इस माह- |
अनुभूति में-
निर्मल विनोद, रमा
प्रवीर वर्मा, शरदिंदु मुकर्जी, क्षिप्रा शिल्पी, दीपक गोस्वामी
और भारतेन्दु मिश्र की रचनाएँ। |
कलम गही नहिं
हाथ- |
पिछले अंक में हमने दुबई पुलिस की कारों की
बात की थी लेकिन जबतक शहर के स्वास्थ्य विभाग के सुपरकार एम्बुलेंस
बेड़े की बात न की जाय, तबतक कारों की यह कहानी अधूरी रहेगी।
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घर-परिवार में |
रसोईघर में- हमारी रसोई संपादक शुचि अग्रवाल प्रस्तुत कर रही हैं,
हर मौसम में स्वादिष्ट-
इंडो चायनीज करी। |
बागबानी में-बारह पौधे जो साल-भर
फूलते हैं इस शृंखला के अंतर्गत इस माह प्रस्तुत है-
कनेर की देखभाल। |
स्वाद और स्वास्थ्य
में- स्वादिष्ट किंतु स्वास्थ्य के लिये
हानिकारक भोजनों की शृंखला में इस माह प्रस्तुत है-
मफिन
के विषय में। |
जानकारी और मनोरंजन में |
गौरवशाली भारतीय- क्या आप जानते हैं
कि अगस्त महीने में कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म
लिया? ...विस्तार से
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वे पुराने धारावाहिक-
जिन्हें लोग आज तक नहीं भूले और अभी
भी याद करते हैं इस शृंखला में जानें
रजनी
के विषय में। |
नवगीत से
सम्बंधित संग्रहों और संकलनों से परिचय की शृंखला में इस माह
प्रस्तुत है- अवनीश सिंह चौहान का नवगीत संकलन-
नवगीत वाङ्मय। |
वर्ग
पहेली-३५२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और रश्मि आशीष के सहयोग से |
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हास परिहास
में पाठकों
द्वारा
भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य-और-संस्कृति-में |
समकालीन कहानियों में इस माह
प्रस्तुत है
यूएसए से
सविता बाला नायक की कहानी-
वीक एंड
“लोग तो अमेरिका आने को तरसते
हैं और तू यहाँ से जाने का कह रहा है!”
“हाँ, कह रहा हूँ! जिनको अच्छा लगता है वे रहें यहाँ । मुझे
अच्छा नहीं लगा इस लिए मुझे तो अब इंडिया वापिस जाना ही है!”
“इंडिया में है क्या? यहाँ कितने आराम हैं। इंडिया में नौकरी
के लिए धक्के खाने पड़ते हैं। पर यहाँ तो आराम से कोई न कोई ढँग
का काम मिल ही जाता है।”
“तो ठीक है न, तू रह यहाँ!
“अच्छा देख, यहाँ जब दिल किया वीकेंड में कहीं भी निकल जाओ,
दूसरे शहर तक घूमने चले जाओ, कोई रोकने टोकने वाला भी नहीं!
कितनी आज़ादी महसूस होती है। क्या तुम इंडिया में यह सब इतने
आराम से कर पाते थे?”
“यार, मैंने तो यह देखा कि पिछले महीने मेरे बच्चे की तबियत
इतनी खराब हुई कि जान पर बन आई। घर में बच्चे को देखने के लिए
बस मैं और मेरी बीवी थे, कोई पूछने तक नहीं आया! नहीं रहना
मुझे ऐसी जगह जहाँ मुझे ऐसा अकेलापन लगे। तुझे अच्छा लगता है
तो तू रह, तुझे कौन सा कोई रोक रहा है!
आगे-
सरस दरबारी की
लघुकथा
सबसे प्रिय चीज
***
पर्व-परिचय में आनंद
शर्मा
से जानें
बुल्गारिया के रक्षाबंधन बाबा मार्ता के विषय में
***
कला दीर्घा में- कवि और कलाकार
गणेश पाइन से परिचय
***
डॉ. शिवेन कृष्ण रैणा का आलेख
कश्मीर के कृष्ण-भक्त
कवि परमानंद दास
*** |
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पिछले अंकों से- |
सीमा हरि शर्मा की
लघुकथा
बदलाव कहाँ से
***
इतिहास में रेखा राजवंशी
से जानें
क्या आस्ट्रेलिया के मूल निवासी भारतीय थे?
***
कला दीर्घा में- कवि और कलाकार
अशोक भौमिक से परिचय
***
आज-सिरहाने-में-ऋता-शेखर-मधु-के-लघुकथा-संग्रह-
धूप के गुलमोहर पर नमिता सचान सुंदर
***.
समकालीन कहानियों में इस माह
प्रस्तुत है
मनोज सिन्हा की कहानी-
बुल्लू बाबू
तब मैं छोटा था, स्कूल जाने की
उम्र नही हुई थी। अब मैं बूढ़ा हो चला हूँ, रिटायर्मेंट बस आने
को है। मेरे पास बुल्लू बाबू और उनके घर की कुछ तस्वीरें हैं।
मैं उसे दिखाता हूँ। बात अहाते की होगी। तब मैं बच्चा था।
सम्मिलित परिवार का ज़माना था। चाचा-मामा के साथ चिपक कर
घूमने-डोलने की उम्र थी। मैं घर का बड़ा लड़का था, इकलौता, सो
प्यार कुछ ज्यादा ही मिला। तब वही घूमना-डोलना, किंडरगार्डेन
हुआ करता था। हमारा बंगला सड़क के किनारे था। बंगले के बरामदे
मे सरदी की खिली गेहुआँ धूप सीधी आती थी। हम वहाँ धूप सेका
करते थे। मेरे बचपन का सबसे बड़ा हैरत बुल्लू बाबू का घर था।
सड़क के उस पार, चार-पाँच घरों को छोड़ कर एक मज़ार था। मज़ार के
बगल से एक कच्ची गली अंदर की ओर जाती थी, जहाँ पतरिंग-घराने के
लोग रहते थे, जो दूध बेचते थे। वहाँ बहुत सारे लोग रहते थे।
सड़क और कच्ची गली के मुहाने पर बुल्लू बाबू का घर था। तब तक
मैने कोई पढ़ाई नही की थी, लेकिन रात के खाने के बाद दादी
किस्से सुनाया करती थी
आगे-
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