अब भारत में भी क्योटो और शंघाई
-डॉ. गुणशेखर (चीन से)
हमारे प्रधान
मंत्री ने बनारस और मुंबई को क्योटो और शंघाई बनाने का सपना
देखा है। यह बहुत सुंदर सपना है। इस सपने को साकार करने के लिए
पूरे देश को जागना होगा। केवल एक व्यक्ति के जागने से इतना बड़ा
सपना रूप और आकार न पा सकेगा। इसके लिए समूचे देश को एकजुट
होना होगा।
चीन में रहते हुए धीरे-धीरे लंबा अरसा गुजर चुका है। साल दर
साल अनुभव के साथ विचार भी बदलते रहे हैं। शुरुआती दिनों की
जिज्ञासाएँ अब क्षीण पड़ने लगी हैं। सुबह से शाम तक इस देश की
कमियाँ खोजते-खोजते अपनी आँखों का मोतियाबिंद भी गहराने लगा
है। इतना नुकसान उठाने के बाद जाके समझ में आया है कि कठिन
परिश्रम और लगन से बड़ा कोई जादू नहीं होता। सैकड़ों किलोमीटर
की लंबाई में बीच-बीच आड़े आते और यात्रा में टाँग अड़ाते
पहाड़ों को रास्ते से हटाना कोई हँसी खेल नहीं है। लेकिन यह
बात मैं पहले कहता जब भारत में था, अब नहीं। चीन की लगन और
परिश्रम को देखकर अब तो मुझे यह सब हँसी-खेल ही लगता है।
हज़ारों की संख्या में जगह-जगह बनी छोटी-बड़ी सुरंगों के बीच
से धड़धड़ाती गुजरती हज़ारों किलोमीटर की लंबी रेल लाइन पर तीन
सौ से भी ज्यादा की स्पीड वाली बुलेट ट्रेन से जब ग्वान्जाऊ से
बीजिंग पहुँचा तो उतरकर सबसे पहले श्रम को लाल सलाम ठोंका। चीन
क्या अपने देश में भी कोंकण रेलवे इसी लगन, संकल्प और परिश्रम
का प्रत्यक्ष उदाहरण है। अपने देश में भी दशरथ माँझी जैसी जीवट
के एक से एक लोग हैं। लेकिन दुःख है कि अपने महान देश के दशरथ
माँझियों को जब रास्ते का रोड़ा बने किसी पहाड़ को हटाने की
जरूरी जंग सवार होती है, उस समय सारा देश सो रहा होता है। यहाँ
सारा देश एक साथ सोता और एकसाथ ही जागता भी है। इसी से यह सारी
दुनिया को धता बताकर बिना रुके आगे बढ़ता ही चला जा रहा है।
सोने से याद आया कि सोना भी तरह-तरह का होता है। कुछ घोड़े
बेचकर सोते हैं तो कुछ कुत्ते की नींद। घोड़े बेचकर वे सोते
हैं जो दायित्त्वों से मुक्त हो चुके होते हैं और खोने के लिए
भी उनके पास कुछ नहीं होता। कुत्ते की नींद वे सोते हैं जिनके
पास खोने के लिए कुछ कीमती सामान होता है। इन दोनों से अलग कुछ
चैन की नींद सोने वाले भी होते हैं। ये वे लोग होते हैं जिनके
पास कीमती सामान होता तो है पर उसकी सुरक्षा की गारंटी होती
है। यही बात देशों पर भी लागू होती है। जिस देश की
अस्त्र-शस्त्र से लैस सीमाएँ चौकस जगती हैं उसके भीतर सुरक्षा
की गारंटी होती है और वह देश चैन से सोता है। चीन उसी गारंटी
वाला देश है। इसलिए यहाँ के नागरिक निश्चिंत हैं। चैन से सोते
हैं। पहले मैं सोचता था चैन से सोने के लिए बस यही काफ़ी है
लेकिन कल मेरा यह विचार पक्की सड़क के किनारे खड़े पेड़ से
गिरे पके जामुन-सा मेरा विचार पच्च से फूट गया। कल लगा कि इसके
लिए मन का शांत होना बहुत ज़रूरी है और साथ में कुछ बुनियादी
सुविधाएँ भी । सोता तो मन है। शरीर कहाँ सोता है। इसलिए जगे
हुए को सुलाना और सोए हुए को जगाना दोनों मानसिक कर्म हैं जबकि
हम इन्हें शरीर के स्तर पर हल करना चाहते हैं। प्रायः इसीलिए
असफल होते हैं।
प्रधान मंत्री मोदी के बनारस को क्योतो बनाने के संकल्प के
सन्दर्भ में वर्तमान में जापान में रह रहे काशीवासी लक्ष्मीधर
मालवीय ने भारतीय जनता को चेताते हुए बहुत सुंदर बात कही
है-"जापानी लोग भाषा के सहारे विचार न कर, अपनी कलाई के आगे की
हथेलियों और उँगलियों से ‘कर्म’ करते हैं, भूलें करके भी उससे
सीखते हैं। फिर-फिर कर्म करने की प्रक्रिया में कर्म और कर्ता
मिलकर एक हो जाते हैं, वह चाहे सामुराई की तलवार बनाने वाला
लोहार हो या डेढ़ हजार वर्ष अडिग खड़े रहने वाले पंचखंडा मंदिर
शिखर का निर्माता सिद्धहस्त बढ़ई। लोहार पृथक नहीं रहा, वह
तलवार में है। ऐसे ही बढ़ई भी। जापानी जन के जीवन में यही है
जेन (ध्यान)!"
चीन भी इसी ध्यान और साधना के बल पर आगे बढ़ा है। शंघाई या
क्योटो का सपना जिसने भी देखा उसने उसके अनुरूप कर्म किया तब
शंघाई और क्योटो जैसे आलीशान शाहर अस्तित्त्व में आए। हम केवल
शब्दवीर हैं। अगर हमें मुंबई को 'शंघाई' या बनारस को 'क्योटो'
बनाना है तो हमें भी थोड़ी देर के लिए शब्दों से ध्यान हटाकर
शब्दों की अपेक्षा कर्म में रुचि लेना होगा । चीन की तरह सारे
देश को एक साथ सोना और जागना होगा और जापान की तरह विकास पर
ध्यान केन्द्रित करना होगा न कि जाति और संप्रदाय की राजनीति
में... तभी हम चीन और जापान के 'शंघाई और क्योटो के सपने' को
साकार करते हुए इन्हें अपने देश में भी बसा पाएँगे अन्यथा सोते
रहने से सपना सपना ही रह जाएगा यथार्थ नहीं बन पाएगा।
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