क्या
आस्ट्रेलिया के मूल निवासी भारतीय थे
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रेखा राजवंशी
२००१ दिसम्बर
में मैं सिडनी पहुँची, तो ऑस्ट्रेलिया के इतिहास के विषय में
अधिक जानकारी नहीं थी। बस इतना कि भारत की तरह यहाँ भी
अंग्रेज़ों का आधिपत्य रहा था। यहाँ के मूल निवासी या स्वदेशी
वे आदिवासी थे जिन्हें अंग्रेजी में ‘एबोरीजनल्स' कहा जाता है,
ऑस्ट्रेलिया को ब्रिटिश कॉलोनी घोषित करने के बाद इन
एबोरीजनल्स पर बहुत जुल्म ढाए गए, कुछ को मार दिया गया और इनकी
संख्या में निरंतर गिरावट हुई। सिर्फ इनका ही नहीं इनकी
संपत्ति, सभ्यता और भाषा का भी निरंतर ह्रास हुआ। वास्तव में
ऑस्ट्रेलिया उनका ही देश था जिस पर ब्रिटेन ने अपने नाम का
पट्टा लगा दिया था।
यद्यपि ऑस्ट्रेलिया के मूलनिवासियों और आदिवासियों के विविध
समूहों के बीच कई समानताएँ हैं पर फिर भी उनमे विविधता है।
इनकी प्रत्येक ट्राइब में संस्कृतियों, रीति-रिवाजों और भाषाओं
का अपना स्वरूप है। वर्तमान ऑस्ट्रेलिया में इन समूहों को
स्थानीय समुदायों में विभाजित किया गया है। प्रारंभिक यूरोपीय
समझौते के समय, इनके समूहों में २५० से अधिक भाषाएँ बोली जाती
थीं। वर्तमान में इनमें से १२० से १४५ उपयोग में हैं, बाकी
सबको लुप्तप्राय माना जाता है।
२०१६ की जनगणना के अनुसार ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासी आदिवासी
और टोरेस स्ट्रेट आइलैंडर्स की कुल जनसंख्या ७९८,३६५ है, जो
ऑस्ट्रेलिया की जनसंख्या का ३.३% हिस्सा है। ऑस्ट्रेलिया में
प्रथम आधुनिक मानव अवशेष मंगो नाम की उस नहर से प्राप्त हुए
हैं जो अब पूरी तरह सूख गई है। ये उन तीन मंगोमैन के हैं जिनके
४२,००० पहले होने का अनुमान लगाया जाता है। मंगो झील एक सूखी
झील है जो न्यू साउथ वेल्स के दक्षिण-पश्चिमी भाग में
दक्षिण-पूर्वी ऑस्ट्रेलिया में स्थित है। वहीँ अधिकांश
पुरातात्विक सामग्री पाई गई है। परन्तु इस बात का कोई प्रमाण
नहीं है कि ये अवशेष एबोरीजनल्स के ही हैं।
आमतौर पर माना जाता है कि आदिवासी प्रजाति ऐसी प्रजाति है जो
यहाँ ६४,००० से ७५,००० साल पहले यहाँ बस गई थी। इस बारे में दो
विचार हैं पहला ये कि शायद ये लोग अफ्रीका से यहाँ आए हों।
दूसरी धारणा के हिसाब से हज़ारों वर्ष पूर्व भारत और
ऑस्ट्रेलिया एक ही भू भाग का हिस्सा थे। तो ये शायद भारत से आए
हों। कुछ शोधकर्ताओं का विचार है कि आदिवासी लोग पहली बार
ऑस्ट्रेलिया में लगभग ४०,००० साल पहले आए थे और बाकी दुनिया से
हजारों साल तक अलग-थलग जीवन बिता रहे थे।
एक अन्य थ्योरी के अनुसार भारत और ऑस्ट्रेलिया वास्तव में
गोंडवानालैंड लैंडमास के हिस्से थे जिसे सुपरकॉन्टिनेंट
पैंजिया कहा जाता था। माना जाता है कि गोंडवानालैंड एक
महाद्वीप (सुपर कॉन्टिनेंट) था, जो लगभग १८० मिलियन वर्ष पहले
से लगभग ५५० मिलियन साल पहले तक मौजूद था। गोंडवाना महाद्वीप
का नाम ऑस्ट्रियाई वैज्ञानिक एडुआर्ड सूज़ ने रखा था, गोंडवाना
शब्द संस्कृत भाषा का है, जिसका तात्पर्य है 'गोंडों के जंगल।'
इस नाम को मध्य भारत के गोंडवाना क्षेत्र के ऊपर रखा गया था।
ज्वालामुखी फटने और धरती की प्लेटों के खिसकने के कारण,
गोंडवानालैंड के कुछ हिस्सों को उत्तर की ओर खिसकना पड़ा और
तबसे भारत और ऑस्ट्रेलिया विभाजित हो गये और ऑस्ट्रेलिया एक
स्वतंत्र भू भाग बन गया।
२०१३ में प्रकशित रिपोर्ट में मैक्स प्लैंक इंस्टीट्यूट फॉर
इवोल्यूशनरी एँथ्रोपोलॉजी के डॉक्टर मार्क स्टोनिंग और अन्य
शोधकर्ताओं की एक टीम ने डी एन ए के एक नए अध्ययन में पाया कि
यह भारतीय डी एन ए से मेल खाता है। इस जर्मन अध्ययन से पता चला
है कि सबसे पहले भारतीय संपर्क लगभग ४,००० साल पहले हुआ था।
एडिलेड विश्वविद्यालय के प्राचीन डी एन ए विश्वविद्यालय के
