“लोग
तो अमेरिका आने को तरसते हैं और तू यहाँ से जाने का कह रहा
है!”
“हाँ, कह रहा हूँ! जिनको अच्छा लगता है वे रहें यहाँ । मुझे
अच्छा नहीं लगा इस लिए मुझे तो अब इंडिया वापिस जाना ही है!”
“इंडिया में है क्या? यहाँ कितने आराम हैं। इंडिया में नौकरी
के लिए धक्के खाने पड़ते हैं। पर यहाँ तो आराम से कोई न कोई ढँग
का काम मिल ही जाता है।”
“तो ठीक है न, तू रह यहाँ!
“अच्छा देख, यहाँ जब दिल किया वीकेंड में कहीं भी निकल जाओ,
दूसरे शहर तक घूमने चले जाओ, कोई रोकने टोकने वाला भी नहीं!
कितनी आज़ादी महसूस होती है। क्या तुम इंडिया में यह सब इतने
आराम से कर पाते थे?”
“यार, मैंने तो यह देखा कि पिछले महीने मेरे बच्चे की तबियत
इतनी खराब हुई कि जान पर बन आई। घर में बच्चे को देखने के लिए
बस मैं और मेरी बीवी थे, कोई पूछने तक नहीं आया! नहीं रहना
मुझे ऐसी जगह जहाँ मुझे ऐसा अकेलापन लगे। तुझे अच्छा लगता है
तो तू रह, तुझे कौन सा कोई रोक रहा है! और अब उसी बात को कहते
रहना बंद कर!”
और इस बार दूसरे सज्जन ने कुछ नहीं कहा, चुप रहे।
संजना कुछ खाने पीने का सामान लेने के लिए ‘शॉप-राइट’ आई थी और
दूसरे कुछ लोगों की तरह सामान के पैसे देने के लिए लाइन में
खड़ी थी कि आगे खड़े इन दो लोगों की बातों पर उसका ध्यान चला गया
और वह क्षण भर के लिए बच्चे वाले उस सज्जन के मन की व्यथा के
बारे में सोचती रह गई थी।
उस घटना को कई साल बीत गए थे। कभी-कभी वो बात याद आ जाती तो
सोचती कि वो आदमी अपने परिवार को लेकर ज़रूर वापिस भारत चला गया
होगा। उन दो दोस्तों की बातों को सुनकर यही लगा था कि अमेरिका
के जीवन से अति प्रसन्न उन एक महानुभाव को शायद इंडिया में
रोक-टोक के बीच निज इच्छा पूर्ति में असुविधा होती होगी इस लिए
वह स्वछन्द वातावरण को पाकर स्वयम को धन्य मान रहे थे।
खैर, चाहे कोई किसी भी वजह से अमेरिका आया हो, जब भी फुरसत के
कुछ पल मिलें, हर भारतीय अपने सगे-सम्बंधियो, मित्रों और
पुरानी यादों के बहाने अक्सर भारत को याद करता है। त्योहारों
और खुशी के मौकों पर तो वहाँ की यादें और भी सताती हैं। पहले
तो स्वजनों को संदेश भेजने के लिए चिट्ठी लिखकर डाक में डालने
जाना पड़ता था पर आजकल जब चाहो स्काइप के माध्यम से बात कर लो
या फोन उठाओ और नंबर घुमा लो। फोन के रेट तो लोकल-कॉल जैसे हो
गए हैं इस लिए अब पहले की तरह घड़ी को देखते हुए बात नहीं करनी
पड़ती! इंटरनेट, टीवी, फिल्में और फ़ोन आदि की वजह से अपनों और
अपनी संस्कृति से जुड़े रहना काफी सहज हो गया है।
यही सब सोच रही थी कि संजना को अपनी सहेली आरती का ध्यान आ
गया। आरती के पति ईरान से हैं। आरती कितनी कोशिश करती थी कि
उसके बच्चों की कुछ भारतीय बच्चों से दोस्ती हमेशा बनी रहे
वरना उसको यही डर रहता था कि कहीं उसके बच्चे धीरे-धीरे अपनी
संस्कृति को भूल न जाएँ!
