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नाटक

नाटकों के स्तंभ में प्रस्तुत है भारत से
नितिन उपाध्ये का प्रहसन 'रक्तदान'


पात्र परिचय

चौधरी रणवीर सिह- गाँव के सरपंच, आयु ५५ साल, ऊँची कदकाठी
दीनू- चौधरी जी का मुँहलगा नौकर, आयु २५ साल
पंडित रामदरस- मंदिर के पुजारी, आयु ६० साल
कमल- गाँववासी, आयु ४५ साल
रफीक- गाँववासी, आयु ३५ साल
डाक्टर विनय- सरकारी दवाखाने के डॉक्टर, आयु ३२ साल
डाक्टर वाधवा- शहर के बड़े दवाखाने के डॉक्टर, आयु ५० साल
केसरी सिंह- पार्टी अध्यक्ष, आयु ७० साल
मुरारी- अध्यक्ष का सचिव, आयु ४२ साल

नाटक

सूत्रधार- सुबह का समय। गाँव के सरपंच चौधरी रणवीर सिंह आँगन में पूरे मनोयोग से दातौन कर रहे हैं। उनका हाथ दाँतों पर दातौन ऐसे फिरा रहा है जैसे कोई मंजा हुआ कलाकार सारंगी पर गज फेर रहा हो।
चौधरी रणवीर सिंह- अरे दिनुवाँ, सुबह–सुबह कहाँ मर गया।
दीनू- मालिक मैं तो यहीं हूँ आपके चरण कमलों में।
चौधरी- बस बस, ज़्यादा चापलूसी मत कर, जरा एक लोटा पानी तो ले आ।
दीनू- मालिक वो तो मैं पहले ही ले आया हूँ मैं सब जानता हूँ कि आपको कब क्या चाहिए। (चौधरी खखारकर कुल्ला करते हैं और लोटा दीनू को पकड़ाकर अपनी आरामकुर्सी पर बैठ जाते हैं। दीनू एक बड़े से गिलास में चाय लेकर आता है।)

दीनू- मालिक यह लीजिए, आपकी मनपसंद अदरक वाली चाय ढेर सारी मलाई के साथ।
चौधरी- अरे दिनुवाँ तूने तो तबीयत खुश कर दी। जरा ये तो बता गाँव में क्या चल रहा है।
दीनू- मालिक वो जो पिछली गली में पीली कोठी वाले हैं ना, उनका मंझला लड़का १० लाख रुपया नकद और अपनी अम्मा के ज़ेवर लेकर बंबई भाग गया है हीरो बनने।
चौधरी- अच्छा तब तो सेठ जी को तो हार्ट अटैक पड़ गया होगा, अच्छी नाक कट गई।
दीनू- कहाँ मालिक, वो तो ऐसा दिखा रहे हैं जैसे कुछ हुआ ही नहीं।
चौधरी- क्या जमाना आ गया है लोगों को समाज का तो जैसे डर ही नहीं रहा। जरा घड़ी तो देख कितने बज गए। गाँववाले अभी तक हमारे दरबार में नहीं आए।
दीनू- (उन लोगों को जैसे और कोई काम ही नहीं हैं) बस मालिक वह लोग आते ही होंगे देखिए पंडित रामदरस के साथ कमल और रफीक आ रहे हैं।

(पंडित रामदरस, कमल और रफीक अंदर आते हैं।)
चौधरी- पंडित जी राम राम, अरे दीनू जरा दौड़कर पंडितजी के लिए कुर्सी तो ले आ।
पंडित- राम राम चौधरीजी बड़प्पन तो आपको छू नहीं गया, जब भी मिलते हैं पहले आप ही अभिवादन करते हैं।
(दीनू कुर्सी लाता है।)

