बुल्गारिया का रक्षाबंधन- बाबामार्ता
- आनंद
वर्धन
भारत
की ही तरह बुलगारिया भी त्योहारों का देश है। यहाँ के
बहुत सारे त्यौहार लोक संस्कृति और राष्ट्रीय इतिहास
से भी जुड़े हुए हैं। बाबा मार्ता इसी प्रकार का पर्व
है, जो पूरे देश में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है।
बाबा मार्ता और भारतीय त्योहार रक्षाबंधन में काफी
समानता है। जैसे रक्षाबंधन के दिन बहनें भाई को रक्षा
सूत्र या राखी बांधती हैं उसी तरह बाबा मार्ता के दिन
लोग एक दूसरे के अच्छे स्वास्थ्य की कामना करते हुए
लाल और सफेद ऊन या धागों से बने मार्तेनित्सा बांधते
हैं। यह पर्व १ मार्च को मनाया जाता है। बाबा का अर्थ
बुल्गारिया भाषा में नानी या दादी होता है। इस त्यौहार
के पीछे एक रोचक दंतकथा विख्यात है जिसे मेरी एक प्रिय
छात्रा इलियाना आन्गेलोवा ने लिखकर दिया है।
"प्राचीन काल में प्राक बल्गेरियाई लोग अल्ताई पहाड़ों
के पास रहते थे। उनके राजा का नाम था खान कुब्रात।
उनके पाँच पुत्र और एक पुत्री थी। ईसा की सातवीं सदी
में उनके पुत्र दुनिया के अलग-अलग हिस्सों में अपना
राज्य स्थापित करने के लिए अपना वतन छोड़कर गए। सबसे
बड़ा भाई बोयान अपने देश में ही रहा। दूसरा भाई जिसका
नाम कोत्राग था वह डेन्यूब या दुनाव नदी के किनारे बस
गया। चौथे और पाँचवें भाई ने अपने-अपने राज्यों को
आधुनिक हंगरी सरबिया और इटली की भूमि पर स्थापित किया।
तीसरे भाई का नाम था अस्पारुह। वह डेन्यूब नदी को पार
कर दक्षिण में बस गया। उस समय वहाँ स्लाव लोग रहते थे।
उन्होंने अस्पारुह खान का स्वागत किया और दोनों
जातियों के लोग साथ रहने लगे। यहीं बुल्गारिया राज्य
की स्थापना हुई। अस्पारुह खान नए राज्य का शासक बना।
जनता उनका बहुत आदर करती थी। खान अस्पारुह कुछ दिनों
के बाद बहुत दुखी रहने लगा क्योंकि उन्हें अपनी मां और
बहन की बहुत याद आती थी। एक दिन उन्होंने दानूब नदी के
किनारे जाकर और ऊपर देखकर देवताओं को अपनी पीड़ा बताई।
अचानक चमत्कार हुआ और खान अस्पारूह के कंधे पर एक
अबाबील पक्षी आकर बैठ गया। खान अस्पारुह ने उसे सब कुछ
बताया। तब अबाबील अस्पारुह खान के पुराने देश में गया
और वहाँ उनकी बहन से मनुष्य की आवाज में कहा कि उसके
भाई के पास नया राज्य है लेकिन उन्हें अपनी बहन की
बहुत याद आती है और वह अपनी बहन के स्वास्थ्य और
सौभाग्य के लिए देवताओं से रोज प्रार्थना करते हैं।
यह खबर सुनकर बहन बहुत खुश हुई और अपने भाई को उपहार
भेजने के लिए उसने सुगंधित औषधियों का एक छोटा सा
गुलदस्ता बनाया और उसको सफेद ऊनी धागे से अबाबील के
पैरों में बाँध दिया क्योंकि प्राचीन बुल्गारियाई लोग
इसी प्रकार एक दूसरे को संदेश भेजा करते थे। अबाबील
देवताओं की मदद से बहुत जल्दी वापस खान के पास पहुँचा
लेकिन उसकी उड़ान बहुत लंबी थी और थकान के कारण उसके
पैरों से खून बहने लगा जिससे ऊनी धागे का रंग कहीं
कहीं से लाल हो गया। खान अस्पारुह ने धागे में लिपटा
अपनी बहन का भेजा हुआ संदेश पढ़ा और बहुत खुश हुआ। इसके
बाद उन्होंने सफेद और लाल धागे को अपने सीने पर रखा और
फिर से चमत्कार हुआ और धागा चमकने लगा। वह १ मार्च का
दिन था। उसी दिन से अस्पारुह खान ने अपनी जनता को आदेश
