गले में मोटेमोटे लाल हरे दानों
की माला थी जो रौशनी में चमक रही थी। कानों में
भी बड़ी लटकन वाले झुमके थे। मतलब ख़ासा
चमकधमक का इंतज़ाम था तिस पर त्यौहार का मौका।
मार्किट की भी सजधज देखने लायक थी। दीवार पर
सजे व लटके रंगो में लिपटी मैं वहां रूक ही गई
उन्हें निहारती और सराहती।
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इस
सप्ताह
1
कहानियों में
भारत से डा शिबन कृष्ण रैणा की कहानी
बाबू
जी
बीच में थोड़ा
रूककर उन्होंने सामने दीवार पर टंगी अपनी पत्नी की तस्वीर की
ओर देखा और गहरीलंबी सांस लेकर बोले, "आज
हमारी शादी की सालगिरह है। बुढ़िया जीवित होती तो सुबह
से ही इन मेडलों को चमकाने में लग गई होती। ये
मेडल उसे अपनी जान से भी प्यारे थे। जातेजाते डूबती
आवाज़ में मुझे कह गई थी निक्के के बाबू, यह मेडल
तुम्हें नहीं, मुझे मिले हैं। हां मुझे मिले हैं। इन्हें
संभालकर रखना हमारी शादी की सालगिरह पर हर साल इनको
पालिश से चमकाना।" कहतेकहते बाबूजी कुछ भावुक हो
गए। क्षणभर की चुप्पी के बाद उन्होंने फौजी अंदाज़ में ठहाका
लगाया और बोले, "बुढ़िया की बात को मैंने सीने
से लगा लिया।"
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हास्य व्यंग्य में
अंतरा करवड़े कर रही हैं
समाजसेवा
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संस्कृति में
डा नवीन लोहानी से रोचक जानकारी
हमारा
लोक साहित्यः लावनी
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घर
परिवार में
अर्बुदा ओहरी के कारगर सुझाव
बिन
पानी सब सून
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रसोईघर
में
माइक्रोवेव की सहायता से
पकाएं
बेसन
का सब्ज़ीदार चीला
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सप्ताह का
विचार
मानव
का मानव होना ही उसकी जीत है, दानव होना हार है, और
महामानव होना चमत्कार है। डा राधाकृष्णन
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गीतों में शांति
सुमन, कविताओं में नरेन्द्र मोहन व प्रत्यक्षा, देशांतर
में पुष्पिता और हास्य व्यंग्य में नीरज त्रिपाठी की नयी
रचनाएं
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° पिछले अंकों
से °
कहानियों में
गुलाबी
हाथीदीपक शर्मा
फोकसअलका पाठक
मुंबई
टु सतपुड़ापुष्यमित्र
तुम
सच कहती होअभिरंजन कुमार
चाहडॉ शैलजा सक्सेना
रक्तदाननितिन
उपाध्ये
°
हास्य
व्यंग्य में
बंदरों
ने किताबें क्यों फाड़ींगुरमीत बेदी
जनतंत्रडा नरेन्द्र कोहली
राजनीति
और मूंछराजेन्द्र त्यागी
धूप
का चश्मासंतोष खरे
°
साहित्य
समाचार में
जापान से विशेष रपट
टोक्यो
में अंतर्राष्ट्रीय हिंदी सम्मेलन
°
चिठ्ठापत्री
में
चिठ्ठापंडित की पैनी नज़र
जुलाई
माह के चिठ्ठों पर
°
श्रद्धांजलि
में
उस्ताद
बिस्मिल्लाह खां से परिचय
और
एक
महत्वपूर्ण साक्षात्कार
°
संस्मरण
में
अनूप शुक्ल व शोभा स्वप्निल की रचना
पार्षद
और झंडा गीत
°
सामयिकी
में
कन्हैयालाल चतुर्वेदी का आलेख
क्रांतिकारी
घटना का साक्षी
वह
बरगद
°
फिल्मइल्म
में
अजय
ब्रह्मात्मज की पड़ताल
हिंदी
फिल्मों में राष्ट्रीय भावना
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