दीनू- पंडित जी पाँय लागूँ हमारे चौधरीजी तो बामन की बड़ी इज्जत करते हैं।
(कमल चौधरीजी के पैर छूता है और रफीक आदाब करता है और दोनों सामने बैठ जाते हैं।)
चौधरी- हाँ भई, कहो क्या हालचाल है।
कमल- सब आपकी दया हैं। इस बार तो आपके आशीर्वाद से अपने इलाके में बारिश भी अच्छी हुई है।
रफीक- और आपने गरीब किसानों के लिए आया सरकारी खाद हम लोगों को ब्लैक मार्किट में बेचा था वह भी काफी अच्छी क्वालिटी का था। इस बार फसल काफी अच्छी हुई है।
चौधरी- (खुश होकर) अरे दिनुवा जरा चौधराइन से कहकर सबके लिए चाय–पानी की व्यवस्था करो। मेरे लायक और कोई सेवा हो तो बतलाएँ। मैं तो आप लोगों का सेवक हूँ।
कमल- सरपंचजी अबके दिवाली के बाद आपकी बिटिया का लगन निकला है, तैयारी के लिए थोड़े रुपये मिल जाते तो आपकी बड़ी मेहरबानी हाती। इस फसल के बाद सारा पैसा ब्याज समेत वापस कर दूँगा।
चौधरी- दीनू जरा कमल को तिजोरी से पैसे निकालकर दे दे और कागज पर भी दस्तख़त ले लियो।

(दीनू भुनभुनाता हुआ अंदर चला जाता है। कमल उसके पीछे–पीछे अंदर जाता है। तभी दूर से सरकारी दवाखाने के डॉक्टर विनय परेशान से आते हुए दिखते हैं। उन्हें देखकर रफीक हड़बड़ाते हुए चौधरी और पंडितजी को आदाब कर के निकल जाता है।)

चौधरी- आइये डाक्टर बाबू, क्या बात है? आपका चेहरा पावरकट से बुझे हुए गाज़ियाबाद जैसा क्यों लग रहा है?
पंडित- डाक्टर बाबू बिहार में छुट्टियाँ मनाने तो नहीं गए थे?
डाक्टर बस पंडितजी अब तो आप भी मज़ाक करने लग गए।
चौधरी- तो बतलाइये ना क्या बात है शायद हम आपकी कुछ मदद कर सकें।
डाक्टर आज स्वैच्छिक रक्तदान दिवस है। हमारे गाँव में भी रक्तदान शिविर लगाने का आदेश सरकार से आया है। शहर से बड़े डाक्टर भी इस अवसर पर यहा आ रहे हैं। हमें ५०० बोतलों का लक्ष्य दिया गया है।

(दीनू अंदर से आते हुए बोतलों के बारे में सुनता है तो अपनी विशेषज्ञ राय देने से बाज नहीं आता)

