अशोक
भौमिक
नागपुर
में ३१ जुलाई, १९५३ को कानपुर में जन्मे अशोक भौमिक जन
संस्कृति मंच के संस्थापक सदस्यों में से एक हैं। १९७३
में कानपुर विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि लेने के
बाद, उन्होंने कोलकाता के गवर्नमेंट कालेज ऑफ आर्ट एंड
क्राफ्ट से ललित कला में डिप्लोमा प्राप्त किया। वे
बंगाल शैली के अमूर्त जीवाकृतियों के कलाकार माने जाते
हैं। कला के प्रति उनका विचार है, "मेरे लिये, कलाकर्म
लोगों तक संदेश पहुँचाने, लोगों से जुड़ने औ लोगों तक
पहुँचने का माध्यम है।" वे चित्र बनाते हैं मूर्तियाँ
गढ़ते हैं और किताबें लिखते हैं।
कला समीक्षकों और
प्रशंसकों के बीच वे 'मास्टर ऑफ क्रॉसहैचिंग' के रूप
में जाने जाते हैं। उनकी यह दुर्लभ शैली, जिसे
उन्होंने न केवल वर्षों से विकसित किया है, बल्कि आगे
भी बढ़ाया है, उनकी कलाकृतियों में सरलता सटीकता और
स्पष्टता का प्रतिनिधित्व करती है।
भौमिक की कला, कला-प्रेमियों को सबसे बुनियादी और सरल रूप में विशिष्ट
विषय वस्तु को समझने और आनंदित होने की चुनौती देती
है। उनके चित्रों के विषय और दृश्य अत्यंत सहज हैं और
जीवन के आसपास से उठाए हुए हैं। हैचिंग लाइनों को लागू करने का उनका शिल्प काफी
व्यवस्थित है। उनकी उदात्त बनावट और
निर्माण की तकनीक वास्तव में उत्कृष्ट है। एक कला, जो
उन्होंने अपने अनुभव से लगन से हासिल की है। अपने
क्यूबिस्ट कला अन्वेषण में, उन्होंने कला के एक और
विस्तार के साथ खेला है, वह है मूर्तिकला। उन्होंने इस
धारणा को खारिज कर दिया कि क्यूबिज्म एक पूर्ण
अमूर्तता है। उनकी मूर्तियाँ, ज्यादातर विकृत और
मिश्रित विशेषताओं के साथ दिखाई देती हैं।
कुछ समीक्षकों का कहना
है कि वे सुघड़ता के चित्रकार नहीं हैं। सुघड़ता
सुंदरता का अपरिहार्य तत्व है लेकिन अशोक भौमिक की का
मानव को सुघड़ दिनिया की नहीं, उसके जीवन की कठिन
ऊँचाइयों नीचाहियों की कला है। इस दृष्टि से वे
सुघड़ता के विरुद्ध अनगढ़ता के चित्रकार हैं। यह
विरुद्धपन ही उनकी कला की खासियत और खूबसूरती है।
असाधारण रूप से अच्छे
चित्रकार और मूर्तिकार होने के अलावा, वे एक गहन
विचारक, लेखक, रंगमंच के प्रति उत्साही और शिक्षक भी
हैं। उनके खाते में एक दर्जन से अधिक युगांतकारी
पुस्तकें लिखने का श्रेय है, जिनमें जीरो-लाइन पर
गुलजार, मोनालिसा हँस रही थी, चित्रों की दुनिया, और
समकालीन भारतीय चित्रकला-हुसैन के बहाने शामिल हैं।
१ जुलाई
२०२२ |