इस पखवारे- |
अनुभूति-में-
मनोज जैन मधुर, सोनरूपा विशाल, परिचय दास, क्षिप्रा शिल्पी और
आचार्य सारथी की रचनाएँ। |
- घर परिवार में |
रसोईघर में- झटपट खाना शृंखला के
अंतर्गत-हमारी-रसोई संपादक शुचि लाई हैं
जल्दी से तैयार होने वाली पौष्टिक व्यंजन विधि-
गुजराती कढ़ी।
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फेंगशुई
में-
२४ नियम जो घर में सुख समृद्धि लाकर
जीवन को सुखमय बना सकते हैं-
१४- अशुभ फेंगशुई से कैसे बचें। |
बागबानी-
के अंतर्गत लटकने वाली फूल-टोकरियों के विषय में कुछ उपयोगी सुझाव-
१४- वाह
वाह वरबीना की। |
सुंदर घर-
शयनकक्ष को सजाने के कुछ उपयोगी सुझाव जो इसके रूप रंग को
आकर्षक बनाने में काम आएँगे-
१४-
पारंपरिक सजावट का आकर्षण |
- रचना व मनोरंजन में |
क्या
आप
जानते
हैं- आज के दिन (१५ जुलाई को) जमशेद जी टाटा,
के.कामराज, दुर्गाबाई देशमुख, बादल सरकार, प्रभाष जोशी और अमि त्रिवेदी...
विस्तार से
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नवगीत संग्रह- में प्रस्तुत है-
बी.के.वर्मा शैदी की कलम से योगेन्द्र वर्मा व्योम के नवगीत संग्रह-
रिश्ते बने रहें का परिचय। |
वर्ग पहेली- २७२
गोपालकृष्ण-भट्ट-आकुल
और
रश्मि-आशीष के सहयोग से
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हास परिहास
में पाठकों द्वारा भेजे गए चुटकुले |
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साहित्य एवं
संस्कृति में- |
समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
जयनंदन की कहानी
जरा धीरे जाएँ पुल
कमजोर है
जगदल ने अपनी आँखों के सामने
देखा कि पुल का फुटपाथ रेत के टीले की तरह भर-भराकर ढह गया।
स्कूली बच्चों का एक झुंड एक सेकेंड के फासले से नदी में
गिरते-गिरते बचा। उसे लगा कि एक बड़े अनिष्ट ने जान-बूझकर
चेतावनी दे दी है कि सावधान! अब यह पुल कभी भी गिर सकता है।
मन एकदम उचट गया उसका। इतनी लापरवाही! कैसे चलेगा आदमी
का धरम-करम। इंजीनियरों द्वारा मुकर्रर आयु यह पुल बीस साल
पहले पूरी कर चुका है। फिर भी इसका विकल्प ढूँढने का कहीं से
कोई प्रयास होता नहीं दिख रहा। उलटे इसकी वजन-क्षमता से हमेशा
दस-पंद्रह गुणा अधिक भार इस पर लदा रहता है।
चालीस-पचास चक्कोंवाले एक से एक बड़े ट्रेलर भारी-भारी
मशीनरी और अन्य लौह-सामग्री लेकर अक्सर गुजरते रहते हैं। उस
पार मुख्य कारखाना और शहर की दो तिहाई आबादी स्थित है तो इस
पार सैकड़ों लघु कारखाने और एक तिहाई आबादी। अतएव आवाजाही का
सघन सिलसिला दिन भर चलता रहता है।
क्षण भर के लिये भी कोई बाधा पुल के बीच में उपस्थित हो...
आगे-
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पूनम पांडेय की
लघुकथा-
कर्तव्य बोध
*
सुबोध नंदन के साथ पर्यटन
जैनियों का तीर्थस्थल-
चंपापुर
*
डॉ. अमिता की समीक्षात्मक दृष्टि
से
सुधा ओम ढींगरा का उपन्यास- नक्काशीदार कैबिनेट
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पुनर्पाठ में कृष्ण बिहारी की
आत्मकथा
सागर के इस
पार से उस पार से का सत्रहवाँ भाग |
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संकलित लघुकथा
परिणाम
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डॉ. स्वाती तिवारी का आलेख
दीपक शर्मा की
कहानियों में नारी विमर्श
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चीन से गुणशेखर की डायरी
अब भारत में भी
क्योटो और शंघाई
*
पुनर्पाठ में हजारी प्रसाद
द्विवेदी का
ललित निबंध-
शिरीष के
फूल
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समकालीन कहानियों में प्रस्तुत
है भारत से
सूर्यबाला की कहानी
बहनों का जलसा
ट्रेन के प्लेटफार्म पर रुकते ही
वे चारों एक दूसरे की कलाइयाँ पकड़े, अपनी अपनी कंडियाँ, थैले
और बक्सियाँ सँभालतीं, डिब्बे की तरफ दौड़ चलीं।
चढ़ती, उतरती भीड़ के बीच भी वे एक दूसरी का हाथ कस कर पकड़े,
सँभल कर चढ़ने की ताकीद करती जा रही थीं। ‘पहले तू...' ‘नहीं तू
चढ़ पहले' की जल्दबाजी में, सबने मिल कर पहले ‘सबसे बड़ी' को
चढ़ाया जबकि वह, अपने से पहले तीनों छोटियों को चढ़ाना चाह रही
थी। यहाँ तक कि डिब्बे में चढ़ जाने के बाद भी वह लगातार बाकी
तीनों के लिए ‘आ, आ जा छोटी...' मँझली चढ़ी?... ‘जल्दी कर
सँझली... जैसे चिंताकुल जुमले बोले जा रही थी।
तभी मँझली को याद आया - ‘अरे, गाड़ी अभी रुकेगी, मैं जरा दाल
चिक्की और समोसे लेती आऊँ?
-‘चाँटा खायेगी... चुप बैठ, गाड़ी से नहीं उतरना है अब' - ‘बड़ी'
ने अपनी दाहिनी दुबली हथेली से एक सुकुमार से चाँटे की शक्ल
बना कर फिर उसे ‘खिलाने' की मुद्रा भी दिखाई...
आगे- |
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