|  | "मैं हवा बन 
					जाना चाहती हूँ।""क्यों?"
 "हवा बन, इन पानी की लहरों को दूर तक चूमते हुए, कहीं दूर 
					जंगलों में खो जाना चाहती हूँ।"
 "तो यह कहो कि ज़िंदगी से भागना चाहती हो।"
 "इसमें ज़िंदगी से भागने की बात कहाँ से आ गई?"
 "तो हवा बन कर हवा हो जाने का मतलब?"
 "तुम हर बात को बहस क्यों बना देते हो," कहते–कहते उसने गर्दन 
					मोड़ दूसरी ओर देखना शुरु कर दिया।
 "बहस नहीं, सच्चाई कहो, सच से सब कतराते हैं, जैसे तुम अब मुँह 
					मोड़ कर कतरा रही हो।"
 वह झटके से उठ बैठी। दोनों कुछ देर पहले उस पार्क में आए थे। 
					पार्क बड़ी झील के किनारे था। शाम धीरे–धीरे पक्षियों के झुंडों 
					के रूप में पेड़ों पर उतर कर चहचहा रही थी। इतना शोर हो रहा था 
					कि पहले उसे लगा कि यहाँ से चली जाए, पर यह सोचकर कि लोगों के 
					शोर से तो चिड़ियों का शोर अच्छा, वे दोनों कुछ दूर टहलते से 
					निकल गए थे। नवंबर के शुरुआत की शाम, बहुत से पेड़ों के पत्ते 
					झर चुके थे, जो शेष थे अपना पीलापन लिए हवा के रुख के सामने 
					अड़ियल से खड़े थे। आज 
					हवा में ठंडक कुछ कम थी, 
					लोग केवल हल्के कोट से काम चला सकते थे।
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