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रूप का संकल्प
है वसंत ऋतु
- बलविंदर बालम
माघ
शुक्ल पंचमी के दिन बसंत का जन्म हुआ था। बसंत पंचमी
के दिन कला और संगीत की देवी सरस्वती की पूजा होती है।
भव्य फूल, स्वस्थ फल, लताएँ बन्दनवार से ऋतु, रानी
बसंत का अभिनंदन करती हैं। यह त्योहार वास्तव में
ऋतुओं की रानी बसंत के नेतृत्व की सूचना देता है। बसंत
फबीले मौसम का महामेला है। प्रकृति की खूबसूरती का
संकल्प है बसंत। सुन्दर-सुन्दर खिलते फूलों को चूमते
शबनम के कतरे जिन्दगी की हकीकी जान पहचान करवाते नज़र
आते हैं। खेतों में दूर-दूर तक सरसों की पीली सोने
जैसी चमकती फसलें आँखों के लिए एक तंदरुस्त खुराक,
भव्य नज़ारों को तृप्ति में बदलती हैं।
मौसम के खूबसूरत परिवर्तन का नाम है बसंत। सूर्य जब
तड़क सवेरा लेकर सुन्दर प्रभा बाँटता है तो मौसम की
अँगड़ाई में सुरभियाँ प्यार उड़ेलती हैं। लहलहाते
हरे-भरे खेत, फूलों के रंगों की सुन्दर झलक, आमों के
ऊपर पड़ा बूर किसी मतवाली कोयल का इकरार, मनमोहनी
आवाज़ को तरसता है। फिर बसंत में रंग जाता है सारा
संसार, काएनाता, समस्त मानवता। तुर्ले वाली पीली
पगड़ी, परिधान गुलाबी लाचा (तहमत), किसी मूँछ फूट जवान
के गोरे-गोरे मुख पर तैरती सूर्य जैसी हँसी, हाथ में
सुन्दर लाठी (खूँटा), गले में सफेद माला, छाती के ऊपर
मचलता सोने का कैंठा (अलंकार), मुकम्मल सभ्याचार में
बसंत का स्वरूप। लहलहाते खेतों में एक सुन्दर नारी,
सिर के ऊपर पीला दुपट्टा घटाओं जैसा लहराता, पैरों में
पाजेबों की पज-पज, लम्बे परांदे वाली चोटी में
सुसज्जित फुम्मन, भटक-भटक पब छोड़ती जाती जन्नत के
बीच। बसंत की आमद का प्यार उमड़ता।
फसलें लहलहा कर हँसती जोबन (यौवन) ऋतु में। कोमल-कोमल
शाखाओं पर फूटते सूर्ख अनार। मौसम का गुलाबी रंग।
सर्दी तथा गर्मी आपस में आँख मचोली खेलते हुए
मर्मस्पर्शी मौसम के नाम पतझड़ क्रियाओं को अलविदा
कहते हुए अतीत के पैरों में वर्तमान के अति सुन्दर
चिह्न छोड़ जाते। किसान-ज़मींदार अपनी कमाई की खुशी के
चिह्न, जवान भरपूर खिली पक रही फसलों के सुनहरी दृश्य
देखता हुआ, घरेलू मजबूरियों तथा ऋण (कर्ज़) से निजात
पाने की ललक में तत्पर होते हैं।
बसंत ऋतु सुन्दरता की असली परिभाषा तथा मौसम में
कामोद्दीपक होता है। इसके प्रमुख देवता काम तथा रति
हैं। अतएव काम तथा रति की प्रधानतया पूजा करनी चाहिए।
सरस्वती देवी विद्या, वृद्धि देती है। घरों में
सरस्वती की पूजा की जाती है। इस दिन ही होरी तथा धमार
गीत गाए जाते हैं, गेहूँ तथा जौ की स्वर्णिम बालियाँ
भवगान को अर्पित की जाती हैं। इन दिनों भगवती सरस्वती
के पूजन का विशेष फल है। इस मौसम में कामोत्तेजना हृदय
में जगा जाती है अभिलाषा। बागों में तितलियाँ, भँवरे,
कोयलें, मोर, पपीहे, अन्य पक्षी उपवन से दिलकश कलोल
करते हुए बसंत को बासंती बना दते हैं। भव्य फूल तथा
कलियों के सफेद जिस्म बसंत ऋतु को दिव्यता बख्शते।
पक्षियों की चहचहाहट, सूर्य की किरणों के साथ मानवता
को प्रसन्नता का सन्देश देती। बसंत ऋतु में एकता,
सद्भावना, नेतृत्व, दृढता, आपसी भाईचारे का संदेश देते
हैं प्रवासी पक्षियों के झुंड। यही बसंत की खूबसूरती
