इनमें भी बारिश के गीतों का अपना अलग स्थान
है आज इस बारिश के मौसम मे हम यहाँ इन्हीं बारिश से भीगे गीतों की बात
करेंगे। बारिश का मौसम वैसे तो हम सभी को अच्छा लगता है परंतु हिंदी
फ़िल्मों के निर्माता निर्देशकों को बारिश का मौसम ज़्यादा ही भाता है। कभी
सिचुएशन की ज़रूरत के मुताबिक तो कभी बगैर सिचुएशन की ज़रूरत के जब कभी भी
अवसर मिलता है हमारे फ़िल्मकार बरसात को गीतों के फ़िल्मांकन के लिए उपयोग
करने से नहीं चूकते बारिश के प्रति फ़िल्मकारों के इस विशेष अनुराग का कारण
है बारिश की हमारी ज़िंदगी में ख़ासी अहमियत जिसके दो पहलू है। पहला पहलू
जो आर्थिक है वो यह है कि हमारी खेती आज भी पूरी तरह बारिश पर निर्भर करती
है इसलिए बारिश का हमारी रोजी रोटी से गहरा संबंध है। दूसरा पहलू यह है कि
बारिश का मौसम हमारे जीवन में एक ख़ास उत्सव का सा स्थान रखता है ये मस्ती
प्यार उल्लास एवं उन्माद का मौसम है। बारिश की बूँदों का जादुई स्पर्श
हमारी रूमानी भावनाओं को जागृत करता है। हमारे कवियों व नाटककारों ने इस
मौसम के बारे में बहुत कुछ लिखा है। हमारा साहित्य सावन के इन गीतों व
कविताओं से भरा पड़ा है।
जाहिर है
हमारी फ़िल्में भी बारिश से अछूती नहीं रह सकती हैं। बारिश की इस अहमियत की
वजह से हमारी फ़िल्मों की कहानियों में बारिश के दृश्यों के फ़िल्मांकन की
अच्छी ख़ासी गुंजाइश रहती है। हमारे जीवन की तरह सिनेमा के पर्दे पर भी
बारिश का दृश्य असीम आनंद व ऊर्जा पैदा करता है उस पर बारिश के बहाने पानी
में भीगती नायिका को बदन से चिपकते कपड़ों में पर्दे पर दिखाने के अवसर को
कोई निर्माता निर्देशक खोना नहीं चाहता है। बारिश के प्रति हमारे
फ़िल्मकारों के विशेष अनुराग ने कई खूबसूरत व यादगार गीतों को जन्म दिया है
जिन्हें सुनते हुए हमने बचपन से अब तक कई सावन देखे हैं और शायद इसीलिए ये
तमाम गीत हमारी बरसात की यादों से गहरे तौर पर जुड़े हुऐ हैं।
बरसात को हिन्दी फ़िल्मों के गीतों में कई
सिचुएशन में इस्तेमाल किया गया है हालाँकि अधिकतर गीतों में बारिश का
प्रयोग दृश्य को रोमांटिक पुट देने के लिए ही किया गया है एवं बारिश के
ज़्यादातर गीत रोमांस प्यार मस्ती उल्लास एवं उमंग से भरे नृत्य प्रधान गीत
हैं परंतु इनके अलावा भी बारिश के गीतों में अलग-अलग मूड के कई गीत शामिल
हैं। कुछ गीत विरह वेदना का स्वर लिए हुए हैं तो कभी मेघों के माध्यम से
पिया को मोहब्बत का पैगाम भेजा गया है कभी गीत के माध्यम से अल्लाह से