प्रोफेसर एलन कूपर ने भी कहा कि भारतीय प्रभाव ने आदिवासी
संस्कृति के विकास में अच्छी भूमिका निभाई हो सकती है। वह कहते
हैं कि डिंगो (कुत्ते के समान पशु) की खोज के साथ संबंध को अनदेखा करना असंभव है।
जब अंग्रेजों का पहला जहाज़ी बेड़ा १७८८ में पहली बार
ऑस्ट्रेलिया आया तो उनकी कुल संख्या करीब ७५०,००० थी। इन
आदिवासियों की कई जातियाँ थीं, जो अपने दल में रहती थीं और
उनकी भाषा भी अलग-अलग थीं। उस समय इन बोलियों की संख्या करीब
तीन सौ थी पर अब इनमें से करीब दो सौ भाषाएँ या तो समाप्त हो
चुकी हैं या समाप्त प्रायः हैं।
इन मूल निवासियों को दो श्रेणियों में रखा जाता है
'एबोरीजनीज़' और 'टॉरेस स्ट्रेट आइलैंडर', एबोरीजनीज़
ऑस्ट्रेलिया के कुछ हिस्सों, तस्मानिया और आस-पास के द्वीपों
में रहते हैं और टॉरेस स्ट्रेट आइलैंडर्स टॉरेस स्ट्रेट
आइलैंड्स में रहते हैं, जो क्वींसलैंड के उत्तरी भाग में स्थित
हैं और पपुआ न्यू गिनी के पास हैं। इन आदिवासियों की भाषा,
संस्कृति, मूल्य, परम्पराएँ और विश्वास अलग-अलग हैं। आज के
अधिकतर एबोरीजनल लोग अंग्रेज़ी भाषा का उपयोग करते हैं। इन
एबोरीजनल्स का कला और संगीत से गहरा रिश्ता था, अपनी सभ्यता और
मूल्य अगली पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए वे कहानियों का उपयोग
करते थे। इन कहानियों को 'ड्रीम टाइम स्टोरीज़' यानि स्वप्न
कालिक कहानियाँ कहते हैं, इन कहानियों में पंचतंत्र की
कहानियों की तरह प्रकृति और पशु-पक्षी बातें करते हैं। इन
कहानियों के माध्यम से अगले पीढ़ी को शिक्षा दी जाती है।
मेरे ऑस्ट्रेलिया पहुँचने के अगले महीने छब्बीस जनवरी को
ऑस्ट्रेलिया डे मनाया गया। १७८८ में फर्स्ट फ्लीट यानी पहला
जहाज़ी बेड़ा सिडनी कोव पहुँचा था और इस नयी भूमि पर ब्रिटिश
झंडा फहरा कर ब्रिटिश राज्य का आधिपत्य होने की घोषणा कर दी गई
थी। इस पहले जहाज़ी बेड़े में कुल मिलाकर ग्यारह जहाज़ थे और ये
जहाज़ ब्रिटेन के अपराधियों से भरे हुए थे। ये जहाज़ ब्रिटेन से
१३ मई १७८७ को रवाना हुए, इनमें १४८७ यात्री थे, जिनमें से ७७८
अपराधी थे। इस फ्लीट के कप्तान आर्थर फिलिप थे। ब्रिटेन की
योजना इस भूमि को बसाने की तो थी ही और साथ ही साथ ब्रिटेन की
पहले से ही भरी हुई जेलों से अपराधियों को दूर भेजने की भी थी।
ये सभी जहाज़ १८-२० जनवरी के बीच न्यू साउथ वेल्ज़ में ‘बोटनी
बे’ पहुँचे परन्तु वहाँ तेज़ हवाओं, ताज़े पानी की कमी और
अच्छी मिट्टी के अभाव में वहाँ से निकल जाना पड़ा। हालाँकि
वहीं पर पहली बार ऑस्ट्रेलिया के आदिवासियों से आमना -सामना भी
हुआ। इक्कीस जनवरी को नाव में बैठकर कप्तान फिलिप दूसरी जगह
ढूँढने निकला, पोर्ट जैकसन उसे ठीक लगा और अंततः छब्बीस जनवरी
१७८८ को जहाज़ों ने वहाँ लंगर डाल दिया। कप्तान फिलिप ने इसे
नया नाम दिया 'सिडनी कोव' और ब्रिटेन का झंडा फहरा कर औपचारिक
रूप से उसे ब्रिटेन की बस्ती के रूप में घोषित कर दिया। तब से
लेकर आज तक ऑस्ट्रेलिया वासी इस नए राष्ट्र के उदय की खुशी में
ऑस्ट्रेलिया डे मनाते हैं।
जहाँ एक ओर ऑस्ट्रेलिया डे का उत्सव मनाया जाता है, वहीं दूसरी
ओर ऑस्ट्रलिया के मूल निवासी आदिवासी एबोरीजल्स इसे एक दूसरे
रूप में मनाते हैं। यूरोपीय लोगों के आने के इस दिन को वे मूल
आदिवासी संस्कृति और प्रकृति के विनाश के रूप में मनाते हैं और
१९३८ में इसे शोक दिवस यानि ‘डे ऑफ़ मौर्निंग’ कहकर पुकारा गया
परन्तु लोगों के आपत्ति करने के कारण इसे बाद में आक्रमण दिवस
'इन्वेज़न डे' या ‘सर्वाइवल डे’ कहा गया। और हाँ, यह उत्सव
भारतीय मूल के ऑस्ट्रेलिया वासियों के लिए दुगना उत्साह लिए
आता है, क्योंकि इस दिन जगह-जगह गणतंत्र दिवस का भी आयोजन होता
है। |