है।
शुभ-शकुन की पवित्र परम्परा है बसंत ऋतु। इस दिन सारी
प्रकृति, कायनात तथा वनस्पति मानवता को सत्यम शिवम
सुन्दरता का संदेश देती है।
निर्झर, नदी नालों में पानी की शुद्धता बढती हुई
खुशहाली का संदेश देती है। पहाड़ों की खूबसूरती में
बसंत की ऋतु दुल्हन जैसी सजती हुई जन्नत का आभास
करवाती है। यह ऋतु मानव की खुशहाली की प्रतीक है। नील
गगन को चूमती पहाड़ों की चोटियों के ऊपर खिलती बसंत
में तरह-तरह के फूलों की महक टेढ़ी-मेढ़ी पगडंडियों को
जिंदगी का नाम देती है। पहाड़ों की खूबसूरती में भी
बसंत की ऋतु एक विलक्षण परिवर्ततन करती र्है। बर्फ के
घुलने से शुद्ध पानी अपनी परिवर्तनशीलता में नवीनता
उत्पन्न करता है। निर्झरों का शुद्ध दुधिया पानी ऊपर
से बहता हुआ नीचे जब धरती को चूमता है तो दर्पण की
किरचियों जैसा टूट कर फैलता हुआ अनेक प्रतिबिम्ब
उत्पन्न करता है जो जवानी, भव्यता और जन्नत का स्वरूप
लेता है। इस दिन चारों ओर बसंती रंग की सुन्दरता बिखर
जाती है।
बसंत ऋतु के संबंध में श्री गुरु अमरदास जी ने अपनी
वाणी में कहा है:
बनसपति मऊली चढिआ बसंत। ऐह मन मऊलिआ सतिगुरु-संग।
तुम साच ध्यावह मुगध मनां। तां सुख पावहु मेरे मना। यह
पंक्तियाँ जीवन के सुखद पलों को दर्शाती हैं। बनस्पति
आने पर बसंत की आमद तथा सुख की प्राप्ति सतगुरु की
उपासना से ही है। भक्त कबीर जी अपनी बाणी में कहते
हैं: मऊली धरती मऊलेआ आकास। घटि मऊलेआ आतम प्रकाश आदि।
श्री गुरू अर्जुन देव जी अपनी वाणी में कहते हैं:
तिस बसंत जिस प्रभु कृपाल। तिस बसंत जिस गुरुदयाल।
मंगल तिसके जिस एक नाम। तिस सद बसंत जि हिरिदै नाम।
श्री गुरु अमरदास जी लिखते हैं-
बसंत चढिआ फूली बनराय। ऐह जीअ जंत फूलहि हरि चित लाए।
आध्यात्मिक संदर्भ में आत्म विकास की अवस्था ही बसंत
हैं जो गुरु कृपा से ही उपलब्ध है।
इस दिन आसमान में पतंगे (गुड्डियाँ) तथा डोरें इस तरह
पेचें लड़ाती हैं कि सारा आसमान ऐसे नजर आता है जैसे
किसी चित्रकार ने हवा में चित्रकारी कर रखी हो। रंग
बिरंगी पतंगों की खूबसूरती आसमान को सौंदर्य बख्शती
है। आ-बो-ई-ओ की लम्बी ध्वनियाँ फिजा में जब गूँजती
हैं तो जवानी की परिभाषा उमड़ती हैं। बसंत में
बढ़ोत्तरी होती हैं। विशेष तौर पर लखनऊ आदि शहरों में
पतंगबाजी की शर्तें लगती हैं। विशेष तौर पर पंजाब के
अमृतसर में तथा फिरोजपुर आदि शहरों में पतंगबाजी की
शर्तें लगती हैं तथा देर रात तक पतंगों के पेच चलते
हैं। पतंगबाजी का त्योहार भी इस दिन धूमधाम से मनाया
जाता है। लड़कियाँ भी पतंगें उड़ाती हैं। माता-पिता
अपनी प्यारी-प्यारी बेटियों को स्वयं डोर-पतंगे खरीद
कर देते हैं जिससे लड़कियों में बराबर का आत्मविश्वास
बढे। भाई गुरदास जी ने जीवन से उपमा देते हुए अपनी
कविता में पतंग (गुड्डी) के संबंध में कमाल का लिखा है
:
पवन गवन जैसे लटूआ फिरत रहै, पवन रहित गुड्डी उड़ न
सकत है।
डोरी को मरोर जैसे लटूआ फिरत रहै, ताऊ हाऊ गिर परै थकत
है।
कंचन असुध जिऊ कुठारी ठहगत नाही, शुद्ध भए निहचल छवि
कै छकत है।
दुरमति दुविधा भ्रमत है चतुर कुंट, गुरु मति एक टेक
मौन न बकत है।।
बसंत के दिन घरों-धार्मिक स्थानों, संस्थाओं आदि में
