आज
कक्षा में बच्चों का उत्साह देखते ही बनता था, चित्रकला की
क्लास जो थी और टीचर जी ने कहा था कि आज वे एक नए किस्म का
खेल खेलेंगी। बच्चे बड़ी बेसब्री से उनका इंतज़ार कर रहे थे।
टीचर जी ने बच्चों से कहा चलो आज एक ऐसी चीज़ की तस्वीर
बनाओ जो तुम्हे सबसे प्रिय है। तरह तरह की कल्पनाएँ दिमाग
में गडमड करने लगीं। बच्चों के लिए यह तय कर पाना मुश्किल
हो रहा था कि वे क्या बनाएँ। टीचर जी ने तो एक ही चीज़
बनाने को कही थी और यहाँ तो सूची काफी लम्बी थी।
खैर बहुत सोचने पर सबने अपनी अपनी पसंद की चीज़ों को रंगों
में ढालना शुरू कर दिया। प्रकृति प्रेमियों ने चाँद, सूरज,
तारे, कल कल करती नदियाँ, गहरा नीला सागर बनाया तो किसीने
रंग बिरंगे फल फूल तितलियों से पन्ने को सजाया। टीचर जी
बारी बारी से सभी की मेज़ पर जाकर उनकी कृतियों को बड़े
ध्यान से देख रही थीं और बच्चों के मनोविज्ञान को समझ रही
थीं। टहलते टहलते जब वे राजू की मेज़ के पास पहुँची तो देखा
की राजू आँखों का चित्र बना रहा था। टीचर जी ने आश्चर्य से
उसे देखते हुए पूछा,
“राजू यह क्या है?”
“यह मेरी माँ की आँखें हैं टीचर जी। माँ मुझे बहुत प्यार
करती हैं। मेरी छोटी से छोटी बात का ध्यान रखतीं हैं। मुझे
रोता हुआ देख झटसे आँसू पोंछ, गले लगा लेती हैं। मेरी छोटी
से छोटी चोट भी उनसे देखी नहीं जाती। मेरी कोई शैतानी उनसे
छिपी नहीं रहती। माँ से कुछ भी नहीं छिप पाता, मैं कब दुखी
हूँ, कब भूखा हूँ, कब प्यासा हूँ, कब थका हूँ, माँ सब जान
जाती है। माँ जब प्यार से मेरा चेहरा सहलाकर मुझे राजा
बेटा कहती हैं तो मुझे सबसे ज्यादा ख़ुशी होती है। माँ की
आँखों में ढेर सारा प्यार है, इसलिए मुझे यह सबसे प्रिय
हैं।”
रुँधे गले से टीचर जी राजू की बातें सुन रही थीं उसका
उल्लास महसूस कर रहीं थीं।
दुनिया के लिए राजू की माँ दृष्टिहीन थी तो क्या, पर कोई
राजू के दिलसे पूछे...
१ अगस्त २०२२ |