दीनू- डाक्टर बाबू बोतलों की क्या कमी है आप कहें तो अभी चौधरीजी की भट्ठी से निकलवा कर ताजी धार का माल जिस नाम से चाहें भिजवा देता हूँ।
डाक्टर अरे मैं शराब की नहीं खून की बोतलों की बात कर रहा हूँ, जो इस रक्तदान शिविर में मिलेंगी।
पंडित- डाक्टर बाबू गोदान, अन्नदान, स्वर्णदान, तुलादान तो सुना हैं आपके इस रक्तदान शिविर में इस ब्राह्मण को कौन सा दान मिलेगा?
डाक्टर पंडित जी यहाँ आपको कुछ मिलेगा नहीं बल्कि आप अपना खून देंगे।
दीनू- क्या बात करते हो डाक्टर बाबू, आजतक पंडित जी ने किसी को आशीर्वाद के अलावा कुछ दिया है जो अपना खून देंगे? वैसे भी इनके शरीर में खून है भी या नहीं इस बात पर तो पंचायत बैठ सकती है।
पंडित- अरे दीनू तू तो बड़ा शैतान हो गया है। पर ये मरी सरकार हमारा खून लेकर क्या करेगी। क्या अमरीका को बेचेगी?
चौधरी- ये भी आपने खूब कही पंडित जी। हाँ भई डाक्टर, ये क्या घोटाला है?
डाक्टर आपके द्वारा किया गया रक्तदान अमूल्य है तथा इससे किसी जरूरतमंद की ज़िंदगी बच सकती है। स्वस्थ एवं अठारह वर्ष से अधिक आयु का कोई भी व्यक्ति तीन महीने के अंतराल पर अपना रक्त दान कर सकता है। स्वेच्छा से रक्तदान करने की व्यवस्था बहुत से देशों में सभ्यता और प्रगति का प्रतीक मानी जाती है। आपको स्वयं रक्तदान कर के गाँव के सामने उदाहरण प्रस्तुत करना चाहिए ताकि उन्हें स्वेच्छा से रक्तदान की प्रेरणा मिले। रक्तदान के लिए शिविरों का आयोजन इसीलिए किया जाता है कि लोगों को रक्तदान के महत्व की जानकारी हो और उन्हें इसके विषय में फैली हुई
विभिन्न प्रकार की भ्रांतियों और भय से मुक्ति मिल सके।
चौधरी- पर यह खून तुम रखोगे कहाँ?
डाक्टर यह खून ब्लड बैंक में सुरक्षित रखा जाता है।
कमल- तो क्या हमारे खून पर ब्याज भी मिलेगा?
डाक्टर नहीं, जैसे पिछली बार कलुआ नाई को खून की कमी की शिकायत हो गई थी या अब्बास भाई को जीप एक्सीडेंट में काफी चोट आई थी तब उन्हें ऐसे ही ब्लडबैंक से खून दिया गया था।
पंडित- राम राम, तो तुम हमारा खून मलेच्छों और छोटी जात के लोगों को दे दोगे। ना बाबा ना, हम तो अपना पवित्र रक्त तुम्हे ना देगें। हम तो उस शिविर को दूर से भी नहीं देखेगें, नहीं तो हमें गंगा जी में स्नान करने जाना पड़ेगा। हे भगवान क्या कलजुग आ गया है।
चौधरी- हाँ भाई डाक्टर हम भी अपने बहादुर पुरखों का खून, जो हमारी रगों में दौड़ रहा है किसी ऐरे–गैरे को नहीं देंगे और वैसे भी सुई लगवाने से हमें बड़ा डर लगता है।
दीनू- हाँ डाक्टर बाबू हमारे चौधरी जी को तलवार बरछे के घाव खाने पड़ें तो शायद हँसते–हँसते खा लेंगे वैसे अभी तक ऐसा मौका ही नहीं आया है। पर इंजेक्शन की छोटी सी सुई से बड़ा डरते हैं।
चौधरी- अरे दीनू हमारा मज़ाक ना उड़ा। डाक्टर हम इस गाँव के सरपंच हैं, हम आदेश देते हैं कि तुम गाँव के सभी
मरदों का जितना चाहे उतना खून निकाल लो। हाँ, औरतों और बच्चों को छोड़ दो।
दीनू- आपको तो पहले ही समझ जाना चाहिए था डाक्टर बाबू अपने देश में नेता खून बहाना तो जानते हैं पर अपना नहीं जनता का। फिर चाहे धरम के नाम पर हो या सीमा पर लड़ाई हो।
डाक्टर पर आज रक्तदान की बात सुनकर गाँव के सभी मर्द तो खेतों में जा छुपे हैं। चौधरी जी आपको तो रक्तदान करना ही चाहिए। आपको देखकर उनमें भी उत्साह जागेगा। आपका कितना नाम होगा। पेपर में फ़ोटो भी छपेगी।
चौधरी- ना भाई ना, हमसे ये काम ना होने का, आप इस कमल और दीनू को ले जाएँ।
डाक्टर दीनू का खून तो नहीं ले सकता। इसको चार महीने पहले ही पीलिया हुआ था।
कमल- मालिक मुझ गरीब पर यह जुल्म मत कीजिए। में बाल–बच्चों वाला हूँ। अगर मुझे कुछ हो गया तो उनका क्या होगा?
चौधरी- कमल तुम मुझे खून दो मैं तुम्हें कर्ज़ा दूँगा।

