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कहानियां
। कविताएं । साहित्य
संगम ।
दो पल ।
कला दीर्घा
। साहित्यिक निबंध
।
उपहार
। परिक्रमा |
पिछले सप्ताह
गौरव गाथा में
उर्मिला नीचे ड्राइंगरूम में बैठी थी। वह रामदयाल की प्रतीक्षा कर रही थी। सामने के भवन में आज कोई युवक घूम रहा था। वह कुतूहलवश उसे भी देख रही थी। उसके कान सीढ़ियों की ओर लगे हुए थे, परन्तु आंखें उस युवक को बेचैनी से घूमते देख रही थीं। वह कोठी कई दिनों से खाली थी, परन्तु अब कुछ दिन से इसे किसी ने किराये पर ले लिया था उसने दोतीन बार किसी युवक को बिजली के प्रकाश में घूमते देखा था। ° विज्ञान
वार्ता में ° हास्यव्यंग्य
में ° धारावाहिक
में ° फुलवारी
में
सप्ताह
का विचार |
इस सप्ताह सामयिकी
में साहित्य
संगम में जब कोई किसी और के बच्चे को
इतने लाड़ प्यार से पालता है तो उनके बीच में केवल एक ही सम्बन्ध
रह जाता है और वह है प्रेम का सम्बन्ध। उस सम्बन्ध में अधिकार या
सामाजिक नियम कोई मायने नहीं रखते। प्रेम को कोई किसी
कानूनी दस्तावेज के द्वारा प्रमाणित नहीं कर सकता ओर न ही स्वयं
प्रेम की यह अभिव्यक्ति होती है।प्रेम केवल और प्रगाढ़ ही हो सकता है
क्योंकि यही इसका रूप है। प्रेरक
प्रसंग में
रसोईघर में
महानगर की
कहानियां में
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° पिछले अंकों से ° संस्मरण
में
अमिताभ बच्चन और |
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आज सिरहाने |
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प्रकाशन : प्रवीन सक्सेना
परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन सहयोग : दीपिका जोशी
तकनीकी
सहयोग :प्रबुद्ध कालिया साहित्य संयोजन :बृजेश कुमार
शुक्ला