बारिश की गुहार की गई है तो कभी बारिश होने पर खुशी का इज़हार किया गया है।
१९४४ में रिलीज़ हुई सुपरहिट फ़िल्म रतन
के हिट गीत ''सावन के बादलों'' से लेकर २००७ में रिलीज़ हुई फ़िल्म 'गुरु'
के सुपरहिट गीत ''बरसो रे मेघा मेघा बरसो रे'' तक बरसात से जुड़े गीतों की
सूची बड़ी लम्बी है और इनमें से ज़्यादातर गीत सुपरहिट साबित हुए हैं। कई
फ़िल्मों के शीर्षक में भी ''बरसात'' शब्द का उपयोग किया गया है। ''बरसात''
नाम से दो फ़िल्में बनी हैं और दोनों ही हिट साबित हुई हैं जिसमें से एक के
नायक राजकपूर (१९४९) थे एवं दूसरी (१९९५) के नायक बाबी देओल थे। इनमें से
राजकपूर की ''बरसात'' को तो क्लासिक फ़िल्म माना जाता है। इसी तरह १९६० में
रिलीज़ हुई भारतभूषण-मधुबाला की फ़िल्म ''बरसात की रात'' और १९८१ की शक्ति
सामंत निर्देशित अमिताभ बच्चन-राखी की फ़िल्म ''बरसात की एक रात'' भी सुपर
हिट साबित हुईं थी। सावन के शीर्षक वाली फ़िल्मों में से १९७९ की अरुण
गोविल-ज़रीना वहाब अभिनीत फ़िल्म ''सावन को आने दो'' व उसके गीत काफी
लोकप्रिय हुए थे।
जब कभी फ़िल्मी गीतों में बरसात का ज़िक्र
होता है तो जेहन में सबसे पहले राजकपूर की आलटाइम क्लासिक फ़िल्म बरसात
(१९४९) का राग भैरवी पर आधारित ''बरसात में हम से मिले तुम सजन'' एवं श्री
४२० (१९५५) का राजकपूर व नरगिस पर छाते में फ़िल्माया गया अविस्मरणीय गीत
''प्यार हुआ इकरार हुआ प्यार से फिर क्यों डरता है दिल'' आते हैं। ''प्यार
हुआ इकरार हुआ'' को तो हिन्दी सिनेमा के सर्वाधिक रोमांटिक गीतों में से एक
माना जाता है। मन्ना डे व लता जी ने बड़े ही दिलकश अन्दाज़ से इस गाने को
गाया है। यह गीत बारिश की बूँदों से पर्दे पर लिखा मोहब्बत का अमर
दस्तावेज़ है।
बरसात से जुड़े कुछ और क्लासिक गीतों की
बात करें तो बिमलराय की फ़िल्म 'परख' (१९६०) का लता जी का गाया व सलिल
चौधरी का संगीतबद्व ''ओ सजना बरखा बहार आई रस की फुहार लाई'' सलिल चौधरी का
ही संगीतबद्व व शैलेन्द्र का लिखा फ़िल्म जागते रहो (१९५६) का ''ठंडी ठंडी
सावन की फुहार'' फ़िल्म कालाबाजार (१९६०) का रफी व गीता दत्त का गाया
''रिमझिम के तराने ले के आई बरसात'' सुजाता (१९५९) का ''काली घटा छाए मेरा
जिया तरसाये'' और फ़िल्म ''बरसात की रात'' (१९६०) के ''गरजत बरसत सावन आये
रे'' व ''ज़िंदगी भर नहीं भूलेगी बरसात की रात'' अविस्मरणीय बारिश गीतों की
श्रेणी में आते हैं। गौर तलब है कि लता जी ''ओ सजना बरखा बहार आई रस की
फुहार लाई'' को अपने दस पसंदीदा गानों में शुमार करती हैं।
इसी कड़ी में फ़िल्म ''चलती का नाम
