एक किसान था। उसका नौ-दस साल का एक बेटा था।
किसान कभी-कभार उसे भी अपने साथ खेत में ले जाता था। एक बार वह अपने बेटे
को खेत पर लेकर गया तो भुट्टे पक चुके थे। किसान उन्हें तोड़कर बाजार ले
जाने की तैयारी करने में जुट गया। तभी उसके बेटे ने पिता से कहा-'पिताजी,
क्या मैं भी आपकी कुछ मदद कर सकता हूँ?' इस पर किसान ने कहा-'हाँ-हाँ। ऐसा
करते हैं, मैं खेत से भुट्टे तोड़-तोड़कर निकालता जाऊँगा और तुम एक-एक दर्जन
भुट्टों की अलग-अलग ढेरियाँ बनाते जाना।'
इसके बाद वे दोनों काम पर जुट गए। दोपहर का खाना खाने के बाद किसान ने बेटे
द्वारा बनाई ढेरियों पर नजर दौड़ाई और कुछ और भुट्टे तोड़ लाया। उसने हर ढेरी
में एक-एक भुट्टा और बढ़ा दिया। यह देख किसान का बेटा बोला-'पिताजी, मुझे
गिनती आती है। मैंने हर ढेरी में गिनकर बारह भुट्टे ही रखे हैं। अब तो ये
तेरह हो गए।' किसान ने मुस्कराते हुए कहा-'बेटा, तुम ठीक कहते हो, लेकिन जब
हम भुट्टे बेचने निकलते हैं तो एक दर्जन में तेरह भुट्टे होते हैं।'
बेटे ने पूछा-'ऐसा क्यों पिताजी?' किसान ने समझाया-'देखो, भुट्टे के ऊपर
छिलका होता है। हमारे ढेर में एक भुट्टा खराब भी निकल सकता है। इसलिए हम
ग्राहकों को दर्जन पर एक भुट्टा अतिरिक्त देते हैं ताकि हमारे ग्राहक ये न
समझें कि हमने उन्हें धोखा दिया। हम चाहते हैं कि हमारा ग्राहक संतुष्ट
होकर दूसरों को भी बताए कि भुट्टे कितने अच्छे हैं। इस तरह हमारे भुट्टे और
ज्यादा बिकेंगे।' पिता की इन बातों से बेटे को कारोबार का एक अहम सबक मिल
गया- ग्राहक की संतुष्टि सर्वोपरि है।
१ जुलाई २०१९ |