दिया अब से प्रत्येक १ मार्च को हर व्यक्ति अपने
प्रियजनों के सीने पर सफेद और लाल ऊन से बना हुआ धागा
बाँधेगा ताकि उन्हें अच्छा स्वास्थ्य और देवताओं का
आशीर्वाद मिले। इस धागे को मार्तेनित्सा कहते हैं।
मार्तेनित्सा बाँधने की परंपरा के पीछे एक दूसरी
लोककथा भी प्रसिद्ध है। प्राचीन काल में बुल्गारिया के
लोग मानते थे कि परलोक में ११ भाई और एक बहन रहते हैं
जो १२ महीनों के प्रतीक हैं। हर महीने का मौसम किसी न
किसी भाई के स्वभाव जैसा है। कुछ भाई हमेशा मुस्कुराते
हैं और इनके महीनों का मौसम गर्म और अच्छा है। जो भाई
बहुत गुस्सैल हैं उनके महीनों का मौसम ठंडा होता है।
उनकी बहन का नाम मार्ता है जो भाइयों से बड़ी है।
इसलिए उसे बाबा यानी नानी बुलाते हैं। वह मार्च महीने
का प्रतीक है। इसी महीने में बुल्गारिया में सर्दियों
का अंत होता है और वसंत का आरंभ होता है।
स्त्री होने के कारण मार्ता कभी-कभी मुस्कुराती है तो
आसमान में सूर्य निकलता है और अपनी किरणों से सभी
जीवों और फूलों को स्पर्श करता है तब सभी प्राणी खुश
हो जाते हैं लेकिन कभी-कभी बाबा मार्ता को गुस्सा आता
है और वह रोने लगती है तब आसमान से बारिश होती है।
कभी-कभी बाबा मार्ता अपने घर की सफाई करने लगती है और
जब वह झाड़ू लगाती है तब दुनिया में बर्फ गिरती है।
मार्ता के इस स्वभाव के कारण लोगों को बहुत परेशानी
होती थी इसलिए उसको खुश रखने के लिए लोगों ने एक तरीका
सोचा। १ मार्च को वे अपने प्रियजनों, रिश्तेदारों और
दोस्तों की कलाइयों या सीने पर सफेद और लाल धागों से
बने हुए कंगन बाँधने लगे। मार्ता के नाम पर लोगों ने
उनको मार्तेनित्सा कहा। बाबा मार्ता ने देखा कि सभी
लोग उसका आदर करते हैं।
जब बाबा मार्ता प्रसन्न हो जाती है और मुस्कुराने लगती
है, तब आसमान में सूर्य निकलता है और सबको धूप प्रदान
करता है। इसीलिए प्राचीन काल से बुलगारिया में माना
जाता है कि यदि सभी लोग मार्तेनित्सा बाँधेंगे तो बाबा
मार्ता प्रसन्न होंगी और मार्च महीने का मौसम ठीक
होगा। इसे तब तक पहना जाता है जब तक वसंत न आ जाए और
सम
पूरी तरह से ठीक न हो जाए। सातवीं सदी में शुरू हुई यह
परंपरा आज भी जारी है। पुराने जमाने में मार्तेनित्सा
मकानों पर भी बाँधे जाते थे ताकि घर के सभी लोग और
पालतू पशु भी स्वस्थ रहें और घर का कल्याण हो।
बुल्गारिया में वसंत के मौसम का पहला दिन २२ मार्च
माना जाता है इसीलिए उस दिन लोग अपने मार्तेनित्सा
उतार कर किसी खिलते हुए पेड़ पर बाँध देते हैं ताकि
फसलें अच्छी हों।
यहाँ
लकलक पक्षी और खिलते हुए पेड़ आने वाले वसंत के प्रतीक
हैं इसलिए यदि उन्हें २२ मार्च से पहले देख लिया जाए
तो मार्तेनित्सा को उतारा जा सकता है। कई लोग यह भी
मानते हैं कि इसे उतारते समय अगर वे कुछ माँगा जाय तो
वह इच्छा पूरी होती है। समय के साथ मार्तेनित्सा भी
रक्षाबंधन के धागे की तरह सिर्फ धागा नहीं रह गया।
उसमें फुँदने और ऊन की सुंदर आकृतियाँ जुड़ गयीं
(चित्र ऊपर) लेकिन इससे पर्व की लोक भावना पर कोई
प्रभाव नहीं पड़ा। बाबा मार्ता का यह त्यौहार लोगों के
बीच बंधुत्व और प्यार को बढ़ाता है इसीलिए यह अत्यंत
लोकप्रिय है, बिल्कुल रक्षाबंधन की तरह।"
१ अगस्त २०२२ |