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लेखकों से
 १. ५. २०१९

इस माह-

अनुभूति में-
रामनवमी के अवसर पर विविध विधाओं में विभिन्न रचनाकारों की अनेक भावभीनी रचनाएँ।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- गरमी के मौसम में नर्म तरावट के लिये हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- कच्चे आम का मीठा पना

स्वास्थ्य में- २० आसान सुझाव जो जल्दी वजन घटाने में सहायक हो सकते हैं- ९- बाहर का खाना बंद और १०- नियमित व्यायाम

बागबानी- तीन आसान बातें जो बागबानी को सफल, स्वस्थ और रोचक बनाने की दिशा में उपयोगी हो सकते हैं-  कुछ उपयोगी सुझाव-

सुनो कहानी में- विभिन्न देशों के व्यक्तिगत डाक-टिकटों की जानकारी से सम्बंधित पूर्णिमा वर्मन का आलेख- डाकटिकटों के संसार में कचनार

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (मई) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- डॉ. रंजीत पटेल की कलम से डॉ. रंजना गुप्ता के नवगीत संग्रह- सलीबें का परिचय।

वर्ग पहेली- ३१३
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

वरिष्ठ कथाकारों की प्रसिद्ध कहानियों के स्तंभ
गौरव गाथा में प्रस्तुत है जैनेंद्र की कहानी- तत्सत

एक गहन वन में दो शिकारी पहुँचे। वे पुराने शिकारी थे। शिकार की टोह में दूर-दूर घूम रहे थे, लेकिन ऐसा घना जंगल उन्हें नहीं मिला था। देखते ही जी में दहशत होती थी। वहाँ एक बड़े पेड़ की छाँह में उन्होंने वास किया और आपस में बातें करने लगे।
एक ने कहा, "आह, कैसा भयानक जंगल है।"
दूसरे ने कहा, "और कितना घना!"
इसी तरह कुछ देर बात करके और विश्राम करके वे शिकारी आगे बढ़ गए।
उनके चले जाने पर पास के शीशम के पेड़ ने बड़ से कहा, "बड़ दादा, अभी तुम्हारी छाँह में ये कौन थे? वे गए?" बड़ ने कहा,
"हाँ गए। तुम उन्हें नहीं जानते हो?"
शीशम ने कहा, "नहीं, वे बड़े अजब मालूम होते थे। कौन थे, दादा?''
दादा ने कहा, "जब छोटा था, तब इन्हें देखा था। इन्हें आदमी कहते हैं। इनमें पत्ते नहीं होते, तना ही तना है। देखा, वे चलते कैसे हैं? अपने तने की दो शाखों पर ही चलते चले जाते हैं।"
शीशम - "ये लोग इतने ही ओछे रहते हैं, ऊँचे नहीं उठते, क्यों दादा?'' आगे...
*

पंचतंत्र से लघुकथा-
जुलाहा और यक्ष
*

डॉ विद्युल्लता का ललित निबंध
शीशम कितना मनोहारी
*

मुकेश कुमार पारीख की कलम से
भारत का प्रमुख पेड़ शीशम
*

पुनर्पाठ में गिरीश भंडारी का आलेख
वृक्ष : भिन्न देश-भिन्न परम्पराएँ

पिछले अंक-में--- रामनवमी के अवसर पर

मुक्ता पाठक की लोककथा-
जब राम और शिव में युद्ध हुआ
*

श्रीराम परिहार की कलम से
रामकथा की सांस्कृतिक यात्रा
*

डा. राधेश्याम द्विवेदी का आलेख
श्रीराम वन-गमन मार्ग के प्रमुख स्थान
*

शशि पुरवार की श्रद्धाजलि
गीत के वटवृक्ष- मधुकर गौड़

*

समकालीन कहानियों में भारत से रेणु सहाय
की कहानी- देर है अंधेर नहीं

“सौ गुनाहगार भले ही छूट जाएँ पर एक बेकसूर को सजा न हो।”
"दशरथ पासवान हाज़िर हो।"
सौगंध की प्रक्रिया के बाद-
"आपका नाम"?
"दसरथ पासवान।
उम्र- ३२ बरस।"
"आप काम क्या करते हैं?"
"हुजुर पी. डब्लू. डी. के इंजिनियर साहब के दफ्तर में चपरासी का।"
"इनको पहचानते हैं?" सामने वाले कटघरे में खड़े शख्स को दिखला कर।
"हाँ हुजुर, इनको तो दफ्तर में सब जानता है। इ तो शुक्ला जी हैं, ठेकेदार साहब। इनका फाइल हम ही तो साहब के पास पहुँचाते हैं।"
"उस फाइल में क्या रहता था आप जानते थे?"
"नहीं हुजूर, हम कैसे जानेंगे।"
"बदले में क्या तुम्हें कुछ पैसा देते थे?"
"पईसा उईसा तो..."
"सही सही बोलो, झूठ बोलोगे तो तुम्हें कड़ी सजा होगी। कड़क कर सरकारी वकील ने कहा।"
"हाँ हुजूर २०- २५ रुपिया चाय पानी के लिए दे देते थे।" आगे....

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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