"गाड़ी
एक घंटा लेट है।" आदित्य ने घड़ी देखते हुए कहा।
"अच्छा ही हुआ लेट है...वरना मिलती भी नहीं।" अंजनी के
चेहरे पर थकान दिखाई दे रही थी।
तभी वहाँ दो बालक आए....मैले कुचेले कपड़े. ..अस्त व्यस्त
बाल। बड़े की उम्र ७-८ साल के लगभग होगी छोटा बहुत छोटा ओर
मासूम दिख रहा था।
"बाबूजी पॉलिश कर दूँ ?" बड़े ने पास आकर पूछा।
आदित्य ने जूते उतारते हुए कहा- कर दे...जल्दी करना ट्रेन
आने वाली है।
"अभी करता हूँ साब।" उसने तपाक से अपने मटमैले झोले में से
पोलिश की डिब्बी, ब्रश, ओर एक कपड़ा निकला ओर जूते साफ करने
लगा।
उसकी नन्हीं हथेलियों से जूते बड़े थे। एक हाथ से जूते को
अपनी छाती का सहारा देकर दूसरे हाथ से वह जूते पर ब्रश
घिसने लगा। अंजनी को लगा वह जूता पकड़ने में उसकी मदद कर
दे।
तभी उसने अपने साथी से,जो शायद उसका भाई था कहा...
"तू क्यों फोकट खड़ा है? उन साब के जूतों पर पॉलिश कर दे।"
मैं नहीं करता तू ही कर।" छोटा मुँह बनाकर बोला।
"अरे कर ले बेटा नहीं तो बहुत पछताएगा।"
"क्या पछताऊँगा? " छोटे ने आँखे बड़ी की।
पॉलिश करते-करते उसने अपना सिर ऊपर उठाया अपने साथी की ओर
देखते हुए जोर से बोला-
"क्या पछताएगा? बाप स्कूल में डाल देगा तो पढ़-पढ़कर मर
जायेगा, फिर किसी काम का नहीं रह जायेगा। इससे अच्छा है
बेटा काम सीख ले, पैसा भी कमाएगा मजे भी करेगा।"
आदित्य और अंजनी ने हतप्रभ एक दूसरे की ओर देखा। अंजनी को
लगा हवा चलना एकाएक बंद हो गयी है उसका दम घुटने लगा।
तभी ट्रेन की आवाज से तन्द्रा भंग हुई। बच्चे के हाथ पर
पैसे रखकर दोनों तेजी से ट्रेन की ओर बढ़ गये।
१ जुलाई २०२२ |