(डाक्टर विनय चौधरी का रूख देखकर निराश हो कमल को अपने दवाखाने की तरफ ले जाते है। रास्ते में कमल भाग जाता है डाक्टर उसका पीछा करते हैं।)

दीनू- मालिक आपको तो दुनियादारी की बिल्कुल भी समझ नहीं है। विधानसभा के चुनाव होने वाले हैं। पिछला एम एल ए जेल में है और कोर्ट के आदेश की वजह से चुनाव में खड़ा नहीं हो सकता।
चौधरी- तो तुझे क्या लगता है कि पार्टी मुझे टिकट देगी?
दीनू- वही तो बता रहा हूँ अभी–अभी शहर से फ़ोन आया था शाम को पार्टी के बड़े नेता आपसे बात करने यहाँ आ रहे हैं।
चौधरी- अरे, तो तूने पहले क्यों नहीं बताया, अब मैं क्या करूँ?
दीनू- करना क्या है आँगन में बूढ़ा गधा और दरवाजे पर मरियल सा कटखना कुत्ता बैठे हैं। मैं उनका खून निकालकर आपके नाम पर दवाखाने में जमा करवा देता हूँ वैसे भी ये आपका दाना–पानी खाकर मरने चले हैं।
चौधरी- क्या कहता है गधे और कुत्ते का खून मेरे नाम से जमा करवाएगा?
दीनू- मालिक जानवर है तो क्या खून तो उनका भी लाल ही है।
चौधरी- ठीक है अब तू कहता है तो ये ही सही। चलो शाम की तैयारियाँ करें।

(सरकारी दवाखाना। डॉक्टर विनय कमल को बहला–फुसलाकर रक्तदान करवा रहे हैं।)

दीनू- डाक्टर बाबू, जरा खून लेने की मशीन दे दो। आपको चौधरी जी का ताज़ा–ताज़ा दो–चार बाल्टी खून ला देते हैं।
डाक्टर ये मशीन ले जा पर ज़्यादा खून मत निकालना। मैं भी तेरे साथ चलता पर यहाँ पर कोई नहीं है और क्या पता शहर से कब बड़े डाक्टर आ जाएँ, पर तू खून निकाल तो लेगा?
दीनू- आप तनिक भी फ़िकर ना करो चौधरी जी के साथ रहते आदमी का तो छोड़ो जानवरों का भी खून निकालना अच्छी तरह से आ गया है।

(दीनू चला जाता है और थोड़ी देर में दो बड़ी–बड़ी बोतलों में गधे और कुत्ते का खून ले आता है।)

डाक्टर ये तो तूने बड़ा ही अच्छा काम किया है, ले पचास रुपये। पर चौधरी जी का ब्लडग्रुप क्या है?
दीनू- ये ब्लडग्रुप क्या होवे है, डाक्टर बाबू मुझे तो नहीं पता समझ लो जो गधे और कुत्ते का होवे है वही है।
डाक्टर मजाक मत करो मैं टेस्ट कर लूंगा तब तक इन बोतलों पर चौधरीजी का नाम लिखकर रख देता हूँ। बड़े डाक्टर
आ रहे हैं तू अब जा।

(शहर से डाक्टर वाधवा का आगमन)

