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साथ खाना
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दीपिका जोशी
 


दिन भर की थकान के बाद रात में इकठ्ठा खाना खाने को कुछ लोग एक बोझ-सा या जबरदस्ती की नज़र से देखते हैं पर सच पूछा जाये तो रात को मिल-जुलकर खाना खाने और दिनभर की घटनाएँ घर के सभी सदस्यों से बाँटने जैसा सुख और किसी बात में नहीं।

ह्यूस्टन के बेलर कॉलेज ऑफ मेडिसिन के प्रोफेसर डॉ जॉन पी फोरेर के इस विषय पर गहन अध्ययन के बाद यह बात सामने आयी है रात का खाना घर के सभी सदस्यों का साथ साथ भोजन करना न केवल जीवन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है बल्कि इससे बढ़ते वजन पर भी काबू पाना कुछ हद तक संभव हो जाता है।

रात में मिलजुल कर खाना खाते समय दिनभर के कुछ खट्टे कुछ मीठे अनुभव, यश और अपयश एक दूसरे के साथ बाँट सकते हैं। इससे साझेदारी का सुख तो मिलता है, दिल पर पड़ा हुआ दिन भर का बोझ भी बँट जाता है।
विशेषज्ञों ने बताए साथ खाने के लाभ:

  • साथ में खाना खाने के लाभ हर परिवार के लिये अलग अलग हो सकते है। कुछ लोग चाहते हैं कि साथ में खाना खाते समय बच्चों को मेज़ पर खाना खाने के तौर तरीके सिखा सकें। किसी परिवार के विचार में इस समय आपसी प्रेम, परस्पर विचार विनिमय, दूसरों को सम्मान देना या दूसरों की बातें ध्यान से सुनना इत्यादि सीखा जा सकता हैं।
     

  • दिन की आपाधापी से दूर खाने का समय विश्रांति का होता है। साथ में खाना खाकर इसे दिलचस्प बनाया जा सकता है। दिन भर के काम पर एक समीक्षात्मक दृष्टि डाली जा सकती है और अगले दिन की योजना का प्रारूप तैयार किया जा सकता है। "आपका दिन कैसे बीता?" या "आज के पूरे दिन में क्या सब से अच्छी बात हुयी?" ऐसे सवाल दिल को हल्का कर सकते हैं।
     

  • इसी समय दिनभर की सभी की भाग दौड़ वाली ज़िन्दगी से थोड़ा आराम तो मिलता ही है पर साथ में अगले दिन के काम का जायजा मिल-जुलकर लिया जा सकता है।
     

  • बच्चों में स्वाभिमान और आत्मविश्वास जगाने का यह सर्वोत्म समय है। बच्चों की बातों को ध्यान से सुनते हुए उनके अच्छे कार्यों के लिये उनको शाबाशी देते हुए इन शब्दों का प्रयोग किया जा सकता है- तुम्हारा काम तारीफे काबिल है। या तुम्हारे इस काम पर हमें गर्व है। इस तरह कहकर हम बच्चों का हौसला बढ़ा सकते हैं।
     

  • साथ भोजन करने को यदि सुअवसर समझा जाये तो बहुत सी चीजों को सीखने की संभावना हो सकती है। लेकिन यदि आप इसे बोझ या जबरदस्ती का समझने लगे फिर यहां किसी भी बात की संभावना नहीं हो सकती। यह महत्वपूर्ण नहीं है कि खाने में पिज़ा है या सलाद हो या कोई और मनपसंद चीज़।
     

  • घर में अकेली स्त्री ही सारा काम संभालती है, उसका काम इस समय मिल कर बाँटा जा सकता हैं। खाना खिलाने, परोसने या बर्तनों की सफाई तक का मज़ा उनके साथ ले सकते हैं।
     

  • ऐसे अच्छे वातावरण में खाने की मेज़ पर कोई भी घर का सदस्य एक दूसरे को दुख देनेवाली बात ना करे तो उसे टाल कर कड़वाहट को दूर रखा जा सकता है। किसी किसी बात के लिये अधिक धैर्य और समझदारी आवश्यकता हो सकती है। साथ खाने का समय ऐसी किसी बात के लिये ठीक नहीं है। ऐसी बातों को किसी अन्य समय के लिये रखना चाहिये।
     

  • खाने की मेज़ पर जगह को लेकर बच्चों में लड़ाई होते हमेशा ही देखा गया है। यदि उन्हें उनकी चुनी हुई जगह पर बैठने दिया जाय तो इससे अच्छी कोई बात नहीं। इसके बावजूद अगर बात बिगड़ती नज़र आए तो बड़ों को शांतिपूर्वक इस समस्या में उनकी सहायता कर देनी चाहिये।
     

  • पिता के सुलभ और आरामदायक खाने के लिये मां बच्चों को पहले खाना खिला देना चाहती है लेकिन ऐसे समय बच्चे अपने पिता की कमी हमेशा महसूस कर सकते हैं। खाने की मेज़ पर खाना खाते समय पिता को न पाकर वह ऐसा भी मान सकते हैं कि पिता के मन में उनके प्रति प्रेम और रूचि नहीं। अत: ऐसा न होने दें

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