गाड़ी'' (१९५८) का ''एक लड़की भीगी भागी-सी'' एक मस्ती भरा बारिश गीत है इस
गीत में बारिश में भीगती मधुबाला का शाश्वत सौंदर्य अपने सर्वोच्च शिखर पर
है। एक और बड़ा खूबसूरत बरखा गीत है महान संगीतकार मदनमोहन का फ़िल्म चिराग
(१९६९) का मजरूह सुल्तान पुरी का लिखा ''छाई बरखा बहार पड़े अंगना फुहार
पिया आ के गले लग जा''।
वी.शांताराम की कालजयी फ़िल्म ''दो आंखें
बारह हाथ'' (१९५७) का भरत व्यास का लिखा एवं बसंत देसाई का संगीतबद्व
''उमड़ घुमड़ घिर आई रे घटा'' एक सिचुएशन आधारित बारिश गीत है जिसमें नायक
जेलर के साथ सुधरने के लिए भेजे गए कैदी ज़मीन के एक बंजर टुकड़े को खेती
योग्य बनाने में जुटे हैं व बारिश होने पर वे इस गीत को गाकर उल्लास मनाते
हैं। यहाँ बारिश को कैदियों के अन्दर हुए बदलाव पर ईश्वरीय आशीर्वाद के
प्रतीक के रूप में इस्तेमाल किया गया है।
यों तो मजरूह सुल्तान पुरी, ''जारे कारे
बदरा बलम के द्वार'' फ़िल्म ''धरती कहे पुकार के'', ''छाई बरखा बहार''
फ़िल्म ''चिराग'') से लेकर प्रसून जोशी ( फ़िल्म ''हम तुम'') तक और शंकर
जयकिशन ''बरसात में हम से मिले तुम सजन'' फ़िल्म ''बरसात'', ''प्यार हुआ
इकरार हुआ'' फ़िल्म ''श्री ४२०'') से लेकर ए. आर. रहमान (''घनन घनन घन
गरजत आये'' फ़िल्म ''लगान'') तक सभी ने पर्दे पर समय समय पर सुरीले बारिश
गीतों की बारिश की है परंतु ग़ौर-तलब है कि हिंदी फ़िल्मों में सबसे
ज़्यादा लोकप्रिय बारिश गीत गीतकार आनन्द बक्षी एवं संगीतकार लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल
की जोड़ी ने दिए हैं। कुछ उदाहरण देखिए फ़िल्म ''मिलन'' (१९६७) का लोकगीतों
की भाषा में लिखा गया राग पहाड़ी पर आधारित अमर गीत ''सावन का महीना पवन
करे शोर'' फ़िल्म अनजाना का ''रिमझिम के गीत सावन गाए भीगी भीगी रातों
में'' फ़िल्म ''दो रास्ते'' का ''छुप गये सारे नज़ारे ओए क्या बात हो गई"
फ़िल्म ''मेरा गाँव मेरा देश'' का ''कुछ कहता है ये सावन'' और फ़िल्म ''आया
सावन झूम के'' का शीर्षक गीत ''बदरा छाए झूले पड़ गए हाए'' आदि उनकी यादगार
रचनाएँ हैं। ये गीत बारिश के दिनों में रेडियो पर सबसे ज़्यादा बजने वाले
कभी न भुलाए जा सकने वाले गीतों में से हैं।
महान संगीतकार एस. डी. बर्मन और उनके
पुत्र आर. डी. बर्मन ने भी कई यादगार बारिश गीतों की रचना की है। एस. डी.
बर्मन का संगीतबद्ध व नीरज का लिखा फ़िल्म ''शर्मीली'' का राग पाटदीपक पर
आधारित गीत ''मेघा छाये आधी रात बैरन बन गई निंदिया'', गाइड (१९६५) का एस.