डा वाधवा हेलो डा. विनय आप कैसे हैं?
डा विनय- सर, मैं अच्छा हूँ आप कैसे हैं?
डा वाधवा- बढ़िया हूँ । हाँ रक्तदान शिविर कैसा चल रहा है?
डा विनय- ठीक चल रहा है सर, अभी अभी सरपंच जी दो बोतल खून दे गए हैं बाकी लोग भी आ रहे हैं।
डा वाधवा- बहुत अच्छा, इस बार तुम्हारे प्रमोशन की सिफ़ारिश करनी ही पड़ेगी।

(तभी दीनू भागता हुआ आता है पीछे पीछे सर पर खून से तरबतर गमछा लपेटे हुए चौधरीजी कमल और रफीक का सहारा लेकर आते है।)

दीनू- डाक्टर बाबू गजब हो गया चौधरी जी नहाते वक्त फिसल पड़े और उनका सर फट गया है।
डा विनय- अरे तो इन्हे जल्दी से आपरेशन थिएटर में ले चलो और दीनू तुम यह दवाइयाँ और इंजेक्शन ले आओ।

(दीनू इंजेक्शन लेने चला जाता है)

डा वाधवा- इनका तो बहुत खून बह गया है इन्हें खून चढ़ाना पड़ेगा। डॉक्टर विनय इनका ब्लड ग्रुप चेक करो और ब्लड बैंक में स्टॉक चेक करो।
डा विनय- इनका ब्लड ग्रुप तो पता नहीं है पर अभी अभी इन्होंने दो बोतल खून भिजवाया था वही इन्हें चढ़ा देते हैं।

(डॉ. वाधवा और डॉ. विनय चौधरी जी का ऑपरेशन करते हैं और खून की दोनो बोतल चढ़ा देते हैं। तभी दीनू दवाइयाँ लेकर आता है और सब देख सुन कर हक्का–बक्का रह जाता है। वह डॉ. विनय को एक कोने में ले जाकर सब बात सच–सच बताता है।)

दीनू- डाक्टर बाबू गजब हो गया चौधरी जी को आपने गधे और कुत्ते का खून चढ़ा दिया अब क्या होगा?
डा विनय- दीनू तुम चुप रहो। यह बात अगर डॉ वाधवा और सबको पता चल गई तो मैं कहीं का नहीं रहूँगा। मेरी नौकरी जाएगी सो अलग, डाक्टरी का सर्टिफ़िकेट भी छिन जायगा। आज का दिन निकल जाने दो। कल कुछ करेंगे।
दीनू- पर डाक्टर बाबू कल तक ये गधे और कुत्ते का खून क्या रंग दिखाएगा भगवान ही जाने।
डा विनय- कुछ नहीं अब चौधरीजी के शरीर में आदमी के साथ साथ गधे और कुत्ते का खून भी दौड़ेगा इनका दिल जिस किसी का खून पम्प करके शरीर में भेजेगा वैसा बरताव ये करेंगे।

(दीनू, कमल और रफीक चौधरी जी को घर ले जाते हैं।)

(चौधरी जी कुर्सी पर सो रहे हैं दीनू पास ही ऊँघ रहा है चौधरी जी को घर पर होश आता है। वे बड़ी धीमी आवाज में दीनू को पुकारते हैं।)

