मुझे
अपनी दो पंक्तियां स्मरण हो आयीं
कौन
बुझा सकता वह दीपक,
हृदय में जिसे जलाया है।
प्रेम में कभी नहीं यह सोचें,
क्या
खोया क्या पाया है।
मेरा
मानना है कि विदेशों में भारतीय अपनी संस्कृति से ज्यादा
जुड़ रहे हैं और अपनी भाषा, संगीत और वस्तुओं का प्रयोग
कर रहे हैं। जबकि भारत में पश्चिमी संस्कृति का बोलबाला बढ़
रहा है।
ओसलो
में प्रेमचन्द की जयन्ती मनायी गयी
31
जुलाई को वाइतवेत यूथ क्लब ओसलो में
भारतीयनार्वेजीय सूचना और सांस्कृतिक मंच के तत्वाधान
में उपन्यास सम्राट मुंशी प्रेमचन्द की जयन्ती पर एक गोष्ठी
सम्पन्न हुई। गोष्ठी में मुंशी प्रेमचन्द के जीवन पर संक्षिप्त
प्रकाश डालते हुए शरद आलोक ने उनकी कहानी कफन पढ़ी। गोष्ठी
में अनेक गणमान्य व्यक्ति और लेखक मौजूद
थे जिनमें
ब्रित बेक्केदाल और इंगेर मारिये लिल्लेएंगेन और माया
भारती प्रमुख थे। 31 जुलाई 1880 में मुंशी प्रेमचन्द का जन्म
हुआ था।
ओसलो
में यादगार स्वतन्त्रता दिवस (15 अगस्त)
15
अगस्त को प्रात:काल अपने पुत्रों अनुपम और अर्जुन के
साथ घर के पास स्थित ट्राम स्टेशन वाइतवेत स्टेशन पर चार
मिनट पैदल चलकर आ गया था। वहां हमारी प्रतीक्षा दर्शन सिंह
ग्रेवाल कर रहे थे जो अवकाश प्राप्त हैं और ज्यादातर समय
भारत में व्यतीत करते हैं। भारत के समाचारों और राष्ट्रपति के
सन्देश की बातें करते हुए हम नेशनल थिएटर ट्राम स्टेशन पहुंच
गये। वहां से बस लेकर भारतीय दूतावास पहुंचे।
हम
लोग वहां प्रात:आठ बजे पहुंच गये थे। हम लोग सबसे
पहले पहुंचे थे। दूतावास के कर्मचारी राष्ट्रीय ध्वज को फहराने
के पूर्व व्यवस्थित कर रहे थे। वहां प्रथम सचिव पन्त और
गोगना से भेट हुई। धीरेधीरे लोग आते रहे और
वातावरण भारतमय हो गया। अपने देश के लिए कितना
उत्साह है लोगों मे जो प्रात: दूसरे कार्य छोड़कर 15 अगस्त
को ध्वजारोहाण समारोह मे उपस्थित हुए हैं। महिलायें और
बच्चे रंगबिरंगे भारतीय परिधान पहने हुए थे। सुरजीत
सिंह स्वाधीनता दिवस के उपलक्ष में आयोजित होने वाले 5
से 6 सितम्बर 2003 खेल कूद के लिए लोगों को आमन्त्रण दे रहे
थे।
तभी
भारतीय राजदूत गलाबन्द लम्बा कोट और पैन्ट पहने अपनी पत्नी
के संग कार से उतरकर लोगों से मिले। मेरे पास आकर
उन्होंने बताया कि अफतेन पुसतेन समाचार पत्र में मेरा
साक्षात्कार उन्हें अच्छा लगा था। लेखक राजदूत गोपालकृष्ण गांधी
जी ने ध्वजारोहण किया, संयुक्त राष्ट्रगान
गाया और लेखक और वैज्ञानिक राष्ट्रपति पजै
अब्दुल कलाम का सन्देश सुनाया। राष्ट्रीयगान जन गण मन
अधिनायक जय हे से सारा वातावरण गूंज उठा। राष्ट्रगान के
बाद मैने झंडागान सुनाया तथा बिधी चन्द ने एक कविता
सुनाई।
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15
अगस्त को ओसलो में मौसम अच्छा था। साढ़े ग्यारह
बजे नार्वेजीय पार्लियामेन्ट गया। वहां लेबर पार्टी की नेता