डी. बर्मन का स्वयं का गाया ''अल्लाह मेघ दे पानी दे छाया दे'' और फ़िल्म
''सुजाता'' (१९६०) का शैलेन्द्र रचित गीत ''काली घटा छाये मोरा जिया तरसाये''
हिन्दी सिनेमा के अनमोल गीतों की श्रेणी में आते हैं। आर. डी. बर्मन के
संगीतबद्व मधुर बारिश गीतों में फ़िल्म ''मंज़िल'' (१९७८) का ''रिमझिम गिरे
सावन'' जुर्माना (१९७९) का ''सावन के झूले पड़े'' अजनबी का ''भीगी भीगी
रातों में'' बेताब (१९८३) का ''बादल यों गरजता है डर कुछ ऐसा लगता है'' और
''१९४२ ए लव स्टोरी'' (१९९३) का प्रसिद्व गीत ''रिमझिम रिमझिम रूमझुम
रूमझुम'' आदि शामिल हैं।
गीतों में बारिश की बात हो और गुलज़ार का
ज़िक्र न हो यह नामुमकिन है। गुलज़ार साहब ने बतौर निर्देशक एवं गीतकार
गीतों में बारिश को लेकर कुछ खूबसूरत अभिनव प्रयोग किए हैं जो औरों से हटकर
हैं उदाहरण स्वरूप गुलज़ार साहब की फ़िल्म ''किनारा'' (१९७७) का उनका ही
लिखा गीत ''अबके न सावन बरसे अबके बरस तो बरसेंगी अँखियाँ'' फ़िल्म
''आशीर्वाद'' (१९६८) का ''झिर झिर बरसे सावलीं अँखियाँ'' फ़िल्म इजाज़त
(१९८७) का आशा जी का गाया ''बारिशों के पानी से छोटी-सी कहानी से सारी वादी
भर गई'' फ़िल्म ''नमकीन'' (१९८२) का ''फ़िर से आइयो बदरा बिदेसी'' एवं
फ़िल्म ''सत्या'' (१९९८) का ''गीला गीला पानी'' पारंपरिक बारिश गीतों से
हटकर अलग मिजाज़ के बड़े खूबसूरत गीत हैं जो न सिर्फ़ फ़िल्म के मूड को
जाहिर करते हैं बल्कि इनमें अन्य बारिश गीतों में दिखने वाले मांसल सौंदर्य
की जगह एक सादगी भरे आलौकिक सौंदर्य का अहसास होता है। ये गाने आपको आपके
भौतिक परिवेश से दूर ले जाते हैं। इन गीतों के सौंदर्य को लफ़्जों में बयान
नहीं किया जा सकता सिर्फ़ महसूस किया जा सकता है मेरी गुज़ारिश है कि आप इन
गीतों को देखें व सुनें और इनकी तपन को महसूस करें।
इसी तरह मनोज कुमार की फ़िल्म ''शोर''
(१९७२) के लिए गीतकार संतोष आनंद ने एक अदभुत फ़िलासॉफ़िकल गीत ''पानी रे
पानी तेरा रंग कैसा'' लिखा था। सिचुएशन कुछ ऐसी थी कि मज़दूर लोग मिल के
बाहर हड़ताल पर भूखे प्यासे बैठे हैं और ऐसे में जमकर बारिश होती है बरसात
में लोग जी भर कर नाचते हैं। यह गीत बाकी बारिश गीतों से हटकर है। पहली बार
किसी गीत में बारिश बरसात या सावन की बजाय ''पानी'' की बात कही गई। यह गीत
बारिश के पानी से उपजे आनंद के साथ-साथ बारिश से होने वाली परेशानियों की
भी अभिव्यक्ति है। इस गीत में बारिश के हर रंग की बात है व इसके बोलों के
साथ-साथ इस गीत का फ़िल्मांकन भी उच्चकोटि का है।
इस एक गाने ने फ़िल्मकार मनोज कुमार का कद काफी ऊँचा कर दिया। इसी तरह १९८१
में रिलीज हुई फ़िल्म ''प्यासा सावन'' का संतोष आनंद का ही लिखा गीत ''मेघा
रे मेघा रे'' फ़िल्म पहेली का रविन्द्र जैन रचित ''बृष्टि पड़े टापुर टापुर''