चौधरी- (आवाज बदल कर गधे की आवाज में बोलता है।) दीनूजी दीनूजी महाराज कहाँ हैं आप? जरा हमें एक गिलास पानी तो दीजिए।
दीनू- कौन बोला? देखते नहीं मालिक सो रहे हैं आ गए भीख मांगने ।
चौधरी- ढेंचूं ढेंचू,  दीनूजी महाराज काहे गुस्सा कर रहे हैं? यह तो हम हैं जरा हमें एक गिलास पानी तो दीजिए।
दीनू- अरे बाप रे जरूर मालिक के अंदर का गधा बोल रहा है। पानी अभी लाते हैं मालिक।
चौधरी- (आवाज बदल कर कुत्ते की तरह बोलता है) गुर्रररर अरे दीनूकी औलाद पानी लाने गया है या बनाने, हम तेरी सब चाल समझते हैं समझता होगा पानी न पीने से चौधरी मर जाएगा और सारी जायदाद तेरी हो जाएगी।
दीनू- ये तो कटखने कुत्ते की आवाज है। मालिक लीजिए पानी अभी लाते हैं।
चौधरी- (कुत्ते की आवाज में) अगर ठीक से काम नहीं किया तो तेरी बोटियों के साथ तेरी हड्डी भी खा जाऊँगा।
दीनू- मालिक काहे गुस्सा करते हैं?
चौधरी- (इंसान की तरह बात करता है) क्या बात है परेशान क्यों हैं?
दीनू- (एक मालिक से निपटना तो जानता था पर अब तीन–तीन मालिकों से कैसे निपटूँ)
चौधरी- (इंसान की तरह बात करता है) कुछ कहा तूने देख जरा पार्टी हाई कमान से कोई आया कि नहीं।

(दीनू जाकर दरवाज़े पर खड़ा हो जाता है दूर से केसरी सिंह और मुरारी आते हुए दिखाई देते हैं)

मुरारी- आप भी कहाँ आगए ? मेरी मानते तो मेरे साले के फ़ार्महाउस पर चलते थोड़ी मौज–मस्ती भी हो जाती और एम एल ए का टिकट भी फ़ायनल कर आते। काम का काम आराम का आराम।
केसरीसिंह- पर तुम्हारे साले के ऊपर प्रदेश की किस अदालत में मुकदमा नहीं चल रहा या किस थाने में केस दर्ज नहीं है। सभी धाराएँ तो लग चुकी हैं। अब तो लगता है कि संविधान में संशोधन कर नयी धाराएँ बढ़ानी पड़ेंगी।
मुरारी- पर वह तो समाज सेवक है और आज हमारा सारा समाज कीचड़ बन गया है उसे साफ करने में खुद पर कीचड़ तो उछलेगा ही।
केसरीसिंह- बस बस, तुम ज्यादा उसकी पैरवी ना करो अब चौधरी जी को ही देख लो कितने सभ्य, सुशील, मेहनती और कर्मठ कार्यकर्ता है। पार्टी हायकमान के हर आदेश का सर झुकाकर पालन करते हैं।
मुरारी- ऐसा आदमी तो बस मास्टर बन सके है। नेता बनने के लिए तो कव्वे जैसा स्याना, सियार जैसा घाघ, सांप जैसा जहरीला, बाघ जैसा...
केसरीसिंह- बस बस ज्यादा हमारी तारीफ न करो तुम तो पूरा चिड़ियाघर ही नेताओं में भर दोगे।

(दीनू आगे बढ़कर दोनों का स्वागत करता है और अंदर ले जाता है।)