और रक्षामन्त्रालय की अध्यक्ष मारित नीबाक से आधे घंटे बातचीत
हुई।
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चित्र
में सोशलिस्ट
लेफ्टिस्ट पार्टी की नेता क्रिस्तीन हालवुरसेन, सुरेशचन्द्र
शुक्ल और वेदीस वीक 15 अगस्त की पार्टी में
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सांयकाल
छ: बजे गांधीजी के घर पर भारतीय राष्ट्रीय पर्व स्वाधीनता
दिवस पर एक दावत दी गयी थी जिसमें भारतीय और नार्वेजीय
सभी लोग उपस्थित थे। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी पर अनेक
पुस्तकें लिखने वाले दर्शनशास्त्री आर्ने नेस से मिला। वह
काफी बूढ़े हो गये थे। डेनमार्क मूल के ओसलो
विश्वविद्यालय में अध्यापक फिन थीसेन से काफी समय बाद
मुलाकात हुई जिनसे मेरा परिचय 21 वर्ष पुराना है। अब उनकी
दाढ़ी एक फुट से तो कम लम्बी नहीं होगी ऐसा प्रतीत हुआ।
यहां अनेक भारतीयों और नार्वेजीय नेताओं से
मिलना हुआ। 15 अगस्त के अवसर पर मिलने का एक अलग
आनन्द था। प्राय: कहा जाता है कि नार्वेजीय लोगों को
प्रवासीयों की संस्कृति का अच्छा ज्ञान नहीं है। इस तरह के पर्व
एक अच्छा अवसर हैं एक दूसरे से मिलने और उन्हें जानने का।
सोशल
लेफ्टिस्ट पार्टी की लोकप्रिय नेता क्रिस्तीन हालवुरसेन, लेबर
पार्टी की नेता और सांसद मारित नीबाक, बांग्लादेश
मूल की प्रवासी नेता सायरा खान, सनातन मन्दिर के पुजारी
वी आर पंडित, गुरूद्वारा के प्रधान सन्तोख सिंह से भी मुलाकात
हुई और वार्तालाप हुई।
यहां
होइरे (राइटिस्ट) पार्टी से पाकिस्तान मूल की योग्य युवा
सांसद असफान रफीक (एक मात्र प्रवासी सांसद) भी मौजूद थी
जिन्होंने कश्मीर पर भारत के प्रति नकारात्मक रूख रखा था। पर
नार्वेजीय पार्लियामेन्ट में इस बात पर जब चर्चा हुई तब
प्रधानमन्त्री समेत अनेक पार्टियों ने भारत का पक्ष लेकर उसे
खारिज कर दिया था। मेरे विचार से चुनाव के कारण ही
उन्होंने व उनकी पार्टी ने कश्मीर समस्या पर भारत के प्रति
नकारात्मक रूख रखा था ताकि पाकिस्तान मूल के प्रवासियों का वोट
उन्हें प्राप्त हो। अब 15 सितम्बर को पुन: नार्वे में कम्यून
चुनाव होने वाले हैं । बहुत अच्छा हुआ वह 15 अगस्त के कार्यक्रम में शामिल हुईं। श्रीमती राजीव
शर्मा और अन्य जागरूक महिलाओं ने स्पाइलदर्पण पत्रिका में
महिला पृष्ठ शुरू करने की ईच्छा व्यक्त की। मैने इस प्रस्ताव को
स्वीकार कर लिया।
15
अगस्त 2003 मेरे लिए एक विशेष महत्व का दिन रहा।
आइये
ओसलो के कार्ल जुहान गाता की सैर करें
नार्वे
में रहने वाले लोग दिल्ली के चांदनी चौक और लखनऊ के
अमीनाबाद में स्थित बाजार गड़बड़झाला, नक्खास और
यहियागंज का आनन्द तो नहीं ले सकते परन्तु कार्ल जुहान गाता
नामक छोटे से पैदल मार्ग पर पटरी पर बैठे सामान बेचने
वाले, तमाशा दिखाने वाले, पोर्टरेट चित्र बनाने वाले