भी बेहतरीन बारिश गीतों की श्रेणी में आते हैं।
रोमांटिक फ़िल्मों व खूबसूरत फ़िल्मांकन
के लिए मशहूर फ़िल्मकार यश चोपड़ा को भी बारिश से ख़ासा लगाव रहा है और
उनकी पर्दे पर बारिश को प्रस्तुत करने की विशिष्ट शैली रही है उन्होंने समय
समय पर अपनी फ़िल्मों में बारिश का खूबसूरत प्रयोग नायिका की खूबसूरती को
निखारने के लिए किया है। फिर वो उनकी फ़िल्म ''चाँदनी'' का सुरेश वाडकर का
गाया विरह गीत ''लगी आज सावन की फ़िर वो झड़ी है'' हो, ''दिल वाले
दुल्हनिया ले जाएँगे'' का काजोल पर फ़िल्माया गया लता जी का मस्ती भरा गाना
''मेरे ख्वाबों में जो आए'' हो या फिर दिल तो पागल है का सुपर हिट कोरस
''घोड़े जैसी चाल हाथी जैसी दुम ओ सावन राजा कहाँ से आए तुम'' हो इन सभी
गानों में नायिकाओं का सौंदर्य व बारिश के दृश्यों का फ़िल्मांकन अदभुत बन
पड़ा है जिस पर यश चोपड़ा की छाप स्पष्ट दिखाई देती है।
कुछ अन्य लोकप्रिय बारिश गीतों में जो
परदे पर जबर्दस्त मादकता पैदा करते हैं प्रकाश मेहरा की ''नमक हलाल'' का
अमिताभ बच्चन व स्मिता पाटिल पर फ़िल्माया गया ''आज रपट जायें'', ''मोहरा''
का रवीना टंडन पर फ़िल्माया गया उत्तेजक ''टिप टिप बरसा पानी'', मि. इंडिया
का श्रीदेवी पर फ़िल्माया गया ''काटे नहीं कटते ये दिन और रात'', फ़िल्म ''चालबाज़''
में श्रीदेवी पर ही फ़िल्माया गया मस्ती भरा गीत ''किसी के हाथ न आएगी ये
लड़की'' व फ़िल्म ''कुछ कुछ होता है'' में काजोल व शाहरूख पर बारिश में
फ़िल्माया गया गीत शामिल हैं। ये सभी ज़बर्दस्त रोमांटिक गाने हैं ख़ासकर
''मि. इंडिया'' में नीली साड़ी में बारिश की फुहारों में भीगती हुई
श्रीदेवी का नैसर्गिक सौंदर्य व मादक नृत्य पर्दे पर गज़ब का रूमानी प्रभाव
पैदा करता है। इन गीतों का इनकी फ़िल्मों की सफलता में योगदान नकारा नहीं
जा सकता।
इधर पिछले कुछ सालों में रिलीज हुई
फ़िल्मों की चर्चा करें तो सन २००१ में रिलीज़ हुई फ़िल्म ''लगान'' का
जावेद अख्तर का लिखा लोकप्रिय गीत ''घनन घनन घन गरजत आये'' पिछले कुछ सालों
का सार्वाधिक लोकप्रिय बारिश गीत कहा जा सकता है। यह गीत ''बरसात की रात''
(१९६०) के ''गरजत बरसत सावन आये रे'' व ''दो आँखे बारह हाथ'' (१९५७) के गीत
अमर गीत ''उमड़ घुमड़ घिर आई रे घटा'' की याद दिलाता है।
हालाँकि आजकल आइटम सांग्स के बढ़ते फैशन
की वजह से फ़िल्मों में बारिश के गीतों का चलन कुछ कम हुआ है परंतु हाल के
वर्षों में रिलीज़ फ़िल्मों हम तुम चमेली कोई मिल गया गुरु आदि के बारिश
गीत उम्मीद जगाते हैं कि हमारी हिन्दी फ़िल्मों और बरसात का सनातन रिश्ता
कायम रहेगा व भविष्य में हमें हिन्दी फ़िल्मों में और भी कई खूबसूरत बारिश
गीत देखने व सुनने को मिलेंगे जो हमारी आने वाली बारिशों को और भी सुरीला
बनाएँगे।
१ अगस्त
२०२० २८
जुलाई २००८ |