दीनू- देखिए तो मालिक कौन आए हैं।
चौधरी- (गधे की आवाज में) अब ये मरा कौन आ मरा अभी वो घाघ बुढ़ऊ केसरी आता ही होगा उसके सामने कोई ना आ जावे।
केसरीसिंह- क्या कहा?
मुरारी- (ऊपर देख कर) सच ही तो कह रहा है।(प्रत्यक्ष में) आपको घाघ बुढ़ऊ कह रहे हैं और आप इन्हें सभ्य, सुशील, विनम्र ना जाने क्या–क्या कह रहे थे।
केसरीसिंह- तुम चुप रहो।
चौधरी- (इंसान की तरह बात करता है) अरे केसरी जी आइये–आइये धन्यभाग हमारे जो आप हमारे घर पधारे।
केसरीसिंह- चौधरी जी यह सर पर चोट कैसे लगी?
मुरारी- चौधराइन का बेलन ज़ोर से चल गया होगा और क्या (केसरीसिंह से “जो अपनी जोरू से मार खाता हो उसे आप टिकट कैसे देगें? मेरे साले को ही देख लो पहली दो बीवियों को दहेज के लिए जला चुका है और अब तीसरी की बारी है)
चौधरी-(इंसान की तरह बात करता है) अब क्या बताएँ?
दीनू- कल रात हमारे गाँव में विदेशी आतंकवादी घुस आए थे उन्हें भगाने में मालिक को यह चोट आ गई।
केसरीसिंह- आपको तो परमवीर चक्र देना होगा।
चौधरी- (कुत्ते की आवाज में) मुझे किस चक्कर में डालने की बात कर रहे हो बुढ़ऊ? खुद के तो कबर में पैर लटके हैं फिर भी अध्यक्ष बने बैठे हो। जरा दूसरी पीढ़ी को भी मौका दो।
मुरारी- यही बात तो मेरे साले ने भी कही थी उसीको टिकट दे दीजिए।
केसरीसिंह- हम तो आपको अच्छा आदमी समझे थे।
चौधरी- (कुत्ते की आवाज में)
बुढ़ऊ तुम तो गए हो सठिया
पैरों में है गठिया
उठती नहीं है लठिया
हो आदमी पूरे घटिया
दीनू- वाह मालिक क्या तुक मिलाई है!
मुरारी- इरशाद इरशाद दिल खुश कर दिया। एक बार फिर से हो जाए।
केसरीसिंह- आप तो बड़े ही बेअदब हैं। हम तो आपको काबिल समझकर जनता का कुछ बोझ देना चाहते थे।
चौधरी- (गधे की आवाज में) आपने तो मुझ पर पहले से ही इतना बोझ लाद रखा है कि और बोझ उठाने के काबिल नहीं रहा। मैं तो चाहता हूँ यह सरपंची भी मुझसे ले ली जाए फिर मैं खेतों में जाऊँ, घास के मैदानों में जाऊँ, खूब घास
खाऊँ, पानी पिऊँ और धूल मिट्ठी में लोट लगाऊँ।
मुरारी- अब इसको खाने को लिए कहाँ बचा है? घास चारा खाने वाले तो पहले ही खा चुके।
केसरीसिंह- लगता है कि आपसे सरपंची भी वापस लेनी ही पड़ेगी।
दीनू- मालिक तो धोबी का कुत्ता हो गए हैं— घर का न घाट का।
चौधरी- (गधे की आवाज में) अरे मूरख मैं कुत्ता थोड़े ही हूँ, मैं तो गधा हूँ। यह केसरीसिंह धोबी चाहकर भी मुझे नहीं निकाल सकता।
मुरारी- अब और क्या बाकी रह गया है, चलिए मेरे साले के फ़ार्महाउस पर आपको ताज़ी–ताज़ी घास... माफ कीजिएगा हलवा पूरी खिलाता हूँ।
केसरीसिंह- हम जाते हैं दिल्ली में हायकमान को पूरी रिपोर्ट देंगे।
चौधरी- आप नाराज होकर क्यों जा रहे हैं दीनू क्या हो गया?
(चौधरी बेहोश होकर गिर जाते हैं)

दीनू- क्या से क्या हो गया?
(तभी डा विनय आते हैं)

डा विनय- चलो दीनू, आज तो चौधरी जी के रक्तदान के बाद गाँव वालों में तो होड़ ही लग गई काफी खून इकठ्ठा हो गया है। अब हम डायलिसिस कर के चौधरी जी का सारा खून ही बदल देंगे।
दीनू- अब की बार किसी पढे.–लिखे और सभ्य आदमी का खून चढ़ाइयेगा।


(डा विनय डायलिसिस कर के चौधरी जी का सारा खून बदल देते है)

चौधरी- आज मैं समझ गया हूँ रक्तदान की महत्ता। अब मैं खुद साल में दो तीन बार रक्तदान करूँगा और लोगों को भी प्रेरित करूँगा।

(पर्दा बंद होता है)

१६ जुलाई २००६

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