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पुरालेख
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संस्कृति में °
चिट्ठा–पत्री में °
साहित्यिक निबंध में °
कहानियों में
वह बड़ी प्यारी–सी आवाज़ में बोला,
"हम आ जाएं?" जैसे घंटियां–सी बज उठी हों। उसके इस छोटे–से प्रश्न
में कशिश थी, संगीत था, आदाब था। वह अंदर आने के लिए पूछ रहा
था।आज्ञा ले रहा था। लेकिन उसने आज्ञा की प्रतीक्षा नहीं की।
शर्माता–लजाता, छोटे–छोटे कदम रखता कमरे में चला आया था। उसकी
आंखों में कुतूहल था। अजनबीयत का अहसास और थोड़ा–सा भय। वह आहिस्ता
से चलता हुआ आया– मुझे देखता–सा, दीवारों को देखता–सा,
शैल्फ
घड़ी, दरवाज़े, किताबें सबको देखता–सा, शायद इनमें किसी को
भी न देखता–सा, सिर्फ़ अपनी दुनिया– अपने बचपन की सतरंगी दुनिया के
साथ चलता–सा।
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कहानियों में
डॉक्टरों ने कह दिया था कि जिन्हें आप बुलाना
चाहते हैं, बुला लें . . .बचने की उम्मीद नहीं है। सो प्रवेश ने रोते हुए
सब रिश्तेदारों व अपनो को फ़ोन कर दिए थे। गिन्नी ने ड्रॉइंगरूम का फर्नीचर
उठवा दिया – दरियां बिछवा दीं। सबके बच्चे इकट्ठे होकर धमा–चौकड़ी मचा रहे
थे। प्रवेश व उसके कुछ दोस्तों ने खाने का व बिस्तरों का इंतज़ाम अपने
ज़िम्मे लिया। आख़ीरकार इतने लोगों को संभालना भी तो था। पापा, अनन्या व
दोनों भाई भी वहीं थे। तीसरी रात आ चली थी, नीता को होश नहीं आया था। और
डॉक्टर सलाह मशवरा करने पहुंच गए थे। बोले कि बौडी रिसपौंड नहीं कर रही है।
ईश्वर का जाप चल रहा था। लोगों की भीड़ बढ़ रही थी।
हास्य व्यंग्य में
प्रौद्योगिकी में
पर्यटन में
परिक्रमा में
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– पिछले अंकों से –
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आज सिरहाने।
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