भारत से बच्चों का स्नेह और नाता बना रहे इसके लिए बहुत से
भारतीय ऐसे ही यथासंभव चेष्टा करते रहते हैं। यहाँ ऐसे अभिभावक
बच्चों को स्कूल-कॉलेज की शिक्षा के साथ-साथ अपनी मूल भाषा,
शास्त्रीय संगीत एवं नृत्य इत्यादि की शिक्षा दिलवाने की भी
भरपूर चेष्टा करते हैं।
संजना भी उन सबसे अलग नहीं थी। संजना के दोनों बच्चों का जन्म
और परवरिश अमेरिका में हुई थी। पर यहाँ उसके घर के करीब बहुत
से भारतीय परिवार थे इसलिए बच्चों को अपनी संस्कृति से जोड़े
रखने में कुछ तो आसानी रहती थी। संजना और उसके पति मित्रों से
संपर्क बनाए रखते, उनको घर पर बुलाते और उनके घरों पर भी जाते
और अपनी भाषा सिखाने के लिए अक्सर बच्चों से हिंदी में बात
करने की कोशिश भी करते।
शुरू के कुछ सालों में तो बच्चे भी हिंदी में कुछ-कुछ बात कर
लेते थे पर आजकल हिंदी में कही गई हर बात समझने के बाद भी जाने
क्यों बात का जवाब अंग्रेज़ी में देने लगे थे। उनको अपने
दोस्त-सहेली के घर जाना हो तो ठीक है, वरना कहीं और जाते भी तो
मौक़ा पाते ही विडिओ गेम, आई-फोन या कंप्यूटर से चिपक जाते! यह
सब संजना को पसंद नहीं था, पर क्या करती, घर पर होती तो
समय-सीमा रख देती थी पर बाहर जब बड़ों की बातें नीरस लगें तो
बच्चे तो अपने मन की ही करना चाहेंगे क्योंकि पार्टिओं में तो
ज़्यादातर वही एक जैसा वातावरण रहता था, मर्द लोग ऑफिस या
पॉलिटिक्स की बातें करते और औरतें लेटैस्ट-फैशन, गहनों और
सुख-दुःख की बातें करतीं। पर अक्सर यही सब लोग सुख-दुःख के
मौकों पर फोन से, या वीकेंड में घर जाकर एक दूसरे की खोज-खबर
पूछ लेते थे जोकि संजना को अच्छा लगता था।
यों तो शुक्रवार से ही वीकेंड के आने की ख़ुशी शुरू हो जाती है
पर यहाँ वीकेंड कब आया और कब गया इसका पता भी नहीं चलता! यहाँ
वीक-डे में चाहे कितना भी बड़ा त्यौहार आ जाए, उसको वीकेंड में
ही मनाया जाता है क्योंकि यहाँ वीक-डे में अक्सर हर कोई व्यस्त
रहता है। अब आदत हो गई पर है तो यह अटपटी सी बात! पीछे एक
पार्टी में कोई इस बात पर मज़ाक में कह रहा था कि ‘यार, यहाँ तो
मरना भी हो तो वीकेंड देखकर मरना चाहिए!’
आज तो ऑफिस में संजना का दिन इतना व्यस्त रहा कि घर जाकर खाना
बनाने का मन नहीं था। सोचा, जाते-जाते विडिओ स्टोर से कोई
अच्छी सी हिंदी फिल्म ले जाएगी और फिर घर पहुँच कर पिज़्ज़ा
मंगवा लेंगे और आराम से बैठकर फिल्म देखेंगे। और इस बार तो
पन्द्रह अगस्त ‘वीकेंड में’ पड़ रहा है! अभी वो यह सोच ही रही
थी कि उसका ध्यान कार के रेडियो पर बज रहे गीत पर चला गया ‘ऐ
मेरे वतन के लोगो, ज़रा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं
उनकी, ज़रा याद करो कुर्बानी....” इस गीत के बारे में कहीं पढ़ा
था कि कैसे जब लता मंगेशकर ने पहली बार लालकिले से इस गीत को
गाया था तो जवाहरलाल नेहरू जी की आँखें भर आईं थीं और वो आँसू
पोंछते हुए लता मंगेशकर को सराहते हुए बोले थे कि ‘तुमने तो
रुला दिया!’ हाँ, कल पन्द्रह अगस्त है, इसलिए आज से ही रेडिओ
पर बहुत प्यारे देशभक्ति के गीत बज रहे थे।
ऐसे ही रेडिओ पर देशभक्ति के गीतों को सुनते-सुनते संजना को
बचपन में सुनी और स्कूल-कॉलेज की कक्षाओं में पढ़ी हुई वो
शहीदों की कुर्बानिओं की बातें याद आ गयीं और संजना की आँखें
भर आईं। संजना ने झट से अपने आँसू पोंछे और ड्राइविंग करती
रही। सोचा कि मेरे बच्चों के मन में भी अपने देश और देशभक्तों
के लिए ऐसी भावना होनी चाहिए। संजना रास्ते में विडिओ स्टोर से
‘पूरब और पश्चिम’ फिल्म लेकर घर पहुँची। बहुत साल पहले यह
फिल्म देखी थी और याद था कि बहुत प्यारी फिल्म है। पिज़्ज़ा
मँगवाया गया। बच्चों ने पिज़्ज़ा तो खाया पर हिंदी फिल्म देखने
से मना कर दिया।
बंटी बोला, “मम्मी, रीअली, प्लीज़ डोंट ट्राइ टू ट्रिक अस इन
शोइंग दीज़ ओल्ड मूवीज़ फ्रॉम सेवेंटीज़!”
