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फुलवारी

सुनहरे मुकुट वाला भगवान
- दीपिका जोशी

एक व्यापारी बहुत ही धनवान था। लेकिन आलस उसकी रग-रग में भरा था। कभी भी किसी काम में उसका दिल नहीं लगता। सुबह जल्दी उठना उसे कतई पसन्द नहीं था। उसकी इन आदतों को उसके नौकरों ने समझ लिया था। सभी उसकी इस आदत का फायदा उठाने लगे।

जो भी उसकी आमदनी थी उसमें से काफी हिस्सा गायब होने लगा। धीरे धीरे अपनी सम्पत्ति में होती कमी देख कर वह चिन्ताग्रस्त हो गया। उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या किया जाय।

उसका एक अच्छा दोस्त था, जो उसे परेशानी में सलाह दिया करता था। दोस्त उसकी आदतें जानता था। उसने कहा, "रोज सुबह चार से पाँच बजे के बीच अपने गाँव के बाहर पहाड़ी की चोटी पर सुनहरा मुकुट पहने एक भगवान रोज आते हैं। यदि हम इस भगवान का दर्शन कर लें तो सारी समस्याएँ हल हो जाती हैं। जिन्हें कोई भी समस्या है, वह सुबह इस भगवान का दर्शन करने जरूर जाता है। यदि चाहो तो तुम भी जा सकते हो और इस समस्या से छुटकारा पा सकते हो। पर हाँ! जाना तो सुबह चार और पाँच के बीच में ही होगा।"

वह मान गया। उसने निश्चय किया और सुबह उठकर उस पहाड़ी की तरफ जाने लगा। जब वह घर से निकल ही रहा था तो उसने अपने घर के नौकरों को हाथ में थैलियाँ भर-भर के समान ले जाते हुए देखा। सभी की चोरी पकड़ में आ गयी थी। वहीं रूक कर उसने नौकरों को डाँट लगायी। अब उसे समझ में आ गया था कि किस वजह से उसकी सम्पत्ति कम हो रही थी।

पहाड़ पर सुनहरे मुकुट वाला भगवान तो उसे देखने को नहीं मिला पर सुबह जल्दी उठने की आदत से सभी लोग दुबारा ठीक से काम करने लगे, चोरी बंद हो गयी और इसी कारण वह फिर से धनवान हो गया। १ सितंबर २००३

  
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