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परिक्रमा
में
° रसोईघर
में ° धारावाहिक में ° कहानियों
में लंदन की तेज़ भागती अंडरग्राउण्ड ट्रेन में बैठी विनीता का मन बेटे की उसी बात में खोया हुआ था। जब से दिल्ली की अपनी नौकरी छोड़ बाहर निकली है, तब से घर और घर के लोगों की इच्छाओं से इतन्ी बंधी हुई चल रही है कि स्वयं को भी भूल गई है। कभी कॉलेज के दिन अपनी बड़ीबड़ी बातें, अपने को कुछ 'होने' कुछ 'करने' के वायदे याद आते हैं तो मन भरभरा जाता है। "क्या उम्र यूँ बर्तन धोते खाना बनाते निकल जाएगी?" इस विदेश में नए सिरे से पढ़ाई करने और कविताकहानी की दुनिया छोड़, कम्प्यूटर पर आँकड़े लिखने मिटाने को मन अभी भी नहीं राज़ी, तब क्या करूІ |
कहानियों
में
रात में नींद नहीं आती! मैं सोचती
हूं मैं ° संस्मरण
में ° प्रौद्योगिकी
में ° पर्यटन
में ° हास्य
व्यंग्य में
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°
पिछले अंकों से°
साहित्यिक निबंध में
कलादीर्घा
में
फुलवारी
में पर्यटन में
घर
परिवार में
विज्ञान
वार्ता में
लंदन पाती के अंतर्गत |
आज सिरहाने।आभार।उपहार।कहानियां।कला दीर्घा।कविताएं।गौरवगाथा।घरपरिवार |
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प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना
परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी
सहयोग :प्रबुद्ध कालिय
साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार
शुक्ला