शुषा लिपि सहायता  °  लेखकों से
कृपया केवल नए पते पर पत्रव्यवहार करें

आज सिरहानेउपन्यासउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथापुराने अंकनगरनामारचना प्रसंगपर्व पंचांग
घर–परिवारदो पलनाटकपरिक्रमापर्व–परिचयप्रकृतिपर्यटनप्रेरक प्रसंगप्रौद्योगिकीफुलवारीरसोईलेखक
विज्ञान वार्ताविशेषांकहिंदी लिंकसाहित्य संगमसंस्मरणसाहित्य समाचारसाहित्यिक निबंधस्वास्थ्यहास्य व्यंग्य

 

पिछले सप्ताह
फुटबॉल विशेषांक में

हास्य व्यंग्य में
पत्नियों को रविशंकर श्रीवास्तव की टीप
मैच के समय ध्यान रखें

°

दृष्टिकोण में
फुटबॉल पर ओशो के विचार
सभ्य समाज की हिंसा का निकास

°

सामयिकी में
अर्बुदा ओहरी से रोचक जानकारी

फुटबॉल की दुनिया

°

फुलवारी में
फुटबॉल से संबंधित जानकारी, रंग भरने के लिए चित्र, शिशुगीत और शिल्पकोना–
खिलाड़ी फुटबॉल का

°

साहित्य संगम में  
पद्मा सचदेव की डोगरी कहानी का
हिंदी रूपांतर
फुटबॉल

सामान पैक करके वह बोला, "आप ज़रा रूकिए, मैं अभी आया।" यह कह कर वो भीतर चला गया। बाहर आया तो उसके हाथ में एक फुटबॉल था। उसने उसमें हवा भरी और फिर फ़र्श पर टप्प से उछाल कर जांचने लगा– एक–दो–तीन। मुझे लगा वह हमें भूल कर खुद फुटबॉल खेलने लगा है। फिर उसने फुटबॉल को ऊपर उछाल कर कैच किया और हाथ में पकड़ लिया फिर हंस कर बोला, "यह बिलकुल ठीक है।" अब वो फुटबॉल को हाथ में लेकर साफ़ कर रहा था, फिर भी तसल्ली न हुई तो वह अपनी कमीज़ के अगले हिस्से के कोने के साथ बड़े प्यार से फुटबॉल रगड़ने लगा जैसे पॉलिश कर रहा हो।

 अपनी प्रतिक्रिया
लिखें पढ़ें

Click here to send this site to a friend!

 

इस सप्ताह

कहानियों में
भारत से रवींद्र बत्रा की कहानी
ज़िंदगी जहां शुरू होती है

इस दुनिया में रोटी कमाने के लिये जो काम आमतौर पर किये जाते हैं, वैसा कोई काम भजनी नहीं करता था। पहले–पहल भजनी को देखने वाला सोच सकता था, कि उसकी जिन्दगी के कुछ ही दिन शेष बचे हैं। उसका शरीर इतना अशक्त था, कि मुश्किल से वह अपने काम करता। अक्सर उसके हाथ कांपते रहते और कमर झुकी होती। बाल अस्त–व्यस्त रहते और आंखों पर चश्मा चढ़ा होता, जिसे भजनी बार–बार ठीक करके इस तरह देखता, जैसे देखने के लिये उसे बहुत मेहनत करनी पडती हो। दिन भर भजनी का यही हाल रहता। पर रात की महफिल में ढोलक की थाप पडते ही, भजनी के मरियल जिस्म में जैसे बिजली कौंध जाती।

°

हास्य व्यंग्य में
डा नरेन्द्र कोहली की मुसीबत
भोंपू

°

पर्व परिचय में
सतीश गुप्त का आलेख
पुरी की रथयात्रा

°

घर परिवार में
हिंदी ब्लॉगर की कलम से
दुनिया को बदलता भारत

°

रसोईघर में
सबसे जल्दी तैयार होने वाला
मटर पुलाव

 सप्ताह का विचार
दय होते समय सूर्य लाल होता है और अस्त होते समय भी। इसी प्रकार संपति और विपति के समय महान पुरूषों में एकरूपता होती है। —कालिदास

 

माधव कौशिक के गीत, रामेश्वर दयाल के दोहे, डा भूतनाथ तिवारी की कविता और ग़ज़लों में ढेर सी रचनाएं

–° पिछले अंकों से °–

कहानियों में
राजधानी में हार–असग़र वजाहत
यादों के गुलमोहर–शैल अग्रवाल
गुलमोहर–डॉ शांति देवबाला
शहादत–सुषमा जगमोहन

भाई साहब–गिरीश पंकज
ठूंठ–ऋषि कुमार शर्मा

°

हास्य व्यंग्य में
सपने में साक्षात्कार–गुरमीत सेठी
है किसी का नाम गुलमोहर–अनूप शुक्ल
राम! पढ़ मत, मत पढ़–डा प्रेम जनमेजय
आरक्षित भारत –रविशंकर श्रीवास्तव

°

साक्षात्कार में
मधुलता अरोरा की बातचीत
असग़र वजाहत के साथ

°

आज सिरहाने
अभिनव शुक्ल का कविता संग्रह
अभिनव अनुभूतियां

°

साहित्य समाचार में
रवीन्द्रनाथ त्यागी स्मृति व्याख्यान माला
मीडिया के बदलते सरोकार
°

प्रकृति में
अर्बुदा ओहरी का तथ्यों से भरपूर आलेख
लाल फूलों वाला गुलमोहर
°

ललित निबंध में
पूर्णिमा वर्मन के साथ साहित्य की गली में
गुलमोहर दर गुलमोहर
°

नाटक में
मथुरा कलौनी की संवेदनशील प्रस्तुति
संदेश

 

आज सिरहानेउपन्यासउपहारकहानियांकला दीर्घाकविताएंगौरवगाथापुराने अंकनगरनामारचना प्रसंगपर्व पंचांग
घर–परिवारदो पलनाटकपरिक्रमापर्व–परिचयप्रकृतिपर्यटनप्रेरक प्रसंगप्रौद्योगिकीफुलवारीरसोईलेखक
विज्ञान वार्ताविशेषांकहिंदी लिंकसाहित्य संगमसंस्मरणसाहित्य समाचारसाहित्यिक निबंधस्वास्थ्यहास्य व्यंग्य

© सर्वाधिकार सुरक्षित
"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
यह पत्रिका प्रत्येक माह की 1 – 9 – 16 तथा 24 तारीख को परिवर्धित होती है।

प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना  परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन 
 सहयोग : दीपिका जोशी
फ़ौंट सहयोग :प्रबुद्ध कालिया

     

 

 
Google
WWW Search www.abhivyakti-hindi.org