समकालीन कहानियों में भारत से
सुदर्शन खन्ना की कहानी
भुट्टेवाला
‘भइया,
क्या तुम्हारे पास नरम नरम और कच्चे भुट्टे हैं, छोटे बच्चों
के लिए ले जाने हैं?’ सुरेखा ने बाज़ार में रेहड़ी पर भुट्टे
वाले से पूछा जो गर्मी के बावजूद कच्चे कोयले की अग्नि में
भुट्टे सेक सेक कर रखता जा रहा था। ‘हाँ, बहन जी, बहुत हैं,
कितने चाहिएँ?’ भुट्टे वाले ने पंखा चलाते-चलाते पूछा।
‘मुझे पाँच भुट्टे ले जाने हैं, ज़रा निकाल दो और यह भी बता दो
कि कितने का है एक भुट्टा’ सुरेखा ने कहा। ‘बहन जी, एक भुट्टा
दस रुपये का है और पाँच भुट्टे पचास रुपये के होंगे’ भुट्टे
वाले ने तुरंत जवाब दिया। ‘पाँच भुट्टे लेने पर भी कोई छूट
नहीं!’ सुरेखा ने कहा। ‘अरे बहन जी, सुबह से शाम तक खड़े रहकर
तपती गर्मी में कोयले की आग पर सेक कर भुट्टे बेचते हैं, कोयला
भी दिन-ब-दिन महँगा होता जा रहा है। क्या करें, इतनी कमाई नहीं
होती जितना कि आपको लग रहा है। हाँ, अगर आपको कच्चे ही ले जाने
हैं और घर पर सेकने हैं तो मैं आपको आठ रुपये के हिसाब से दे
दूँगा’ भुट्टे वाले ने समझाया। ‘अरे
घर पर कौन सेकेगा?
आगे...
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सुभाष बुड़ावनवाला का
प्रेरक प्रसंग-
ग्राहक की संतुष्टि
*
प्रकृति के अंतर्गत
संकलित आलेख कहानी मक्के की
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राकेश ढौंडियाल का ललित
निबंध
सॉफ्टी भुट्टे गुब्बारे
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पुनर्पाठ में
स्वाद और स्वास्थ्य के अंतर्गत-
मधुर मक्का
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