कहानियां |
समकालीन हिन्दी कहानियों के स्तंभ में इस सप्ताह प्रस्तुत है भारत से सुषम बेदी की कहानी अज़ेलिया के रंगीन फूल |
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रास्ते भर मैं उन चटक रंगों के फूलों
की झाड़ियां निहारती आयी थी और सोचती रही थी कि ये कौन से
फूल है . . .दूर से देखने पर बोगनवेलिया की झाड़ियों का भ्रम
दे देते हैं और पास आओ तो उनसे कहीं ज्यादा खूबसूरत। उनसे कहीं
ज्यादा रंगों का खिलाव। आकार भी मोहक और खूब घने गुच्छे। जब
कालेज के कैम्पस में पहुंचे तो वहां भी दूर तक फैली हरियाली के
बीचबीच गुलदस्तों की तरह सजे हुए। मुझसे रहा नहीं गया। खास
तौर से प्रिंसिपल की पत्नी के साथ उसके घर की ओर जाते हुए जब
उनके घर के बाहर भी वैसी ही झाड़ी दिखी तो मैंने पूछ ही डाला,
"फूलों की ऐसी झाड़ियां मैंने पहले कभी नहीं देखी . . .न ही
ऐसे चटकीले नीले, नारंगी, गुलाबी और सफेद रंग! कौन से
फूल हैं ये?" तो इस इलाके का बड़ा आम फूल है यह। लेकिन फिर भी उनके ज्ञान से प्रभावित थी मैं। अपने माहौल के साथ कितनी रचीबसी है। शायद वे खुद भी तो इस अंजे़लिया फूल की तरह है . . .इस भूमि पर, इस माहौल पर पूरे अधिकार से जमी हुई। |
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