“याद है क्रिसमस की छुट्टियों में दोनों को ‘रोमन हॉलिडे’,
‘अंदाज़ अपना अपना’ और ‘कहो न प्यार है’ फिल्में दिखाईं थीं तो
तुम दोनों कितना खुश हुए थे!”
“दोज़ वर गुड!” ऋतु ने कहा।
संजना को याद आया कि पिछली बार बच्चों के साथ बैठकर एक पुरानी
फिल्म देखते वक़्त वो खुद भी कुछ हैरान सी हुई थी कि ऐसे बचकाना
डायलाग वाली फिल्म कभी उसको कैसे इतनी पसंद आई थी! खैर, जो भी
हो, उस फिल्म के गाने कमाल के थे!
“अच्छा तुम यह ‘पूरब और पश्चिम’ फिल्म सिर्फ १५-२० मिनट देख लो
और अगर १५-२० मिनट देखने के बाद भी यह फिल्म अच्छी न लगे तो मत
देखना ।” यह कहती हुई संजना मन ही मन मुस्कुराई क्योंकि उसको
मालूम था कि यह फिल्म इतनी प्यारी है कि बच्चे एक बार देखने
लगेंगे तो पूरी फिल्म देखे बिना नहीं रह पायेंगे और इस फिल्म
में तो वो ‘ट्विंकल-ट्विंकल’ वाला हँसी भरा गाना भी है! संजना
फिल्म के बारे में बच्चों की प्रतिक्रिया जानने के लिए भी बहुत
उत्सुक थी!
दोनों बच्चों ने फिल्म देखनी शुरू की पर १५-२० मिनट बाद
मुस्कुराकर मम्मी और पापा की तरफ देखा और उठ खड़े हुए जैसे कि
कह रहे हों कि ‘अब समय पूरा हुआ!’ और फिर वे दोनों अपने कमरे
में अपनी पसंद की फिल्म देखने चले गए।
संजना मन मसोस कर रह गई। तभी टीवी पर फिल्म का वो गीत आया
“दुल्हन चली, ओ पहन चली तीन रंग की चोली.....” संजना भागकर
बच्चों के कमरे में गई और बोली “अच्छा, प्लीज़, बस आकर यह गाना
सुन लो, तुमको पता चलेगा के कैसे दिल को छूने वाला गाना है!”
बच्चे अपनी फिल्म को पॉज़ करके आ गए। संजना को इस बात से बहुत
संतोष मिलता कि बच्चे आदर से उन दोनों की बात सुनते थे। खैर,
तभी फिल्म में गीत का वो हिस्सा आया जहाँ बोल थे “आगे-पीछे
तीनों सेना लेके चलें तिरंगा, सेना चलती है लेकर तिरंगा....”
और संजना की आँखें फिर से भर आईं । उसने बच्चों के चेहरों की
तरफ देखा, उनकी आँखों में कहीं भी कोई नमी नहीं थी, ऐसे जैसे
कि इतने सालों और संघर्ष के बाद मिली आज़ादी के बाद अपने
राष्ट्रीय झंडे को फहराते हुए मार्च करने जैसा क्षण कोई आम
क्षण हो!
खैर, वीकेंड आया और फिर से वही लगा कि जैसे आने से पहले ही बीत
गया हो और फिर इतवार के दिन तो अगले दिन का ‘सोमवार होना’ ही
थका देता है। संजना रात के खाने के लिए तैयारी करने लगी।
“ऋतु, बंटी! राजमा के साथ आलू-मेथी बना दूँ?” संजना ने जोर से
आवाज़ देकर पूछा ।
पर कोई जवाब नहीं मिला! हाँ, रसोई में एग्ज़ॉसट-फैन चल रहा हो
तो पता ही नहीं चलता कि कौन क्या कह रहा है!
और ये दोनों भाई-बहन दिन भर तो खेलते रहे अब होमवर्क पूरा करने
का ध्यान आया था! कल क्लास में ऋतु का पोस्टर भी डयू है, बंटी
ने कहा था कि पोस्टर के लिए मदद करेगा। संजना ने धीरे से
स्टडी-रूम के दरवाजे पर दस्तक दी और दरवाज़ा खोला!
“मैंने
पूछा कि राजमा के साथ...” बच्चों को गंभीरता से प्रोजेक्ट में
व्यस्त देखकर संजना बोलते-बोलते रुक गई ।
बंटी ऋतु को समझा रहा था “यू नीड टू ऐड एच आफ्टर जी इन
अफगानिस्तान हियर (यहाँ पर अफगानिस्तान में जी के बाद एच
जोड़ना चाहिये। एंड कैन यू बीलीव दिस पिक्चर! सो मीन! वी डिड
सो मच टू हेल्प देयर कंट्री एंड दिस ग्रुप देयर इज़ बर्निंग अवर
स्टार-स्टडिड फ्लैग!” (विश्वास कर सकती हो इस फोटो
पर? कितने मतलबी हैं ये!
हमने इस देश की सहायता के लिये वहाँ क्या नहीं किया और वे
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