चित्रकार, संगीत बजाकर पैसा एकत्र करने वाले संगीतकार और दो
तीन भीख मांगने वाले मिल ही जायेंगे।
अभी
कुछ समय पहले की बात है उत्तर प्रदेश से राजनैतिक
प्रतिनिधिमंडल यहां आया था जो लेखक के साथ इसी मार्ग पर
टहल रहे थे। एक लड़की नें मजाक में एक गत्ते की तख्ती को गले
में पहन रखा था जिस पर लिखा था, मुझसे कौन शादी
करेगा। जब उसे पढ़कर नेताओं को बताया तब हाजिर जवाब
विपक्ष के नेता आजम खान ने कहा पूछो मुझसे शादी करेगी इसे
मैं हिन्दुस्तान ले जाऊंगा। मुझे यहां पर ही एक भीख मांगने
वाली लड़की मिली थी जिसपर मैने एक लघुकथा लिखी थी
दोहरा दान। यहां पर ही एक बहुत बड़ी और पुरानी पुस्तक की
दुकान है जिसका नाम है तानुम जहां बहुतबहुत प्रसिद्ध लेखक
आया करते थे।
इसी
मार्ग पर सैलानियों का ध्यानाकर्षण करने और उन्हें रिक्शे पर
बैठने का आनन्द दिलाने के लिए एक नार्वेजीय युवक रिक्शा
लेकर निकला। उस रिक्शे पर लेखक ने उत्तर प्रदेश विधान परिषद
के चेयरमैन कुंअर मानवेन्द्र सिंह के साथ क्षणिक सवारी की।
इसी
मार्ग पर नार्वे का पार्लियामेन्ट स्थित है जिसे स्थानीय भाषा
में स्तूर्टिंग कहा जाता है। पास में नार्वे का प्रथम थिएटर,
नेशनल थिएटर स्थित है। यहां से ही राजमहल साफ दिखाई देता
है। इसके एक
छोर पर राजमहल दिखाई देता है तो दूसरे छोर पर सेन्ट्रल
स्टेशन। ट्राम, बस रेल और पानी के जहाज से कोई भी
ओसलो आ सकता है और मिनटों में कार्ल जुहान गाता पर
पहुंच सकता है।
चुनाव
की सरगर्मी
नार्वे
में आजकल चुनाव का वातावरण है। 15 सितम्बर को पूरे नार्वे
में स्थानीय कम्यून चुनाव हो रहे हैं। राजधानी ओस्लो
में आये दिन कहीं न कहीं चुनाव सभा, दो दलों के
प्रत्याशियों के मध्य वादविवाद, रंगबिरंगे और पार्टी
कार्यक्रमों से परिपूर्ण परचे और पोस्टर आसानी से नजर आते
हैं। ओसलो नगर के मध्य सबसे अधिक व्यस्त मार्ग कार्ल
जुहान गाता सदा ही सैलानियों और यहां पर रहने वाले
लोगों से भरा रहता है। अगर
मौसम अच्छा हो तो चार चांद लग जाते हैं।
राजनीति
में प्रावासी
आज
नार्वे में एक लाख से अधिक प्रवासीय निवास कर रहे हैं।
मुख्यता नार्वे में प्रवासियों का आना पिछले तीस बरसों
से जारी है। यहां इमीग्रेशन पर 1975 से रोक लगी हुई है।
प्रवासियों की संख्यां बढ़ने के साथ ही राजनैतिक पार्टियों
ने प्रवासियों को भी राजनीति में स्थान देना आरम्भ किया।
इस समय नार्वे की पार्लियामेन्ट में एक मात्र सदस्य हैं
पाकिस्तान मूल की अफसान रफीक जो कन्जर्वेटिव पार्टी की हैं।
अनेक प्रवासीय राजनीतिज्ञ 15 अगस्त को भारतीय राजदूत के
निवास पर भारतीय गणतन्त्र दिवस पर दी जाने वाली पार्टी में
सम्मिलित हुए।
अनेक
भारतीय यहां की राजनीति में सक्रिय रहे हैं जिनमें अमलेन्दु
गुहा और सुरेशचन्द्र शुक्ल मुख्य हैं।
डा
सुरेश चंद्र शुक्ला 'शरद आलोक'
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