|  | रामदयाल 
                      पूरा बहुरूपिया था। भेस और आवाज बदलने में उसे कमाल हासिल 
                      था। कॉलेज मे पढ़ता था तो वहाँ उसके अभिनय की धूम मची रहती 
                      थी; अब सिनेमा की दुनिया में आ गया था तो यहाँ उसकी चर्चा 
                      थी। कॉलेज से डिग्री लेते ही उसे बम्बई की एक फिल्म-कम्पनी 
                      में अच्छी जगह मिल गयी थी और अल्प-काल ही में उसकी गणना भारत 
                      के श्रेष्ठ अभिनेताओं में होने लगी थी। लोग उसके अभिनय को 
                      देख कर आश्चर्यचकित रह जाते थे। उसके पास प्रतिभा थी, कला थी 
                      और ख्याति के उच्च शिखर पर पहुँचने की महत्त्वाकांक्षा! 
                      इसीलिए जिस पात्र की भूमिका में काम करता बहुरूप और अभिनय मे 
                      वह बात पैदा कर देता था कि दर्शक अनायास ही 'वाह-वाह' कर 
                      उठते और फिर हफ्तों उसकी कला की चर्चा लोगों में चला करती।
                      
 दो महीने हुए, उस की शादी हुई 
                      थी। बम्बई की एक निकटवर्ती बस्ती में छोटी-सी एक कोठी किराये 
                      पर ले कर वह रहने लगा था। कभी समय था कि वह निर्धन कहता था, 
                      परन्तु अब तो वह धन-सम्पत्ति में खेलता था। रूपये की उसे 
                      क्या परवाह थी? उसका विवाह भी उच्च घराने में हुआ था। पत्नी 
                      भी सुन्दर और सुशिक्षित मिली थी। जिस प्रकार बादल सूखी धरती 
                      पर अमृत की वर्षा कर के उसे तृप्त कर देता है, उसी प्रकार 
                      निर्धनता से सूखे हुए रामदयाल के हृदय को विधाता ने वैभव की 
                      वर्षा से सींच दिया था।
 
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