अनुभूति

1. 6. 2004

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पिछले सप्ताह

उपन्यास में
स्वदेश राणा के नये अप्रकाशित उपन्यास
कोठेवाली का अंतिम भाग

मुझे ठीक से समझाना नहीं आता मेरी गुड़िया। लेकिन फिर भी कोशिश करती हूं। माटी को रंगना क्यों? रूंधी माटी तो अपने ही रंग लेकर तपती है न? गाचनी, बिस्कुटी, स्लेटी, नीला, ऊदा, नस्वारी। हर रंग का अपना छोटा सा कुनबा। जितनी तेज़ धूप की गरमी, उतनी चटख़ रंग की शोखी। जैसी झीनी छांव वैसा हल्का रंग।
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परिक्रमा में
शैल अग्रवाल की लंदन पाती
यात्रा और पड़ाव
तथा
सुमन कुमार घई की कनाडा कमान
टोरोंटो में छाया प्रो अशोक चक्रधर का जादू
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विज्ञान वार्ता में
डा गुरूदयाल प्रदीप प्रस्तुत कर रहे हैं
दो माँओं की बेटी ‘कागुया’
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कहानियों में
भारत से प्रत्यक्षा की कहानी
चोरी

नील का फोन दो मिनट पहले आया था। बस एक लाइन र् "आ गया हूँ। आधे घंटे में आय विल बी देयर"। मन में एक बवंडर फिर से उठ गया था। दो दिन पहले जब नील का फोन आया था ये खबर करने कि वो भारत आ गया है और उससे मिलने आयेगा तब से ही रीनी का मन बेहद अशांत हैं। शांत ठहरे जल में जैसे कोई बड़ा सा पत्थर फेंक दें। तरंग एक पर उठती जा रही है। अपने मन को संभाला। एक नजर पूरे घर पर दौड़ाई। मेहमान वाले कमरे पर विशेष ध्यान दिया। पीले फूलों वाला पिलो कवर।
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!इस सप्ताह

कहानियों में
यू के से तेजेन्द्र शर्मा की कहानी
चरमराहट

इस समय भी उसे अपना नाम याद नहीं आ रहा था। उसकी आंखों में आंसू आ गए थे, लाल आंसू! वह कभी उस दूर तक फैले मलबे को दख रहा था‚ तो कभी सामने बने कच्चे–पक्के मन्दिर को। उस टूटे हुए मलबे में से रह–रहकर अज़ान की आवाज़ें निकलकर जैसे हवा में लहरा रही थीं। पूरे वातावरण का तनाव रह–रहकर उसकी नसों–नाड़ियों में घुसा जा रहा था। मन्दिर में से आ रही आरती की आवाज़ भी उसके तनाव को ढीला नहीं कर पा रही थी। आस–पास के लोगों के चेहरों पर अविश्वास और असुरक्षा की भावना जैसे गर्म लोहे से अंकित कर दी गई थी।

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नगरनामा में
निर्मल वर्मा द्वारा डायरी शैली में लिखा गया हार्वर्ड का वृतांत
सीढ़ियों पर सिगरेट

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साक्षात्कार में
शहनाई वादक बिस्मिल्लाह खां से
डा दामोदर खड़से की बातचीत
संगीत सारा झगड़ा खत्म
कर देगा

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मंच मचान में
अशोक चक्रधर प्रस्तुत कर रहे हैं
सखाभाव की साख—नीरज

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फुलवारी में
जंगल के पशु श्रृखला में जानकारी 
याक
हिरन का एक सुंदर सा चित्र
रंगने के लिए
और कविता — याक
!°!

!सप्ताह का विचार!
ल में मीन का मौन है, पृथ्वी पर पशुओं का कोलाहल और आकाश में पंछियों का संगीत पर मनुष्य में जल का मौन पृथ्वी का कोलाहल और आकाश का संगीत है।
—रवीन्द्रनाथ ठाकुर

 

अनुभूति में

जकार्ता से अशोक गुप्ता, 
यू के मोहन राणा और
भारत से सरदार
कल्याण सिंह की
नई रचनाएं

° पिछले अंकों से°

कहानियों में

पीठ–ममता कालिया
बादल छंट गए–अलका प्रमोद
गौरैया–रवीन्द्र कालिया
ढंकी हुई बातेंतरूण भटनागर
यही सच हैै–मन्नू भंडारी
आई एस आई एजेंट–महेश चंद्र द्विवेदी
°

नगरनामा में
ग़ज़ाल ज़ैग़म का इलाहाबाद
मौसम मेरे शहर के
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प्रकृति और पर्यावरण में
प्रभात कुमार का जानकारी पूर्ण आलेख
सागर की संतानें
अल–नीनो एवं ला–नीना
°

आज सिरहाने में
कमलेश्वर के उपन्यास
कितने पाकिस्तान
से परिचय
°

हास्य व्यंग्य में
महेश चंद्र द्विवेदी का आलेख
ग्रे हाउंड से एटलांटा लुइविल सिनसिनाटी
की यात्रा
1
°

वैदिक कहानियों में
डा रति सक्सेना की कलम से
वरूण(2)
°

रसोईघर में
शाकाहारी मुगलई के अंतर्गत तैयार है
तंदूरी शिमला मिर्च
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सामयिकी में
मई दिवस के अवसर पर
योगश चंद्र शर्मा प्रस्तुत कर रहे हैं
मई दिवस की यात्रा कथा
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परिक्रमा में
दिल्ली दरबार के अंतर्गत
भारत से बृजेश कुमार शुक्ला का आलेख
हाईटेक हुए साधू संत

 

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"अभिव्यक्ति" व्यक्तिगत अभिरूचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इस में प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है।
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प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना   परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
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      सहयोग : दीपिका जोशी
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