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 १. ४. २०१८

इस माह-

अनुभूति में- ग्रीष्म ऋतु के स्वागत में आयोजित महोत्सव के अंतर्गत कठिन मौसम में आनंद-रस घोलते हुए प्रतिदिन एक नयी ग्रीष्म रचना...

-- घर परिवार में

रसोईघर में- इस माह गरमी के मौसम को शीतल बनाते हुए, हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं एक नया पेय- सांध्य सुंदरी

स्वास्थ्य में- मस्तिष्क को सदा स्वस्थ, सक्रिय और स्फूर्तिदायक बनाए रखने के २४ उपाय- १९- वर्ग पहेलियाँ हल करें

बागबानी- वनस्पति एवं मनुष्य दोनो का गहरा संबंध है फिर ज्योतिष में ये दोनो अलग कैसे हो सकते हैं। जानें- ४- अपामार्ग और विधारा के विषय में।

भारत के विचित्र गाँव- जैसे विश्व में अन्यत्र नहीं हैं- ४- सलारपुर खालसा- जो टमाटरों की खेती से हर साल एक अरब से अधिक रुपये कमाता है

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (अप्रैल) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया? ...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- शिवानंद सिंह सहयोगी की कलम से रमेश गौतम के नवगीत संग्रह- ''इस हवा को क्या हुआ'' का परिचय।

वर्ग पहेली- ३००
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
अश्विन गाँधी की कहानी-
आवारा कुत्ते

'सत्या, क्या आज सुबह सुबह शुगर को घूमा के आये ? '
'हाँ, आज मैं और सुमी शुगर को कुछ कसरत कराने के लिये चक्कर मारने निकले थे, अमृत। साथ साथ हमारी भी कुछ कसरत हो जाती है!' सत्या और सुमी एक युवा युगल हैं, करीब तीस साल के। श्रीधाम में कोई दस साल पहले सस्ते भाव में एक प्लौट खरीदा था, और कोई पाँच साल पहले अपना घर बना लिया था। अपने खुद के कोई बच्चे नहीं, मगर कुत्तों से बहुत प्यार करते हैं। तीन कुत्ते पाल के रखे हैं। दो पीले रंग के, और सब से बड़ा काले रंग का शुगर। सब एक ही घर में साथ साथ रहते हैं। 'अभी मैं दस मिनट पहले मेरे बगीचे का चक्कर मारने निकला था। मेरे गेट के बाहर जहाँ मैंने गुलाब बोये हैं वहाँ मैंने कुत्ते की बड़ी शौच देखी। ताज़ा दिख रही थी। धुआँ उठ रहा था। तुम दोनों को शुगर के साथ मेरे कंपाउंड के नज़दीक से गुज़रते हुए देखा था तो सोचा कि पूछ लूँ। आज कल हमारे श्रीधाम में आवारा कुत्ते काफी दिख रहे हैं। शुगर तो तुम दोनों के नियंत्रण में होता है तो यह शुगर की प्रबल इच्छा का तो परिणाम नहीं हो सकता!' ...आगे-
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उमेश अग्निहोत्री का व्यंग्य
अमेरिका में कुत्ते
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छोटलाल बहरदार की कलम से
लोक जीवन में ऋतुगीत
*

डॉ. परमानंद पांचाल का आलेख
प्राचीन भारत में विदेशी पर्यटक
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पुनर्पाठ में- संस्कृति के अंतर्गत ममता भारती से जानें-   भारतीय संस्कृति में सात का महत्व

पिछले अंकों से-

प्रेरणा गुप्ता की लघुकथा
वसुधैव कुटुम्बकम
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पर्व परिचय में राजकिशन नैन का
आलेख- होली हरियाणा की
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अजयेन्द्रनाथ त्रिवेदी का
ललित निबंध- कहाँ आ गयी कोयल
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फुलवारी में बच्चों के लिये-
रंगने के लिए होली का सुंदर चित्र शिल्पकोना में, साथ ही बना कर देखें होलिका और प्रह्लाद काग़ज़ से

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
भारतभूषण जोशी-की-कहानी- गौरदा

फाग का महीना चल रहा था। ठण्ड अभी दिल्ली में पाँव पसारे थी। सुबह शाम मजे की सिहरन हो जाती थी। गरम कपड़े छूटे न थे। बसंत के आगमन की सूचना झड़ते पत्तों से मिलने लगी थी। हरीश जोशी दफ़्तर से निकल कर सीधे आई. टी. ओ. के मुख्य बस स्टॉप पर आता है। उसकी कलाई घड़ी शाम के पौने छः बजा रही है। उसे हौज खा़स जाना है। आज शाम से किशोरदा के घर पर कुमाऊँनी होली की बैठक है। वो कुछ गुनगुना रहा है। उसके चेतन में किसी गीत के बोल सुर-ताल में चल रहे हैं। सड़क पर सुरक्षित चलने में अवचेतन में बसा पुराना अनुभव और अभ्यास ही उसका मार्गदर्शन कर रहे हैं। रोज़गार की तलाश में कुमाऊँ के पर्वतीय अंचलों से कई परिवार दिल्ली आ बसे। जनता कॉलोनियों से ले कर पॉश इलाक़ों तक में इन्होंने अपने आशियाने बना लिये। ये परिवार कुमाऊँ की अन्य लोक-परम्पराओं के साथ दशहरे में रामलीला के मंचन की तथा फागुन में होली की बन्दिशें गाने की अत्यन्त समृद्ध परम्परा को साथ ले कर आये। ...आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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