वरिष्ठ
कथाकारों की प्रसिद्ध कहानियों के स्तंभ
गौरव गाथा में
प्रस्तुत है
जैनेंद्र की कहानी-
तत्सत
एक
गहन वन में दो शिकारी पहुँचे। वे पुराने शिकारी थे। शिकार की
टोह में दूर-दूर घूम रहे थे, लेकिन ऐसा घना जंगल उन्हें नहीं
मिला था। देखते ही जी में दहशत होती थी। वहाँ एक बड़े पेड़ की
छाँह में उन्होंने वास किया और आपस में बातें करने लगे।
एक ने कहा, "आह, कैसा भयानक जंगल है।"
दूसरे ने कहा, "और कितना घना!"
इसी तरह कुछ देर बात करके और विश्राम करके वे शिकारी आगे बढ़
गए।
उनके चले जाने पर पास के शीशम के पेड़ ने बड़ से कहा, "बड़
दादा, अभी तुम्हारी छाँह में ये कौन थे? वे गए?" बड़ ने कहा,
"हाँ
गए।
तुम उन्हें नहीं जानते हो?"
शीशम ने कहा, "नहीं, वे बड़े अजब मालूम होते थे। कौन थे,
दादा?''
दादा ने कहा, "जब छोटा था, तब इन्हें देखा था। इन्हें आदमी
कहते हैं। इनमें पत्ते नहीं होते, तना ही तना है। देखा, वे
चलते कैसे हैं? अपने तने की दो शाखों पर ही चलते चले जाते
हैं।"
शीशम - "ये लोग इतने ही ओछे रहते हैं, ऊँचे नहीं उठते, क्यों
दादा?''
आगे...
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पंचतंत्र से लघुकथा-
जुलाहा और यक्ष
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डॉ विद्युल्लता का ललित निबंध
शीशम कितना मनोहारी
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मुकेश कुमार पारीख की कलम से
भारत का प्रमुख पेड़ शीशम
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पुनर्पाठ में गिरीश भंडारी का आलेख
वृक्ष : भिन्न देश-भिन्न परम्पराएँ
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