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लेखकों से
१. २. २०१८

इस माह-

1
अनुभूति में- 
अनेक रचनाकारों द्वारा विविध विधाओं में नव वर्ष को समर्पित भावभीनी रचनाएँ।

-- घर परिवार में

रसोईघर में- इस माह गर्म दिनों के स्वागत में पहले से तैयार हमारी रसोई संपादक शुचि प्रस्तुत कर रही हैं- आम का मीठा पना

स्वास्थ्य में-
मस्तिष्क को सदा स्वस्थ, सक्रिय और स्फूर्तिदायक बनाए रखने के उपाय-
१६- प्याज खाएँ

बागबानी- वनस्पति एवं मनुष्य दोनो का गहरा संबंध है फिर ज्योतिष में ये दोनो अलग कैसे हो सकते हैं। जानें- १- चंद्रमा और आक (मदार) के विषय में

भारत के विचित्र गाँव- जैसे विश्व में अन्यत्र नहीं हैं- - कोडिन्ही- जहाँ विश्व के सबसे अधिक जुड़वा लोग हैं।

- रचना व मनोरंजन में

क्या आप जानते हैं- इस माह (फ़रवरी) की विभिन्न तिथियों में) कितने गौरवशाली भारतीय नागरिकों ने जन्म लिया?...विस्तार से

संग्रह और संकलन- में प्रस्तुत है- संजीव सलिल की कलम से सुरेश पांडा के नवगीत संग्रह- ''अँजुरी भर धूप'' का परिचय।

वर्ग पहेली- २९८
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल और
रश्मि-आशीष के सहयोग से


हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले

साहित्य एवं संस्कृति में- 

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
वर्षा ठाकुर की कहानी- संशय

“कहाँ जाना है बेटा?” पिछले दस मिनट से मैं इस सवाल का जवाब मन में बुन रही थी। एक ठीकठाक-सा जवाब तैयार भी कर लिया था। पता ही था सामने वाली बर्थ पर बैठी आंटीजी थोड़ी देर में ये सवाल पूछेंगी ही। उनके लिये ये स्वाभाविक कौतूहल का विषय था, रात के बारह बजे, एक छोटे से बैग के साथ उस सुनसान से स्टेशन से अकेली चढ़ी लड़की। दिल्ली बंबई जैसे शहर हों तो बात समझ में भी आती है, पर उस अलसाए से बंगाली कस्बे में ये बात हजम सी नहीं हो रही थी। अधिकांश लोग सो चुके थे, पर आंटीजी को शायद नींद नहीं आ रही थी। शायद अपने सहयात्रियों की खोजखबर लिये बिना नींद आती भी नहीं। मैंने हमेशा की तरह ऊपर वाला बर्थ बुक करने की कोशिश की थी पर बीच वाला मिला था। एक किताब रख ली थी, ताकि हाथ में रहे तो लोग फालतू बातें करने से बचें। ये मेरा पुराना अनुभव था, अकेले रहो तो ऊपर की बर्थ और उपन्यास में सफर गुजार दो, वर्ना सहयात्री अपने सवालों की लिस्ट लेकर तैयार रहते। कभी कभी तो बात फोन नंबर तक पहुँच जाती और टालना ही...आगे-
*

मधु जैन की
लघुकथा- स्नेह पथ
*

बलविंदर बालम का ललित निबंध-
रूप का संकल्प है बसंत ऋतु
*

पर्व परिचय में अग्निशेखर से जानें
विलक्षण है कश्मीर की शिवरात्रि
*

पुनर्पाठ में- उमाकांत मालवीय
की रम्य रचना- यह पगध्वनि

पिछले माह-

अज्ञात की लघुकथा-
गणतंत्र दिवस की परेड
*

शशि पाधा की कलम से-
नतमस्तक हुआ हिमालय (कैप्टेन तुषार महाजन)
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भावना सक्सैना के साथ चलें
सूरीनाम जहाँ प्रेम का स्वर है
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डॉ. बद्रीप्रसाद पंचोली का
ललित निबंध - भारत बोध

समकालीन कहानियों में प्रस्तुत है भारत से
दीपक शर्मा की कहानी- बिगुल

“तुम्हें घोर अभ्यास करना होगा”, बाबा ने कहा, “वह कोई स्कूली बच्चों का कार्यक्रम नहीं जो तुम्हारी फप्फुप फप्फुप को वे संगीत मान लेंगे...”
जनवरी के उन दिनों बाबा का इलाज चल रहा था और गणतंत्र दिवस की पूर्व-संध्या पर आयोजित किए जा रहे पुलिस समारोह के अंतर्गत मेरे बिगुल-वादन को सम्मिलित किया गया था बाबा के अनुमोदन पर। “मैं सब कर लूँगी, आप चिंता न करें...”मैंने कहा। उनके सामने बिगुल बजाना मुझे अब अच्छा नहीं लगता।
वे खूब टोकते भी और नए सिरे से अपने अनुदेश दोहराते भी- “बिगुल वाली बाँह को छाती से दूर रखो, तभी तुम्हारे फेफड़े तुम्हारे मुँह में बराबर हवा पहुँचा सकेंगे...”
“अपने होंठ बिगुल की सीध में रखो और उन्हें आपस में भिनकने मत दो...” इत्यादि...इत्यादि।
“कैसे न करूँ चिंता?” बाबा खीझ गए, “जाओ और बिगुल इधर मेरे पास लेकर आओ। देखूँ, उसमें, लुबरिकेन्ट की ज़रुरत तो नहीं...”
बिगुल का ट्युनिंग स्लाइड चिकनाने के लिए बाबा उसे अकसर लुबरिकेन्ट से ओंगाया करते।...आगे-

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यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को प्रकाशित होती है।


प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन, कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

 
सहयोग : कल्पना रामानी
 

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