पीले रंग का प्रसाद, पीले रंग के मीठे चावल बनाए जाते
हैं। प्रत्येक शहर, गाँव में मेले लगते हैं। ब्रह्मा
जी ने देवी से वीणा बजा कर संसार की मूकता तथा उदासी
दूर की। देवी ने वीणा के मधुर नाद से सब जीवों को वाणी
प्रदान की, इसलिए उस देवी को सरस्वती कहा गया। यह देवी
विद्या, बुद्धि को देने वाली है। इसलिए बसंत के दिन
घरों में सरस्वती की पूजा की जाती है।
वसंत स्वास्थ्यवर्धन की ऋतु भी है। मानव अपने अस्वस्थ
देह को स्वस्थ बनाने के लिए प्रकृति के सानिध्य में
जाता है। यौवन हमारे जीवन का बसंत है तो बसंत इस
सृष्टि का यौवन। प्रकृति सुख दुःख के द्वन्द्वों से
परे है। इसमें प्रभु की विद्यमानता सदैव भासती रहती है
क्योंकि प्रभु-स्पर्श जीवन में सदैव एक ही ऋतु रहती है
और वह है बसंत और प्रभु-स्पर्शी जीवन में एक ही अवस्था
रहती है और वह है यौवन। प्रकृति के सम्मोहन में मानव
के तन में स्फूर्ति मन में उल्लास, बुद्धि में
प्रसन्नता और हृदय में चेतना प्रकट होती है, सृष्टि की
सुन्दरता और यौवन की रसिकता का जहाँ सुमेल होता है,
वहाँ निराशा, नीरसता, निष्क्रियता जैसी बातों का स्थान
ही कहाँ? यही बसंत का वैभव है। बिना वर्षा के सृष्टि
को पुनः नवपल्लवित करने का प्रभु का चमत्कार बसंत में
साकार होता दिखाई देता है। जीवन और बसंत को जिसने
एकरूप कर दिया ऐेसे मानव को हमारी संस्कृति में संत
कहा गया है जो जीवन में बसंत लाए वही संत है।
यौवन और संयम, आशा और सिद्धि, जीवन और मौसम, भक्ति और
शक्ति, सर्जन और विसर्जन-इन सब में समन्वय करने वाला,
जीवन में सौंदर्य, संगीत स्नेह निर्माण करने वाला बसंत
हमारे जीवन में साकार बने, तभी हमने बसंत को जाना है,
पाया और पचाया है-ऐसा कहा जाएगा। सम्भवतः इसी सार तत्व
को जानकर बसंत पंचमी को ‘श्री पंचमी’ भी कहा जाता है।
श्री का अर्थ है शोभा, सौंदर्य, रमणीकता। यह बाहर तथा
आन्तरिक दोनों में ही व्यक्त है। इसी में जीवन की
सार्थकता है। बसंत में प्रदूषण दूर होता है। बसंत जीवन
में हर्षोल्लास तथा आशाओं के गुलदस्ते लाता है। बच्चों
में बसंत ऊर्जा, इच्छा शक्ति, खुशी की किलकारियाँ भरता
है। बसंत प्रफुल्लता या ताजगी का संदेश देता है। भगवत
गीता में अर्जुन से भगवान कृष्ण ने कहा था, मैं ऋतुओं
में बसंत हूँ। बसंत समता का पर्याय है। इस दिन बंगाल,
उत्तरी भारत तथा बंगला देश में पीले तथा गुलाबी रंग
में होली भी खेली जाती है।
इस दिन के साथ कई ऐतिहासिक घटनाओं का भी संबंध है।
विशेष तौर पर वीर हकीकत राय की शहदत का। वीर शहीद
हकीकत राय की समाधि बटला (गुरदासपुर, पंजाब) में है।
यहाँ भारी मेला लगता है। नामधारी कूका लहर की
कुर्बानियाँ, जरनैल शाम सिंह अटारी की शहीदी घटनाएँ
तथा शुभकार्यों का भी इसके साथ संबंध है। इस दिन
धार्मिक स्थानों में कीर्तन, शब्द गायन तथा प्रवचनों
का आयोजन भी किया जाता है। विशेषतः श्री हरि मन्दिर
साहिब (श्री दरबार साहिब) अमृतसर, पंजाब में सारा दिन
बसंत की स्तुति में शब्द गायन (कीर्तन) किया जाता है।
बसंत ऋतु समस्त ऋतुओं की महारानी है। मानवता के जीवन
में इसकी महानता हृदय में उतरने वाली तथा शुद्धता,
सुन्दरता, शान्ति तथा हर्षोल्लास की प्रतीक है।
१ फरवरी २०१८ |